खोजा ने खोला रंगाई का कारखाना

मुल्ला नसरुद्दीन कहानी - Mulla Nasruddin

खोजा जब भी किसी को उड़े हुए रंगों के कपड़े पहने देखता था, उसे बहुत कोफ्त होती थी।

वह सोचता था कि किसी आदमी के पास कपड़े न हों इसलिए वह फटे कपड़े पहने, यह तो उसकी मजबूरी हो सकती है,

लेकिन जब वह कपड़े पहने हो, वे कपड़े रंगे हुए भी हों तब ऐसा क्यों होता है कि कपड़े के रंग उड़े-उड़े होते हैं।

आखिर कोई भी आदमी खुद तो कपड़े रंगता नहीं। रंगाई तो किसी रंगसाज से ही करवाता है जो जल्दी ही उड़ जाते हैं।

खोजा ने कुछ लोगों से बात की कि वे तो रंगाई के कारखाने वालों को पक्के रंग के ही पैसे देते हैं, लेकिन रंगसाज हैं कि उनके कपड़ों पर कच्चा रंग करके कपड़ा थमा देते हैं।

मजबूरी में उन्हें वही कपड़े पहनने पड़ते हैं और नतीजा यह होता है कि कुछ ही दिनों में कपड़ों से रंग हल्के और फीके पड़ जाते हैं।

खोजा के मन में यों तो तरह-तरह के सवाल और उपाय आते थे, मसलन वह लोगों को इस बात की जानकारी दे कि उनके पहनावे की वजह से उनका वजूद गया-गुजरा-सा लगता है या यह कि जब तुम रकम खर्च ही करते हो तो फिर उसमें कंजूसी क्यों करते हो, वगैरह, वगैरह।

लेकिन दो-चार लोगों से बातचीत करने के बाद खोजा को पता चला कि न तो उन लोगों को हलके रंगों के या उड़े हुए रंगों के कपड़े पहनने का शौक है, न ही वे कपड़े रंगवाने में कंजूसी करते हैं।

यह मजबूरी है कि उन्हें जैसे कपड़े रंगसाज रंग कर देता है वही उन्हें पहनने पड़ते हैं। चूंकि वह एक ही है।

खोजा ने काफी सोच-विचार के बाद यह तय किया कि वह स्वयं रंगाई का एक कारखाना खोलेगा।

मेहनती लोगों की तो मुल्क में कोई कमी नहीं, “इसलिए वह दो-चार कारीगर रख लेगा।

इस तरह से कुछ लोगों को रोजगार मिल जाएगा और शेष लोगों को पक्के रंग से रंगे हुए कपड़े।

तब कम से कम फीके, हल्के, उड़े हुए रंगों के कपड़े पहने लोग दिखाई नहीं पड़ेंगे।

मन ही मन पूरी योजना बनाने के बाद एक दिन सचमुच खोजा ने रंगाई का कारखाना खोल लिया।"

देखते ही देखते उसका कारखाना काफी मशहूर हो गया। उसकी वजह यह थी कि एक तो वह लोगों से मुनासिब रंगाई की कीमत वसूल करता था, दूसरे किसी के भी कपड़े को रंगाई के दौरान बर्बाद नहीं करता था।

जैसा कि दूसरे रंगाई कारखानों में लापरवाही की वजह से अक्सर हो जाया करता था।

तीसरे वह रंगाई में पक्के रंगों का इस्तेमाल करता था।

चौथे जिसे जो वक्त दिया जाता था, ठीक उसी वक्त उसे अपना रंगा हुआ कपड़ा मिल जाता था। यह नहीं होता था कि आज तो काम हो नहीं पाया, कल आना, परसों आना।

खोजा के रंगाई कारखाने से पड़ोस के गांव के एक सेठ को बहुत परेशानी होने लगी।

जब से खोजा ने कारखाना खोला, सेठ का अपना कारखाना धीरे-धीरे ठप होने लगा।

लोगों ने उसके कारखाने की तरफ आना-जाना ही बंद कर दिया।

वजह यह थी कि सेठ के कारखाने से लोग नाखुश थे।

चूंकि उनके गांव में कोई और कारखाना नहीं था इसलिए मजबूरन वे लोग पड़ोस के गांव में सेठ के कारखाने में कपड़े रंगवाने जाते थे।

आखिर सेठ ने खोजा का कारखाना बंद करवाने की ठानी।

इसके लिए उसने यह योजना बनाई कि खोजा को बदनाम कर दिया जाए।

जब बदनामी होगी तो फिर लोग जरूर खोजा के कारखाने से मुंह मोड़ लेंगे।

अपनी योजना पर अमल करते हुए एक दिन सेठ अपने गांव से चलकर कपड़े का एक छोटा-सा टुकड़ा लेकर खोजा के पास पहुंचा।

दरवाजे पर पहुंचते ही उसने आवाज लगाई, "ओए खोजा के बच्चे! कहां मर गया रे तू! देखता नहीं दरवाजे पर ग्राहक कब से आया खड़ा है ?

क्या तेरे कारखाने में ग्राहकों को इसी तरह इंतजार में खड़ा रहना पड़ता है !

यदि मुझे पहले से यह पता होता तो इधर का रुख ही नहीं करता।"

सेठ की आवाज सुनते ही ख़ोजा अंदर से दरवाजे पर पहुंचा और सामान सहित सेठ को कारखाने के भीतर ले गया।

उसे बैठने को एक आसन दिया और उसका आदेश सुनने के लिए स्वयं उसके सामने गया।

खोजा को यों नतमस्तक देख सेठ और भी अकड़कर बैठ गया।

खड़ा हो..

पर फिर अपनी जेब से कपड़े की एक चिंदी निकालकर खोजा से बोला, "जरा यह कपड़ा तो अच्छी तरह रंग दो।

मैं देखना चाहता हूं कि तुम्हारा हुनर कैसा है ?

" खोजा ने कपड़े का वह छोटा-सा टुकड़ा पकड़ते हुए पूछा, “सेठ जी! आप कैसा रंग चाहते हैं ?"

सेठ बोला, "रंग! रंग के बारे में तो मेरी कोई खास पसंद नहीं है, तुम मुझे सफेद, लाल, नारंगी, पीला, हरा, आसमानी, नीला, काला और बैंगनी रंग कतई अच्छे नहीं लगते।

समझे कि नहीं।"

सेठ की बात सुनकर खोजा समझ गया कि यह ग्राहक मुझसे कपड़ा रंगवाने के लिए नहीं, बल्कि मुझे बदनाम करने आया है।

उसने कपड़े का वह टुकड़ा एक दराज के हवाले करते हुए कहा, “समझ गया हूं।

अच्छी तरह से समझ गया हूं। मैं जरूर आपकी पसंद की रंगाई कर दूंगा।

अच्छा है! तो फिर मैं इसे लेने किस दिन आऊं ?"

खोजा ने दराज में ताला लगाकर चाबी अपने जेब के हवाले करते हुए कहा,

आप इसे लेने सोमवार, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि और रविवार को छोड़कर किसी भी दिन आ सकते हैं।"

सेठ समझ गया कि खोजा ने उसे मात दे दी है। वह मुंह बाए उसकी तरफ देखता ही रह गया।