राजा ने दी क्षष्टाचारियों को सजा

विजयगढ़ के राजा भानुप्रताप सिंह बहुत दयालु और परोपकारी थे।

एक वर्ष उनके राज्य के कुछ इलाकों में बारिश नहीं हुई।

जिसके कारण कुछ गांवों में अकाल की स्थिति उत्पन्न हो गई।

राजा को अपने मंत्रियों एंब अधिकारियों से इस स्थिति का पता चला।

राजा ने तत्काल अकाल पीडित गांवों में सहायता पहुंचाने का आदेश जारी किया।

मंत्रियों ने तुरंत अनाज, धन व दवाईयां सभी अकाल पीड़ित गांवों के मुखियाओं तक पहुंचाई ताकि वह पीडितों की सहायता कर सकें। कुछ गांवों के मुखिया बहुत ही भ्रष्ट थे।

उन्होंने राजा द्वारा पहुंचाई गई सहायता सामग्री खुद जब्त कर ली तथा कुछ अपने चापलूसों में बांट दी।

राजा के कुछ मंत्री व अधिकारी भी इन मुखियाओं से मिले हुए थे ओर उन्होंने भी राहत सामग्री से अपने घर भरे।

आम आदमी अगर मुखिया के पास आकर राहत की मांग करता तो उसे यह कहकर भगा दिया जाता कि अभी राजा की तरफ से सहायता नहीं मिली हे।

अगर कोई आम आदमी राजा के पास शिकायत लेकर जाने की कोशिश करता तो भ्रष्ट मंत्री व अधिकारी उसे राजा के पास पहुंचने ही नहीं देते थे।

कुल मिलाकर पूरा भ्रष्टाचार का जाल फैला हुआ था।

राजा अपनी तरफ से आम लोगों के लिए सहायता भेजता था लेकिन भ्रष्टाचार की वजह से वह आम आदमी तक पहुंच नहीं पाती थी ओर भ्रष्ट मंत्रियों व अधिकारियों की वजह से आम आदमी की पहुंच राजा तक नहीं हो पाती थी।

इन्हीं गांवों में से एक गांव में रामसिंह नाम का एक किसान रहता था।

उसकी बीवी और बच्चा बीमार थे। वह अपने गांव के मुखिया के पास गया और सहायता की मांग की, किंतु मुखिया ने उसे धमकाकर भगा दिया।

बीवी और बच्चा भूख व बीमारी से मर गए।

रामसिंह बदले की भावना से डाकू बन गया।

पूरे राज्य में एक खतरनाक डाकू के रूप में उसका आतंक हो गया।

एक दिन राजा की सेना ने उसे पकड़ लिया और राजा के सामने पेश किया।

राजा ने उससे डाकू बनने का कारण पूछा। रामसिंह ने राजा से कहा- महाराज! अगर आपके द्वारा भेजी गई सहायता मुझे समय पर मिल गई होती तो आज मेरी बीवी और बच्चा जीवित होते और मैं आज भी एक आम किसान होता।

लेकिन गांव का मुखिया सारी सहायता सामग्री खुद हड्प गया।

रामसिंह की बातें सुनकर राजा को बहुत दुख हुआ और उसने स्वयं सारे मामले की जांच पड़ताल करने का फैसला किया।

राजा ने अपनी जांच में कई भ्रष्ट मंत्रियों और गांव के मुखियाओं का पर्दाफाश किया और उन्हें जेल में डाल दिया।

वस्तुत: संकटग्रस्त लोगों की सहायता करना पुण्य कार्य है, सहायता वास्तविक व्यक्तियों तक पहुंचना बहुत जरूरी है।

हर देश के शासकों को इस बात का हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि उनके द्वारा जरूरतमंदों को दी जाने वाली सहायता वास्तव में जरूरतमंदों तक पहुंच भी रही है कि नहीं।