बात उन दिनों की है, जब खोजा मोची का काम किया करता था।
एक दिन एक मौलवी उसके पास आया और बोला, "खोजा भाई!
मेरे जूते का तला उखड़ गया है। जरा इसकी मरम्मत कर दो।
मैं तुम्हारे लिए खुदा से दुआ मांगूंगा।"
खोजा ने सिर उठाए बिना अपना काम जारी रखते हुए कहा, "माफ कीजिए मौलवी साहब, मेरे पास फुरसत नहीं है।
अपना काम आप किसी दूसरे मोची से करवा लीजिए।
" 'यह कैसे हो सकता है ?"
मौलवी ने कड़ी आवाज में कहा,
"मेरा काम तुम्हें अभी करना होगा, वरना मैं खुदा से तुम्हारे लिए बदुआ मांगूंगा।तब तुम्हें पछताना पड़ेगा।"
खोजा हाथ का काम रोककर बोला, “वाह! अगर आपकी दुआ वाकई इतनी कारगर है तो यह दुआ क्यों नहीं मांगी कि आपका जूता कभी न टूटे।
" मौलवी को खोजा द्वारा यों दिया हुआ जवाब अपनी शान में गुस्ताखी लगा।
वह बहुत नाराज हुआ।
उसे लगा कि कहां तो बादशाह तक मुझसे अदब से पेश आता है, और यह एक मोची इतनी बदतमीजी से मेरा मजाक उड़ा रहा है।
मौलवी ने काज़ी से खोजा की शिकायत कर दी।
काज़ी ने एक सिपाही भेज कर खोजा को अपनी अदालत में बुलवा लिया।
जैसे ही मोची बना खोजा काज़ी की अदालत में पहुंचा, काज़ी ने उसे पहचान लिया।
ऐसा होना था कि काजी मौलवी की शिकायत पर कान देना तो भूल गया बल्कि खोजा के आगे अपना ही रोना लेकर बैठ गया।
काजी ने खोजा को बड़ी मायूसी के साथ बताया, "ख़ोजा! लोग सामने तो मेरी
खूब तारीफ करते हैं, लेकिन पीठ पीछे मुझे गालियां देते हैं।तुम बता सकते हो कि इसकी वजह क्या है ?"
खोजा हैरानी के साथ बोला, “क़ाज़ी साहब! क्या यह मामूली-सी बात भी आपकी समझ में नहीं आ रही ?"
"नहीं।"
अच्छा तो सुनिये! मैं आपको बताता हूं।
आप कहते कुछ हैं और करते कुछ हैं।
आपका अमल दुरंगा है। इसलिए लोग भी आपसे दुरंगा व्यवहार करते हैं।"
अपने बारे में खोजा की बात सुनकर काज़ी को बहुत हैरानी हुई।
उसने कहा, "नहीं खोजा भाई, मैं ऐसा तो नहीं हूं।"
"आप ऐसे ही हैं।" खोजा ने बात काटी, “अब अभी का ही मामला ले लीजिए।
मौलवी मेरे खिलाफ शिकायत लेकर आए थे।
आपको इनकी शिकायत पर गौर करना चाहिए था, जबकि आप हैं कि उनकी फरियाद दरकिनार करके मेरे आगे अपना रोना लेकर बैठ गए।
खोजा की दलील सुनकर काज़ी तो मायूस हुआ ही, उसकी साफगोई ने मौलवी पर भी असर डाला।
उसने अपनी शिकायत वापस लेने का ऐलान किया और वहां से रुखसत हो गया।