एक दिन बादशाह ने खोजा से पूछा, “खोजा!
क्या यह बात सच है कि कारीगर लोग मालिक की आंखों में धूल झोंककर अपना उल्लू सीधा कर लेते हैं ?
लोगों में इस बारे में बराबर चर्चा सुनने में नजर आती है।"
खोजा बोला, “जहांपनाह।
यह तो आंखों देखी, कानों सुनी बात है, जो जिस काम को करता है, वह उसमें निपुण हो ही जाता है।"
बादशाह ने फिर पूछा, “तो क्या सुनार, लोहार, दर्जी पेशे के लोग सभी चोर ही होते हैं।" खोजा ने उत्तर दिया, “मैं यह कैसे कह सकता हूं जहांपनाह, कि सभी कारीगर चोर ही होते हैं, परंतु फिर भी कितनों की चोरी जग
जाहिर हो चुकी है, जैसे सुनार को ही लीजिए।इनके संबंध में लोगों का यकीन है कि चाहे कोई कितनी ही चौकसी कर ले, सुनार उनके सोने में से कुछ न कुछ माल चोरी कर ही लेते हैं। इनकी ये चालाकी ) की कला दुनिया भर में मशहूर है।
लोग तो यहां तक कहते हैं कि दुनिया की बातें तो दर-किनार रहीं, सुनार तो अपनी मां-बेटी, बहनों के जेवरातों में से भी सोने की चोरी कर लेते हैं। यदि चुराना भूल गए तो समझो, उस रात उन्हें नींद ही नहीं आती।'
खोजा ने आगे कहा, “इस तरह की एक घटना तो मेरे सामने ही घटी थी, इजाजत हो तो वह सुना दूं।"
"हां-हां इजाजत है, सुनाओ।" बादशाह ने कहा।
जहांपनाह, इसी शहर में बहुत पहले एक बूढ़ा सुनार रहा करता था।
वह इतना बूढ़ा हो चुका था कि काम के दौरान उसके हाथ कांपने लगे थे।
तब उसने अपने बेटे को सुनारी का काम सिखाना शुरू किया। बेटे ने बाप से सभी गुर सीख लिए कि ग्राहक सामने बैठा हो तब भी उसके जेवरात में से किस तरह सोना निकाला जा सकता है या यह कि किस प्रकार उसके सोने को उसके सामने तौलकर भी कैसे कम दिखाया जा सकता है।
बूढ़े सुनार ने इस धंधे के सभी गुर अपने बेटे को बता दिए।
इत्तफाक से एक दिन उसकी बेटी उसके पास आ गई। वह अपने साथ कुछ सोना लेकर आई थी और चाहती थी कि उसका भाई उसके सोने से उसके लिए कुछ आभूषण तैयार करा दे। बेटी को दूसरे सुनारों पर यकीन नहीं था।
एक सुनार की बेटी होने के कारण वह जानती थी कि कहां-कहां हेरा-फेरी की गुंजाइश होती है, इसलिए उसने अपने भाई से अपने गहने बनवाने का फैसला कर लिया था।
अपना सारा सोना तुलवाने के बाद सुनार की बेटी ने अपने पिता और भाई से कह दिया कि वह इस सोने से अमुक-अमुक गहने बना दे।
अब तो सुनार और उसके बेटे के सामने यह समस्या पैदा हो गई कि वह अपने खून के साथ दगाबाजी कैसे करें ?
सुनार की बेटी अपने पिता और भाई के पास उसकी कार्यशाला में बैठी रहती थी। लेकिन बाप और बेटे ने संकेतों की भाषा में बोलकर अपनी बेटी को चकमा दे दिया।
जितने वज़न का सोना बेटी ने अपने पिता को सौंपा था, उतने वजन का सोना तो पूरा कर दिया, लेकिन सोने का कुछ अंश निकालकर उसमें तांबा मिला दिया।
अब बेटी भी खुश और उसका पिता व भाई भी खुश!
ये कहानी सुनाकर ख़ोजा ने कहा, "इसीलिए मैं कहता हूं कि लोगों के इस विश्वास में कि कारीगर कभी तौल पूरी करके नहीं देता, में कुछ तो दम है ही।"
तुम ठीक कहते हो खोजा। बादशाह ने कहा, "न जाने कब यह गंदी आदत छूटेगी कारीगरों की।"
"खुदा के सामने जहांपनाह। जब उसके सामने कर्मों का कच्चा चिट्ठा खुलेगा तब। तब ऐसे लोगों को उनके गंदे कर्मों का चुन-चुनकर हिसाब देना पड़ेगा।
उन्हें बुराई की आग में जलना पड़ेगा, तब ऐसे लोग उसके (खुदा के) सामने गिड़गिड़ाएंगे, माफी मांगेंगे किंतु उनकी करनी का फल तो उन्हें हर हाल में भुगतना ही होगा।