बहुत साल पहले की बात है।
एक विदेशी जलयान ने कार-निकोबार में लंगर डाला । निकोबार के लोगों ने नारियल के बदले जलयान के लोगों से दूसरी वस्तुएँ लेना शुरू कर दिया ।
एक दिन किलपुट भी अपनी डोंगी में बैठकर कुछ सामान लेने को गया । लेकिन उसे थोड़ी देर हो गई । सभी लोग जलयान से सामान की अदला-बदली करके अपनी-अपनी डोंगी में आ चुके थे ।
किलपुट जलयान के बोर्ड पर ही खड़ा रह गया । जलयान के लोगों को उसके वहाँ रह जाने का पता ही नहीं चला और वे जलयान को अपने देश की ओर ले गए । किलपुट के दोस्तों को भी इस बात का पता न चला ।
समुद्र में तैरती उसकी खाली डोंगी को देखकर उन्होंने समझा कि किलपुट समुद्र में डूबकर मर गया। वे उसकी डोंगी को लेकर गाँव में वापस आ गए । किलपुट की मौत का समाचार आग की तरह पूरे गाँव में फैल गया । किलपुट के माँ-बाप पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा ।
उधर, जलयान पर चढ़ा किलपुट एक अनजान देश में पहुँच गया । भरण-पोषण के लिए वहाँ उसने एक डोंगी बनाई और उसमें बैठकर समुद्र से मछालियाँ पकड़ने और बेचने का धन्धा करने लगा । इससे उसने अपार धन कमाया । इसके बाद वहाँ पर उसने विवाह भी कर लिया । उसके दो सन्तानें हुई एक बेटा और एक बेटी । दिन बीतते गए लेकिन किलपुट निकोबार के अपने पुश्तैनी गाँव को न भूल सका । वह अपनी पत्नी और बच्चों के बीच बैठकर उन्हें अपने प्रिय गाँव के किस्से सुनाता और अपना मन हल्का करता । परन्तु जब भी वह वापस लौटने की बात उठाता उसकी पत्नी और बच्चे उदास हो जाते । वह रुक जाता ।
आखिर, एक बार किलपुट ने एक बड़ी डोंगी बनाई । तरह-तरह के कपड़े, खाने-पीने की वस्तुएँ और पानी अपने साथ उसमें रखा । और एक दिन चुपचाप वह अपने गाँव के लिए अथाह समुद्र में निकल पड़ा । बड़ी मुसीबतों के बाद आखिर एक दिन वह अपने गाँव के किनारे पहुँच गया । डोंगी से उतरकर जब वह अपने घर के निकट पहुँचा तो उसने देखा कि गाँव वाले मिलकर 'ओसरी उत्सव' की तैयारी कर रहे है । उसे लगा कि हर आदमी ने उसे मरा हुआ मान लिया है । तभी तो वे सब उसके लिए रो- बिलख रहे थे ।
वहाँ से चलकर किलपुट अपने सुअरों के बाड़े की तरफ गया । उसने सुअरों के कानों पर पहचान- चिह बना रखे थे । वे जैसे के तैसे थे । अचानक कुछ लोग उधर आ निकले और उससे पूछताछ करने लगे ।
“मैं एक विदेशी हूँ।'' वह बोला। फिर उसने लोगों से पूछा, “आप लोग यह क्या कर रहे हैं ?
लोगों ने उसे बताया, “गाँव के एक नौजवान की समुद्र में डूबने से मौत हो गई थी । उसी के शोक में यह सब हो रहा है ।
“डूबने वाले का नाम क्या था?” किलपुट ने उनसे पूछा ।
“किलपुट ।” उन्होंने बताया ।
“मैं मरा नहीं,” किलपुट बोला, “जिन्दा हूँ।' यह कहकर उसने पूरा किस्सा उन्हें सुनाया ।
गाँव वालों की खुशी का ठिकाना न रहा। इतने वर्षों बाद उसे पाकर वे झूम उठे ।
शोक का उत्सव 'ओसरी' किलपुट की वापसी के उत्सव में बदल गया ।