महल की दीवार

मुल्ला नसरुद्दीन कहानी - Mulla Nasruddin

एक दिन खोजा राजमहल के सामने से गुजर रहा था।

उसने देखा कि मंत्रियों की निगरानी में बहुत से मजदूर महल के अहाते की दीवार पहले से ज्यादा ऊंची बना रहे हैं।

यह देखकर उसे बड़ा ताज्जुब हुआ।

आगे बढ़कर उसने एक मंत्री से पूछ लिया, “भाई! यह दीवार तो पहले से काफी ऊंची हे।

इसे ओर ऊंचा बनाने की क्‍या जरूरत है ?”

“तुम भी केसे मूर्ख हो, खोजा। इतनी-सी बात भी नहीं समझते।”

मंत्री बोला, “यह दीवार बाहर से आने वाले चोरों को रोकने के लिए चुराकर न ले जा सकें।

” यह सुनना था कि खोजा बनाई जा रही है, जिससे कि वे राजमहल से सोना-चांदी-हीरे-मोती पहले तो मंद-मंद मुस्कराया, फिर थोड़ा खुलकर हंस पड़ा।

फिर भी उसका मन शांत नहीं हुआ तो जोर-जोर से हंसने लगा।

खोजा को हंसते-हंसते काफी देर हो गई, लेकिन किन उसकी हंसी थमने का नाम नहीं ले रही थी।

खोजा को हंसते देख वहां मौजूद मंत्री और अफसर पहले तो इसी बात पर हैरान हुए कि खोजा इतनी-सी बात क्र हंस क्‍यों रहा है ?

फिर जब काफी देर तक हंसता ही रहा तो उन्हें हंसी में अपनी बेइज्जती महसूस हुई।

वे खोजा का मुंह बंद करने का कोई उपाय सोचते उससे पहले ही वहां मौजूद तमाम मजदूर भी देर से अपनी हंसी रोके हुए थे, ख़ोजा की हंसी में शामिल हो गये।

खोजा तो चलो बाहरी आदमी था, थोड़ी-बहुत उसकी साख भी थी, बादशाह तक उसे पहचानता था, इसलिए एक बार को उसकी हंसी को मंत्री और अफसर सहन कर सकते थे, लेकिन जब मजदूर भी हंसने लगे तो उनका पारा सातवें आसमान पर जा पहुंचा।

वे खुद तो ख़ोजा को उसकी हंसी के लिए कोई सजा नहीं दे सकते थे, इसलिए उन्होंने खोजा को पकड़ा और उसे राजमहल के भीतर ले चले।

अब आलम यह था कि आगे-आगे हंसता हुआ ख़ोजा चल रहा था और उसे दोनों तरफ से पकड़े मंत्री और अफसर चल रहे थे।

उन सबके पीछे कुछ मजदूर भी लग लिए थे।

मंत्रियों ने राजदरबार में पहुंचकर सख्रोजा को बादशाह के सामने पेश किया और उस पर आरोप लगाया कि वह जोर-जोर से हंस कर मजदूरों का ध्यान उनके काम पर से हटा रहा था।

इसलिए सरकारी काम में अड्चन डालने के जुर्म में खोजा को कड़ी सजा दी जाए।

बादशाह ने खोजा से पूछा, “खत्रोजा! क्या तुम्हें अपना जुर्म स्वीकार है ?” खोजा ने कहा, “नहीं जहांपनाह!

जुर्म मैं नहीं ये आपके मंत्री और अफसर कर रहे हैं।

मैं तो इनकी मूर्खता पर हंस रहा था। यदि कोई सजा देनी जरूरी है तो वह सजा इन्हें दी जाए।”

बादशाह की समझ में नहीं आया कि खोजा ने उसके मंत्रियों और अफसरों को कौन-सा जुर्म करते देख लिया है।

उधर मंत्रियों और अफसरों की भी यही दशा थी। उन्हें भी यह नहीं पता था कि वे कौन-सा जुर्म कर रहे थे। यह तो राज कार्य था। इसमें भला जुर्म वाली बात कहां से आ गई ?

एकाएक बादशाह को लगा कि हो न हो, खोजा ने इन्हें या तो दीवार बनाने वाले मसाले में मिलावट करते देख लिया है, या फिर दीवार के लिए आई सामग्री में से कुछ सामग्री अपने घरों में ले जाते देख लिया है या फिर इनके द्वारा की जा रही किसी लापरवाही को देख लिया है।

इनमें से दरअसल हुआ क्या है, यह खुद खोजा से ही जानने के लिए बादशाह ने कहा, “स्त्रोजा! हम जानते हैं कि न तो तुम झूठ बोलते हो, न किसी की परवाह करते हो।

हमेशा आम जनता की और हमारी रियासत की भलाई ही सोचते हो। इसलिए हम जानना चाहते हैं कि तुमने हमारे राजकर्मचारियों को कौन-सा जुर्म करते देख लिया है।

इसका खुलासा करो। हम तुम्हें यकीन दिलाते हैं कि यदि वे सचमुच गुनहेगार पाए गए तो हम उन्हें सजा देंगे और तुम्हें इनाम भी देंगे।”

