अपराध और सजा

मुल्ला नसरुद्दीन कहानी - Mulla Nasruddin

एक बार एक आदमी डरा-सहमा-सा स्ख्रोजा के पास पहुंचा।

स्ख्रोजा ने ज्यों ही उसे अपने घर के भीतर बैठने को कहा, वह व्यक्ति बताई हुई जगह पर न बैठकर दरवाजे के पास पहुंचा और दरवाजे को भीतर से बंद करने के बाद खोजा के एकदम करीब आकर बोला, “खोजा भाई!

मैं एक अपराधी हूं।

मैंने एक किशोरी के साथ पहले बलात्कार किया, फिर उसकी हत्या भी कर दी।

लेकिन मैंने दोनों अपराध अनजाने में किए हैं, क्या तुम मेरा मुकदमा लड़ सकते हो ?”

खोजा ने कहा, “मैं तुम्हारा मुकदमा लड़ सकता हूं।

इसके लिए तुम्हें मुझको दो हजार रुपए देने होंगे।

जिस दिन तुम मुझे इतनी रकम दे दोगे, मैं तुम्हारा मुकदमा लड़ने के लिए चल पड़ूंगा।”

ख़ोजा की फीस सुनते ही वह व्यक्ति ख़ोजा से विदा लेकर चल दिया।

खोजा ने कई दिन तक उस व्यक्ति का इंतजार किया, लेकिन वह व्यक्ति फिर लौटकर नहीं आया। काफी अरसा बीत जाने के बाद एक दिन फिर वह आदमी खोजा के घर पहुंचा। इससे पहले कि खोजा उसे पहचानने की कोशिश करता, उसने खुद ही अपना परिचय देना शुरू किया।

“खोजा भाई! तकरीबन सोलह साल पहले मैं आपके पास आया था। तब मैंने बताया था कि मैंने एक किशोरी से बलात्कार करने के बाद उसकी हत्या कर दी है।

मैं चाहता था कि आप मेरा मुकदमा लडें। हालांकि आप तैयार थे किंतु मैं ही फिर आपके पास नहीं आया।”

खोजा को सब कुछ याद आ गया। उसने उस अपराधी से कहा, “चलो कोई बात नहीं। तुम नहीं आए, यह तो समझ में आया, लेकिन फिर तुम्हारे मुकदमे का क्‍या हुआ ? तुम्हें सजा हुई या नहीं!”

अपराधी बोला, “अभी मेरा मुकदमा विचाराधीन है। इस बीच अपना मुकदमा लड़ने के लिए मैंने कई वकील किए। मुकदमेबाजी में मैं अब तक तकरीबन पांच लाख रुपए लगा चुका हूं। छोटी से लेकर बड़ी अदालत तक मेरा मुकदमा चल चुका है। लेकिन मुझे अभी भी यह लग रहा है कि मुझे मौत की सजा मिलेगी।” ऐसा कहकर वह अपराधी खोजा की तरफ टुकुर-टुकुर देखने लगा।

खोजा को उम्मीद थी कि वह अभी अपनी कहानी पूरी करेगा, लेकिन जब काफी देर तक वह कुछ नहीं बोला तो खोजा ने स्वयं

ही पूछ लिया, “तुम मुझे यह बताओ कि अब तुम मुझसे क्‍या चाहते हो ?”

वह आदमी बोला, “स्रोजा भाई! मैं चाहता हूं कि बड़े काज़ी की अदालत में मेरे मुकदमे की पैरवी आप करें।”

यह सुनकर खोजा ने उसे समझाया, “भाई मेरे! सोलह साल पहले मात्र दो हजार रुपए लेकर में तुम्हें इस मुकदमे से मुक्ति दिला रहा था। तुमने इतना पैसा और समय व्यर्थ ही बर्बाद कर दिया। इतने धन से तो तुम्हारा परिवार कब का मालामाल हो चुका होता। तुम्हें तो तब भी इस दुनिया से जाना था और अब भी जाआओगे।

अलबत्ता अब अपने परिवार को कंगाल करके जाओगे। तुमने जो जुर्म किए हैं, वे कतई माफी के काबिल न तो उस वक्‍त थे और न आज हैें।”

यह सुनकर वह अपराधी अपना-सा मुंह लेकर लौट गया।