तारों का जन्म

अंडमान निकोबार की लोक कथाएँ

'ओंगी' जनजाति के लोगों का मानना है कि सृष्टि के आरंभ में, जब धरती बनी ही थी आसमान बहुत नीचे था ।

फिर एक दिन, सूर्य और चन्द्रमा की रचना हुई। लेकिन छलपूर्वक उन्होंने अपना- अपना स्थान बदल लिया । वे धरती के और निकट आ गए ।

उनके इस कृत्य से धरती बुरी तरह गर्म हो गई । इसकी सतह पर गहरी दरारें पड़ गईं । लोगों ने घर से निकलना बन्द कर दिया । उन्हें डर था कि तेज धूप के कारण उनका शरीर झुलस जाएगा ।

झरने और नदियाँ सब सूख गए। पानी का कहीं नामोनिशान न रहा । पशु-पक्षी यहाँ से वहाँ, वहाँ से यहाँ मारे-मारे फिरने लगे ।

एक दिन बुजुर्गों ने विचार-विमर्श के लिए एक बैठक बुलाई । उसमें युवकों को भी बुलाया गया। तय पाया गया कि अगर ऐसे ही चलता रहा तो कुछ ही दिनों में धरती पर जीवन नष्ट हो जाएगा । अन्त में, सभी की सहमति से ता-चोई (एक विशेष प्रकार की लकड़ी) तथा चा-लोक (नारियल की डंडी) से तीर-कमान तैयार करने का निर्णय लिया गया।

निश्चय किया गया कि आसमान पर लगातार तब तक तीर मारते रहा जाए. जब तक कि उसे धरती से काफी दूर न धकेल दिया जाए। सूर्य और चन्द्रमा तब अपने- अपने स्थान पर पहुँच जाएँगे और इस तरह धरती असह्य गर्मी से बच जाएगी ।

तब, एक दिन उन्होंने आकाश को तीर मारना शुरू किया ।

लेकिन उनके सारे तीर आकाश में अटक गए। उनमें से एक भी तीर वापस धरती पर नहीं गिरा । होता यह कि जैसे ही तीर आसमान से टकराता आग निकलती और तारा बन जाती ।

आसमान में इस तरह अनगिनत तारे बन गए ।

लेकिन ओंगी हताश नहीं हुए। आसमान के साथ-साथ उन्होंने सूर्य और चन्द्रमा को भी पीछे धकेलने के लिए उन पर तीर मारना जारी रखा ।

कुछ समय बाद सूर्य और चन्द्रमा वापस अपने-अपने स्थान पर चले गए। उसके बाद धरती की सतह भी ठंडी हो गई। वर्षा होने लगी । झरने और नदियाँ भरे-पूरे बहने लगे । वृक्ष ठग आए। पशु-पक्षियों में जीवन का संचार हो गया ।

और इस तरह पूरे आकाश में टिमटिमाने वाले तारों का जन्म हुआ ।