जिन मंत्रियों ने अब तक खोजा की दोनों बांहें पकड़ी हुई थीं, उन्हें अपनी बांहें छोड़ देने के लिए आंखों ही आंखों में इशारा करने के बाद खोजा ने कहा,

“जहांपनाह! मैं जब राजमहल के बाहर से गुजर रहा था, तब मैंने देखा कि राजमहल की सुंदर दीवार ऊंची की जा रही है।

मैंने इसकी वजह जाननी चाही तो इन्होंने बताया कि चोरों को राजमहल में जाने से रोकने के लिए ऐसा किया जा रहा है।”

“यह तो हमें भी खबर है, पर इसमें हंसने-हंसाने वाली क्‍या बात हुई ?” बादशाह ने खोजा को टोका।

मैं वही तो बताने जा रहा हूं, जहांपनाह! दरअसल, पहले तो मुझे यह जानकर ही अफसोस हुआ कि ये लोग राजमहल की दीवार को ओर भी ऊंचा करके इसकी खूबसूरती को मटियामेट कर रहे हैं, फिर यह सोचकर भी अफसोस हुआ कि दीवार की ऊंचाई और बढ़ जाने से आम लोग यही सोचेंगे कि बादशाह ने उनके और अपने बीच और भी दूरी बढ़ा ली है। इससे आपकी शान में बेवजह गुस्ताखी होगी।

ये दोनों बातें सोचकर मुझे अफसोस हुआ। मेरी शुरू की हंसी दरअसल हंसी नहीं बल्कि अफसोस का सिसियाना इजहार था। फिर मैं जोर से इसलिए हंसा क्‍योंकि तभी मुझे आपके मंत्रियों और अफसरों की बेवकृफी और गुनाह का विचार हो आया।

“वही तो हम जानना चाहते हैं, ऐ दानिशमंद खोजा, कि तुम्हें इसमें हमारे मंत्रियों और अफसरों की बेवकूफी और गुनाह कहां से नजर आ गया ?

” बादशाह ने खोजा को जरा ज्यादा ही विस्तार में तान छेड़ते देख बीच में ही फिर टोका।

“वही तो मैं बताने जा रहा था, मेरे आका। आप थोड़ा सब्र तो कीजिए। दरअसल, मुझे यह समझते देर नहीं लगी कि आपको राजमहल

में चोरियों की वजह जरूर इन्हीं लोगों ने बताई होगी कि चोर दीवार फांद कर राजमहल में घुस आते हैं और चोरी कर ले जाते हैं।

पर हकीकत यह नहीं है।

माना कि दीवार ऊंची करने से बाहर के चोर राजमहल में नहीं घुस पाएंगे, लेकिन इससे राजमहल में चोरियां घटेंगी, इसकी कोई गारंटी नहीं।

थाली में खाकर उसी में छेद करने की आदत जब तक नहीं छोडेंगे, तब तक राजमहल में चोरियां होती रहेंगी और आप जैसे बादशाह आम जनता को चोर समझ कर महल की दीवारें ऊंची उठवाते रहेंगे।”

खोजा की दलील पूरी होते ही वहां मौजूद मंत्रियों और अफसरों के मुंह फीके पड़ गए। शर्म से उनकी गर्दनें झुक गईं।

मजदूरों के चेहरे खिल उठे और स्वयं बादशाह किसी सोच में डूब गया।

तभी खोजा ने बादशाह से पूछा, “जहांपनाह! बाहर के चोर तो यह दीवार फांद कर

अंदर नहीं घुसने पाएंगे, मगर यह तो बताइए कि महल के अंदर के चोरों को केसे रोका जाएगा ?”

बादशाह ने अगले ही पल नया फरमान जारी कर दिया कि महल की दीवार ऊंची न कराई जाए।

बादशाह का फरमान सुनते ही खोजा के चेहरे पर उदासी छा गई। उसे उदास होते देख बादशाह ने पूछा, “खोजा तुम अचानक उदास क्‍यों हो गए ?

” खोजा बोला, “जहांपनाह! यह तो सही है कि आपके नए फरमान से महल कौ खूबसूरती जाते-जाते रह गई, लेकिन मुझे अफसोस है कि मेरी नेक सलाह के चलते इन मजदूरों को अपनी आज की दिहाड़ी तो गंवानी ही पड़ी।

हो सकता है, कल भी इन्हें काम न नसीब हो। अब इनके घर में चूल्हा कैसे जलेगा।”

बादशाह ने खोजा को भरोसा दिलाते हुए कहा, “नहीं खोजा, नहीं! तुमने हमारी प्रजा की नजर में हमारी इज्जत घटने से बचाई है। ऐसे में हम अपनी प्रजा का बुरा कैसे होने दे सकते हैं।

ये मजदूरी भी हमारी रियाया ही हैं, इसलिए इन्हें दीवार न बनाने के बावजूद भी उतने दिन की दिहाड़ी रियासत के खजाने से दी जाएगी, जितने दिन में महल की दीवार ऊंची होनी थी।"

बादशाह के इस फैसले ने न केवल खोजा को बल्कि वहां आए और न आए तमाम मजदूरों को जो खुशी और राहत पहुंचाई, उन्हें शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता।