हिटलर के आगे नहीं झुका वैज्ञानिक

जर्मनी के महान्‌ वैज्ञानिक थे- नील्स बोर।

नील्स अत्यंत प्रतिभाशाली ओर तत्कालीन शासक हिटलर के प्रिय थे।

नील्स अपने सटीक शोध-परिणामों के लिए सर्वत्र प्रशंसा पाते थे।

नील्स जो भी शोध-कार्य करते, मानवता के हित में ही करते।

उनकी दृष्टि अपने लाभ पर न होकर मानव जाति के कल्याण पर रहती थी।

एक बार उन्होंने अणु विज्ञान का शोधे-कार्य अपने हाथों में लिया।

वे बहुत प्रसन्न होकर लगन के साथ इसे कर रहे थे, क्‍योंकि उनका विश्वास था कि इससे वे व्यापक रूप से जनहित को साकार कर पाएंगे।

वे अणु विज्ञान के रचनात्मक उपयोग को देख रहे थे, कितु हिटलर की दृष्टि उसके घातक उपयोग पर थी और वह इसी कारण बहुत प्रसन्‍न था।

जब नील्‍स को यह बात पता लगी, तो वे बहुत दुखी हुए। अपने शोध-कार्य के विनाशकारी उपयोग की कल्पना मात्र से उनके रोंगटे खड़े हो गए।

कई रात वे सो नहीं पाए। फिर एक दिन रात में चुपके से उठे और गैलीलियो की समाधि पर सिर रखकर शपथ ली कि वे ऐसे किसी भी कार्य को नहीं करेंगे, जो मानवता के लिए घातक हो।

उन्होंने दूसरे दिन से ही अपना शोध-कार्य बंद कर दिया। हिटलर को ओर से उन्हें कई प्रकार के प्रलोभन दिए गए। जब वे नहीं माने, तो घोर यंत्रणा दी गई। किंतु नील्स नहीं डिगे।

अतत: मछुआरों कौ मदद से वे भागकर स्वीडन जा पहुंचे। ऐसा कहा जाता है कि उनके अंतिम दिन बड़े कष्टमय थे, कितु उन्होंने झुकना स्वीकार नहीं किया।

वस्तुत: व्यापक हितों के लिए व्यक्तिगत हितों की उपेक्षा करने वाला तात्कालिक समय में भले ही इस त्याग के कारण कष्ट पाए, किंतु भविष्य की सभी पीढ़ियों के लिए प्रशंसा, श्रद्धा व अनुसरण का पात्र हो जाता है।