प्रियों का द्वीप : परी टापू

अंडमान निकोबार की लोक कथाएँ

पोर्टब्लेयर से लगभग 20 मील दूर उत्तर-पूर्व दिशा में हैदलॉक नामक द्वीप है । आज यह एक आकर्षक पर्यटन-स्थल है । पुराने जमाने में इसको “परी टापू' नाम से जाना जाता था ।

कहा जाता है कि इस खूबसूरत द्वीप को प्रेम में हताश एक परी द्वारा बनाया और बसाया गया था । लोगों का विश्वास है कि किसी जमाने में यह परियों का द्वीप था । बेहद खूबसूरत परियाँ उस जमाने में निर्भव होकर इस द्वीप पर उछलती-कूदती और नाचती-खेलती थीं ।

उन परियों की राजकुमारी एक बेहद सुन्दर, सुशील और दयालु परी थी । परियों के अलावा कभी भी किसी मनुष्य ने उसे नहीं देखा था । वह अपने आपको अधिकतर एक अंधेरे कमरे में बंद रखती थी ।

दिनभर में, सूर्योदय से पहले, वह सिर्फ एक बार बाहर निकलती थी । उस समय अपनी सहेली परियों के साथ वह घर के समीप वाले एक तालाब में नहाने के लिए जाती थी । उसके और उसकी सहेलियों के वहाँ पहुँचने पर सारा वातावरण चमक उठता था । वह सूर्योदय से पहले ही स्नान करती और अपनी सहेलियों के साथ वापस लौट आती ।

एक बार समुद्र में भयंकर तूफान आया। वह राजकुमारी के नहाने के लिए जाने का समय था । लेकिन तूफान की भयावहता को देखकर उसकी सहेलियों ने उसके साथ जाने से इंकार कर दिया ।

चारों ओर अंधकार छाया हुआ था । राजकुमारी राजमहल से निकली और उस अंधकार में अकेली ही तालाब की ओर बढ़ चली। तेज हवाओं को झेलती, धीरे-धीरे उड़ती हुई आखिर वह वहाँ पहुँच ही गई । उसने अपने पंख और कपड़े उतारकर किनारे पर रख दिए । वह रोजाना ही ऐसा करती थी क्योंकि कपड़े या पंख अगर गीले हो जाएँ तो परियाँ उड़ नहीं सकतीं। कपड़े उतारते ही उसके शरीर की आभा से आसपास का वातावरण चमक उठा । उस प्रकाश में उसने देखा कि एक नौजवान तालाब के किनारे लेटा हुआ है । वह डर गई ।

लेकिन उसने देखा कि नौजवान बेहोश था ।

मैं बिना आवाज किए चुपचाप नहा लूँगी और लौट जाऊँगी उसने सोचा ।

“आह...आह!” जैसे ही राजकुमारी ने नहाना शुरू किया उसे सीढ़ियों पर पड़े नौजवान के कराहने का स्वर सुनाई दिया ।

उसने तालाब से निकलकर फुर्ती से अपने कपड़ें और पंख पहने । फिर, अपने चुल्लू में पानी भरा और पास जाकर उस नौजवान के चेहरे पर छिड़का ।

युवक को होश आ गया और वह उठ खड़ा हुआ। अपने समीप इतनी खूबसूरत युवती को पाकर वह जड़वत्‌ रह गया। उसने स्वण में भी यह नहीं सोचा था कि इस नीरव स्थान में उसे ऐसी अनुपम सुन्दरी के दर्शन होंगे ।

परी ने मधुर स्वर में उससे पूछा, “आप कौन हैं ?

“मैं पूरब देश का राजकुमार हूँ।'” युवक ने बताया ।

“आप यहाँ किसलिए आए हैं ?'' परी ने पूछा ।

“मैं समुद्री-यात्रा के लिए निकला था।'” युवक ने बताया, “मेरा पोत कल रात तूफान में फँस गया और टूट गया । मैं नहीं जानता कि मैं कैसे यहाँ आ गया। आप कौन हैं ?

“मैं ? मैं यहाँ की राजकुमारी हूँ।”' परी ने कहा। उसने महसूस किया कि वह उस सुन्दर राजकुमार के आकर्षण में बँध-सी गई है । उसकी आँखें राजकुमार के प्रति प्रेम से चमक उठीं ।

यही हाल उस राजकुमार के हृदय का भी था। दोनों एक-दूसरे के प्रेमजाल में फँस चुके थे। दोनों एक-दूसरे को निहारते काफी समय तक वहाँ बैठे रहे ।

सूर्योदय होने को था। परी को एकाएक ध्यान आया कि उसे सूरज निकलने से पहले ही अपने महल में पहुँच जाना है । वह उठ खड़ी हुई। घर जाने के लिए राजकुमार से विदा लेते

समय उस ने उसे एक गुप्त स्थान का पता बताया ।

“जब तक तूफान थम नहीं जाता, आप उस स्थान पर जाकर रहें । जब तुम्हें सुबह का तारा आकाश में नजर आए, तुम चुपचाप इस तालाब के किनारे आ जाना । मैं यहीं पर तुमको मिलूँगी । जाते-जाते वह बोली ।

उस दिन के बाद राजकुमारी ने नहाने के लिए तालाब पर अकेले जाना शुरू कंर दिया । अपनी सभी सहेलियों से उसने साथ चलने के लिए मना कर दिया। वह अकेली तालाब पर पहुँचती ।

जैसे ही सुबह का तारा आकाश में टिमटिमाता, चोरी छिपे राजकुमार भी वहीं आ जाता । । दोनों लम्बे समय तक प्यार-भरी बातें करते और सूर्य की पहली किरण धरती पर पड़ने से पहले ही अपने-अपने स्थान को लौट जाते ।

कुछ दिनों बाद राजकुमार को अपने परिवार की याद सताने लगी। बह'उदास रहने लगा। लेकिन .वह परी-राजकुमारी के प्रेमजाल में इतना अधिक फँस चुका था कि उसे छोड़कर कहीं और जाने के बारे में सोच भी नहीं सकता था । फिर भी, हिम्मत करके उसने उसे इस बारे में बता ही दिया । लेकिन राजकुमारी भी उसे जाने देना नहीं चाहती थी ।

“देखो, तूफान अभी तक पूरी तरह रुका नहीं है; और ऐसे में, कोई भी नाव सागर में टिकी नहीं रह सकती थी। तुम्हारी इच्छा जानकर मेरा मन बुरी तरह व्याकुल हो उठा है।”' परी ने कहा ।

राजकुमार ने परी को सांत्वना दी और जाने देने के लिए पुनः प्रार्थना की । लेकिन बेकार। परी नहीं मानी । परेशान राजकुमार घुटनों के बल उसके सामने बैठ गया और भिक्षा माँगने के अंदाज में बोला, “अगर कुछ दिनों के लिए तुम अपने पंख मुझे दे दो तो मैं उड़कर अपने माता-पिता के पास जा सकता हूँ । मैं उन्हें तुम्हारे बारे में बताना चाहता हूँ । तुम्हारे साथ अपने विवाह की अनुमति पाते ही मैं यहाँ लौट आऊँगा और तुमसे विवाह कर लूँगा। उसके बाद हम अपने देश को लौट जाएँगे ।

“सो तो ठीक है। लेकिन इतना लम्बा समुद्र इन छोटे-छोटे पंखों से उड़कर तुम कैसे पार करोगे?” राजकुमारी आशंकित-स्वर में बोली, “रास्ते में बारिश आ गई और पंख गीले हो गए तो ?

“कुछ नहीं होगा...कुछ नहीं होगा।”' राजकुमार उद्दिग्न-स्वर में बोला, “तुम्हें अपने प्यार पर भरोसा है न!

न चाहते हुए भी परी-राजकुमारी को उसकी बातों को मानना पड़ गया ।

अगले दिन, जैसे ही आकाश में सुबह का तारा चमका, राजकुमार तालाब पर जा पहुँचा। परी को उसके जाने का दुःख था। परन्तु उससे भी अधिक चिन्ता उसे अपने पंखों की थी। वह जानती थी कि अगर पंख नहीं रहे तो सारी परियाँ उसे राजकुमारी मानने से इंकार कर देंगी। अगर पंख नहीं रहे तो सूर्य की पहली किरण पड़ते ही उसके शरीर की कान्ति भी नष्ट होनी शुरू हो जाएगी तथा ठीक सातवें दिन उसका शरीर अदृश्य हो जाएगा फिर कोई भी

देंगी। अगर पंख नहीं रहे तो सूर्य की पहली किरण पड़ते ही उसके शरीर की कान्ति भी नष्ट होनी शुरू हो जाएगी तथा ठीक सातवें दिन उसका शरीर अदृश्य हो जाएगा फिर कोई भी उसे देख नहीं पाएगा और न वह ही किसी से कुछ कह पाएगी ।

लेकिन उसे अपने प्यार पर पूरा भरोसा था। अत: उसने अपने पंख उतारकर राजकुमार को दे दिए ।

पंख लगाकर राजकुमार वहाँ से दूर उड़ गया और फिर कभी भी वापस नहीं आया ।

हैवलॉक द्वीप में, परी-राजकुमारी और उस राजकुमार के मिलने का स्थान वह तालाब

आज भी देखा जा सकता है। ऐसा लगता है जैसे अभी-अभी कोई वहाँ से नहाकर गया है ।

समुद्र के किनारे पर आसपास की शेष सभी चट्टानों से भिन्न एकदम साफ और चिंकनी एक चट्टान है। लोगों का विश्वास है कि प्रेम में धोखा खाकर अदृश्य हुई वह परी-राजकुमारी आज भी उस चट्टान पर बैठी अपने प्रेमी के इंतजार में अंतहीन समुद्र को ताक रही है। कोई भी उसे देख या छू नहीं सकता। वह सब-कुछ देख तो सकती है परन्तु किसी के भी कानों तक आवाज नहीं पहुँचा सकती और न ही किसी को छू सकती है । उसका शरीर हवा जैसा अदृश्य है जिसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है। वह किसी का अहित नहीं करती ।

राजकुमार ने-उसे धोखा दिया अथवा रास्ते में ही पंख गीले हो जाने के कारण वह उड़ नहीं सका और समुद्र में डूबकर मर गया कोई नहीं जानंता ।