अकबर के दरबार में बहुत से दरबारी थे। उनमें सुलतान खाँ बहुत धूर्त था। जब भी मौका मिलता, वह बादशाह के कान भरता रहता।
वह हमेशा बीरबल का विरोध करता था। किन्तु वह यह भी जानता था कि बादशाह अकबर बीरबल को बहुत ज्यादा चाहते हैं।
वह दरबार में अपनी हैसियत मजबूत करना चाहता था। वह चाहता था कि उसके बेटे को दरबार में कोई पद मिल जाए।
इसके लिए मौका मिलते ही जहाँपनाह से उसकी सिफारिश करूँगा।
बीरबल की तेज आँखों से यह बात छिपी हुई न रह सकी। उन्होंने सोचा कि सोचा - मैं हर दिन अपने बेटे को दरबार में ले जाया करूंगा और मौका मिलते ही जहाँपनाह से उसकी सिफारिश करूँगा।
बीरबल की तेज आँखों से यह बात छिपी हुई न रह सकी। उन्होंने सोचा कि सुलतान खाँ अपने शैतान बेटे को अपने साथ लाने लगा है।
दरबार में खंजाची का पद खाली है। वह इस पर अपने बेटे को नियुक्त कराना चाहता है।
एक बार की बात है। दरबार लगा हुआ था। तभी अकबर ने देखा कि सब लोग आ गए हैं। बीरबल अभी तक दरबार में नहीं आए हैं। उन्होंने पूछा, बीरबल कहाँ हैं ?
उनके पास खड़े हुए सेवक ने बताया, वे अभी तशरीफ नहीं लाए जहाँपनाह!
अकबर के चेहरे पर थोड़ी नाराजी दिखाई दी। सुलतान खाँ ने बादशाह की ओर देखा और मन-ही-मन खुश हुआ। उसने अपने बेटे से कहा, बादशाह सलामत बीरबल से नाराज लग रहे हैं। यही मौका है अपनी बात कहने का।
वह अपनी जगह से उठा और बादशाह से निवेदन किया, जहाँपनाह! आजकल बीरबल दरबार के प्रति लापरवाह हो गए हैं।
उन्हें दरबार के वक्त का पाबंद तो होना ही चाहिए।
अकबर ने कहा, लगता है, उन्हें सबक सिखाना पड़ेगा।
सुलतान खाँ ने उनकी हाँ में हाँ मिलाई और बोला, जी जहाँपनाह!
इस पर अकबर ने सुलतान खाँ से कहा, सुलतान खाँ तुम ही कोई तरीका बताओ।
सुलतान खाँ बोला, जी! आज आप उनकी कोई बात नहीं सुनिएगा। वे कुछ भी कहें, उसका एक ही जवाब दीजिएगा - नहीं।
बादशाह अकबर ने उसकी बात का समर्थन करते हुए कहा ठीक है। उनकी हर बात के जवाब में मैं नहीं कहूँगा।
अकबर ने मन में सोचा, यह बीरबल को फँसाने की नई चाल है। देखते हैं कि इस बार बीरबल अपना बचाव किस प्रकार करते हैं ?
कुछ देर बाद बीरबल! तुम्हें देर कैसे हो गई ?
बीरबल ने उत्तर दिया, जहाँपनाह! मेरी पत्नी की तबीयत ठीक नहीं थी। इसलिए......।
अकबर बोले, हमें तुम्हारी बात का यकीन नहीं है।
बीरबल समझ गए कि इसमें जरूर सुलतान खाँ की कोई चाल है। फिर भी उन्होंने कहा, मैं सच कह रहा हूँ, जहाँपनाह! मैं माफी चाहता हूँ।
नहीं, माफी नहीं मिलेगी। अकबर ने सीधा-सा उत्तर दिया।
ठीक है जहाँपनाह! तो फिर राजकाज के मामले निबटाए जाएँ। बीरबल ने निवेदन किया।
इस पर अकबर ने फिर नहीं में उत्तर दिया। बीरबल समझ गया की आज बादशाह हर बात पर नहीं कहेंगे।
उन्होंने पुनः निवेदन किया तो फिर मुझे घर जाने की आज्ञा दी जाए।
किन्तु अकबर ने फिर कहा, नहीं हरगिज नहीं।
बीरबल ने देखा कि सुलतान खाँ के चेहरे पर मुस्कान है। वह अपने बेटे से धीरे-धीरे कुछ वह कह रहा था। तभी बीरबल को एक नई युक्ति सूझी।
उन्होंने निवेदन किया, जहाँपनाह, आपसे एक प्राथना है सुलतान खाँ के बेटे को नया खजांची नियुक्त कर दें।
बादशाह अकबर तो आज नहीं कहने का मन बना चुके थे। उन्होंने जोर देकर कहा, नहीं बीरबल नहीं।
बीरबल ने झुककर आदाब किया और बोले, आपकी जैसी मर्जी जहाँपनाह!
अकबर समझ गए कि बीरबल ने सुलतान खाँ के तीर से ही सुलतान खाँ को घायल कर दिया है।
उनके चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई।
दूसरे दिन दरबार में बीरबल ने देखा कि सुलतान खाँ और उसका बेटा दोनों अनुपस्थित थे। वह मन-ही-मन बोले, चलो, उस धूर्त से छुटकारा मिला।