दृढ़ मनोबल से जीत ली हारी हुई जंग

श्रीहरिपुर के राजा प्रदीप सिंह की असमय मृत्यु के बाद उनके इकलौते पुत्र तेजवीर सिंह को गद्दी पर बैठाया गया।

तेजवीर सिंह अपने पिता कौ तरह साहसी थे, किंतु अनुभव की कमी होने के कारण अनेक बार संकट की स्थिति में घबरा जाते थे।

ऐसे में राजमाता उन्हें हिम्मत देती और उचित मार्गदर्शन द्वारा संकट से उबारती।

पड़ोसी राज्य गंगापुर के राजा भीमसिंह की निगाह श्रीहरिपुर पर थी।

आखिर एक दिन भीमसिंह ने श्रीहरिपुर पर आक्रमण कर ही दिया।

दोनों राज्यों की सेनाओं में घमासान युद्ध होने लगा।

भीमसिंह को सेना बड़ी थी।

अब तक राजा प्रदीप सिंह सेना छोटी होने के बावजूद अपने साहस और हौसले से सेना का मनोबल ऊंचा रख जीतते आए थे, किंतु तेजवीर सिंह इसे कायम नहीं रख पाए।

दो ही दिन में भीमसिंह ने चार मील हिस्से पर अधिकार कर लिया।

राजमाता ने तेजबीर सिंह को बुलाकर उससे पराजय का कारण पूछा।

तेजवीर सिंह ने बताया कि हमारी सेना भीमसिंह की सेना से छोटी है और यही पराजय का कारण है।

जब राजमाता ने तेजबीर सिंह के मुख से छोटी सेना के कारण पराजित होने की बात सुनी, तो उन्होंने मन ही मन कुछ तय किया।

जब रात को तेजवीर सिंह सोने से पहले उन्हें प्रणाम करने आए, तो उन्होंने देखा कि राजमाता छह पतली लकडियों के गठठर से फर्श पर पडे लोहे के बड़े टुकड़े को तोड़ने का प्रयास कर रही हैं।

तेजवीर ने उनसे कहा- “मां! छ्ह हजार लकड़ियां मिलकर भी इस मजबूत लोहे को नहीं तोड़ सकतीं।'

तब राजमाता बोली- 'सही कहा! संख्या से मजबूती को पराजित नहीं किया जा सकता।

इसी प्रकार हमारे वीर सैनिक और तुम लोहे की तरह मजबूत हो।

दुश्मन की अधिक सैनिक-संख्या इसी मजबूती के सामने घुटने टेकेगी।'

तेजबीर ने मां की बातों से प्रेरणा ग्रहण कर अगले ही दिन युद्ध में विजय हासिल की।

सार यह है कि दृढ़ मनोबल से हारी हुई जंग में भी फतह हासिल की जा सकती है।

दृढ़ मनोबल हो तो किसी भी मुश्किल परिस्थिति का सामना आसानी से किया जा सकता है।

इसलिए प्रतिकूलताओं में भी मनोबल ऊंचा बनाए रखें।