एक बार क़ाज़ी एक पका-पकाया कलहंस बादशाह को भेंट करने आया।
उसने बादशाह से कहा, बादशाह सलामत! आज आपका जन्मदिन है।
मैं जानता हूं कि आपको कलहंस का मांस बहुत ज्यादा पसंद है।
इसलिए मैं यह कलहंस खुद पकाकर आपको और आपके परिवार के लोगों को खिलाने आया हूं।"
बादशाह की दोनों शहजादियां कलहंस की टांगें और उसके दो बेटे कलहंस का सीना खाने के लिए मचलने लगे।
बादशाह और उसकी बेगम को कोई उपाय नहीं सूझा तो उन्होंने राजमहल के सेवक खोजा को बुलवाया और कलहंस का बंटवारा करने को कहा।
खोजा ने चाकू से कलहंस का सिर काटकर बड़े अदब के साथ बादशाह को देते हुए कहा, 'जहांपनाह!
आप हमारे मुल्क के सरताज हैं। आपको सिर खाना चाहिए। मेरी दिली ख्वाहिश है कि आप हमारे मुल्क के सरताज बने रहें।"
इसके बाद उसने कलहंस की गर्दन काटकर बेगम को पेश की और बोला, "कहावत है कि यदि शौहर की उपमा सिर से दी जाए तो बेगम की उपमा गर्दन से दी जानी चाहिए।
इसलिए आपको यह गर्दन दे रहा हूं। मेरी दिली ख्वाहिश है कि आप बादशाह सलामत से कभी न बिछुड़ें।"
फिर उसने कलहंस का एक-एक डैना दोनों शहजादियों को दिया और कहा, “मेरी दिली ख्वाहिश है कि तुम्हारी शादी किसी अच्छी जगह हो जाए।
ये डैना खाकर तुम अपने-अपने शौहरों के साथ दूर तक जा सकोगी।
" फिर उसने दोनों शहजादों को कलहंस का एक-एक पंजा दे दिया और कहा, “तुम लोग बादशाह के तख्त के वारिस हो। पंजा खाकर तुम राजगद्दी पर मजबूती से पांव जमा सकोगे।"
कलहंस के सीने और टांगों का गोश्त ही काफी बच गया था।
खोजा अपनी बात जारी रखते हुए बोला, किसी भी मुल्क की जनता ही उस मुल्क का सीना और पांव होती है।
जनता की ही मेहनत और लगन से कोई मुल्क आवाद और धनवान बनता है।
बादशाह और उसके वारिस ही जिस मुल्क की जनता का दिल और टांगें खाने लगें, उस मुल्क के शासक के दिन जल्दी ही लदने वाले होते हैं, ऐसा समझना चाहिए।
इस लिहाज से यदि इस कलहंस का सीना और टांगें हमारे बादशाह या उनका परिवार खाता है, तो यह एक अपशकुन होगा।
बेहतर यह होगा कि उसे मैं यानी इस मुल्क का आदमी नसरुद्दीन खोजा खाएं।"
यह कहता हुआ वह उस कलहंस के सीने और टांगों का गोश्त उठाकर राजमहल से बाहर चला गया और ड्योढ़ी पर बैठ कर मजे से खाने लगा।
कहना न होगा कि कलहंस के सीने और टांगों का गोश्त ही सबसे लजीज माना जाता है।