एक दिन खोजा के एक दोस्त ने अपने घर पर दावत के लिए कई लोगों को बुलाया।
खोजा से उसकी दोस्ती लंबे अरसे से चली आ रही थी।
इस बीच खोजा तो अपने पुराने हाल में ही बना हुआ था, लेकिन उसका दोस्त काफी अमीर बन चुका था।
दरअसल, दावत के बहाने वह अपने दोस्तों को अपनी कामयाबी के बारे में बताना चाहता था।
उन्हें अपनी समृद्धि दिखाना चाहता था।
दावत के लिए उसके सब दोस्त तो सज-धजकर पहुंचे लेकिन खोजा अपने सादे लिबास में ही पहुंचा, जिसे वह रोजाना पहनता था।
खोजा के उस दोस्त ने खोजा को रोजाना पहनने वाले लिबास में देखा तो उसने मन ही मन निश्चय कर लिया कि वह न तो खोजा का स्वागत करेगा और न उसे मकान के अंदर आने देगा।
ज्यों ही खोजा उसके दरवाजे पर पहुंचा, खोजा के दोस्त ने न तो उससे हाथ मिलाया और न अंदर आने को कहा।
दोस्त को डर था कि इतने गरीब आदमी के साथ दोस्ती रखने की वजह से कहीं लोग उसकी खिल्ली न उड़ाएं।
खोजा बिना मायूस हुए अपने घर लौट आया।
घर लौटने के बाद खोजा ने नए कपड़े पहने और फिर उसी दोस्त के घर जा पहुंचा।
इस बार उसके दोस्त ने उसकी खूब खातिर की।
फिर दस्तरखान पर रखे पकवानों की ओर इशारा करते हुए कहा, "मेरे अजीज दोस्त! आइए, नोश फरमाइए।"
खोजा ने पकवानों में से एक पकवान उठाया और अपने पोशाक पर डालने लगा।
वहां मौजूद सारे मेहमान खाना छोड़कर खोजा की तरफ हैरत भरी नजरों से देखने लगे।
सबके हाथ रुके हुए देखकर खोजा के मेज़बान दोस्त ने भी ख़ोजा की ओर देखा।
उसे खोजा की यह हरकत कुछ अजीब-सी लगी। उसने पूछा, “खोजा! आप यह क्या कर रहे हैं ?"
खोजा ने जवाब दिया, "मेरे प्यारे दोस्त!
आपको दिखाई नहीं दे रहा कि मैं अपनी इस शानदार पोशाक को खाना खिला रहा हूं जिसे आपने इतनी इज्जत दी है। यदि मैं इस पोशाक को पहनकर न आया होता तो इस बार भी आपने मुझे यकीनन घर से निकाल दिया होता।
दरअसल, आपके घर में मेरी नहीं, इस पोशाक की इज्जत हुई है, इसलिए खाना खाने का हक भी मुझे नहीं, मेरी पोशाक को है।"
कहना न होगा कि खोजा की खरी-खरी बातें सुनकर उसका दोस्त ही नहीं, उसके मेहमान भी बहुत शर्मिंदा हुए।