एक बार स्वयं को पहलवान कहलवाने वाला एक आदमी खोजा के पास पहुंचा और उससे बोला, “सुना है तुम अक्ल के पहलवान हो और मैं ताकत का!
अगर हम दोनों दोस्त बन जाएं तो कैसा रहेगा ?
पर तुमसे दोस्ती करने से पहले मैं तुम्हारी अक्ल का नमूना देखना पसंद करूंगा।
तभी यह तय करूंगा कि मुझे तुमसे दोस्ती करनी चाहिए या नहीं।
खोजा को न तो उसका आना अच्छा लगा न शर्त रखना।
उसने आगंतुक की ओर गौर से देखने के बाद उससे पूछा, “पहले तो मुझे यह बताओ कि तुमको यहां भेजा किसने है ?
फिर यह बताओ कि मुझमें ताकत नहीं है और तुम मुझसे ज्यादा ताकतवर हो, यह तुमने कैसे जाना ?
फिर यह भी बताओ कि तुम्हारे अंदर कितनी ताकत है ?"
पहलवान बोला, “मैं किसी के भेजने पर यहां नहीं आया हूं, अपनी मर्जी से आया हूं।
दरअसल, मैं जानता हूं कि मुझमें अक्ल की थोड़ी-सी कमी है।
मैं कई बार लोगों से यह सुन चुका हूं कि खोजा से ज्यादा अक्लमंद और कोई नहीं है।
वह अपनी अक्लमंदी से अच्छे-अच्छों को पटखनी दे देता है।
मैं लोगों के कहने को सच नहीं मानता। मेरा मानना है कि अक्ल से कुछ नहीं होता, जो होता है, शरीर की ताकत से ही होता है।
मैं आपकी अक्ल का कोई नमूना देखना चाहता हूं कि मैं 500 किलो वजन वाली चट्टान को सिर्फ हाथ से आसानी से उठा सकता हूँ और नगर की चारदीवारी से बाहर फेंक सकता हूं।"
खोजा ने उसकी तरफ घूरते हुए कहा, "बस-बस! ज्यादा शेखी बघारने की जरूरत नहीं है।
पहले मैं तुम्हारी परीक्षा लेता हूं।" यह कहकर वह पहलवान को आंगन में ले गया।
पहलवान बोला, "ठीक है, मैं हर परीक्षा में खरा उतरूंगा।"
खोजा ने फिर टोका, अरे यार, "ज्यादा डींग न मारो। जरा विनम्र रहो।" फिर अपनी जेब से उसने एक रेशमी रूमाल निकाला और उसके हाथ में थमाते हुए कहा, "इसका वजन दस ग्राम से भी कम है।
जरा इसे आंगन में दीवार के बाहर फेंक कर दिखाओ।"
"यह भी कोई बड़ी बात है ?"
पहलवान मुस्कराता हुआ बोला, "खोजा!
क्या तुम मुझे इतना नाचीज समझते हो ?
यह तो मेरे बाएं हाथ का काम है।
लो, यह देखो।
" पहलवान ने रूमाल उठाकर जोर से फेंका। मगर वह आंगन के अंदर ही रह गया।
खोजा ठहाका मार कर हंस पड़ा और बोला, “अब जरा मेरी ताकत भी देखो।
मैं इस रूमाल के साथ एक पत्थर भी आंगन की दीवार के बाहर फेंक सकता हूं।"
यह कह कर उसने जमीन से एक गोलाकार पत्थर उठा लिया और उसे रूमाल में लपेट कर दीवार के बाहर फेंक दिया।
“अब बोलो, कौन ज्यादा ताकतवर है ?
तुम या मैं ?" खोजा ने चुटकी ली।
पहलवान पानी-पानी हो गया और बिना कुछ कहे अपना-सा मुंह लेकर चला गया।