नया बादशाह निरा मूर्ख और अनाड़ी था।
विदेशी राजदूतों के साथ भेंट के समय भी उल-जलूल बातें कर बैठता था।
उसकी बातें सुनकर लोग अक्सर ठहाके मारने लगते थे।
इससे देश की साख धूल में मिलती जा रही थी।
आखिर मंत्रियों ने बादशाह को सलाह दी कि आप विदेशी मेहमानों से भेंट-मुलाकात करते समय किसी समझदार आदमी को अपने पास जरूर रखा करें।
मंत्रियों की सिफारिश पर बादशाह ने अक्लमंद खोजा को अपना सलाहकार बना लिया।
खोजा ने सलाह दी, "जहांपनाह, जब कोई विदेशी राजदूत आपसे मुलाकात करने आने वाला हो, उससे पहले मैं आपके पांव से एक डोरी बांध दिया करूंगा।
अगर आपकी बातें ठीक होंगी तो मैं चुपचाप खड़ा रहूंगा। अगर आपकी बातें गधे के होंठों और घोड़े के जबड़ों की तरह होंगी तो मैं फौरन डोरी खींच दूंगा।
इशारा मिलते ही आप फौरन चुप हो जाया करना।
बादशाह को उसकी सलाह जच गई।
वह खोजा की सराहना करता हुआ बोला, “तुम्हारा सुझाव वाकई बहुत बढ़िया है।"
संयोग की बात, जिस दिन बादशाह ने खोजा को अपना सलाहकार नियुक्त किया, उससे ठीक दूसरे दिन पड़ोसी देश का एक राजदूत बादशाह से मुलाकात करने आया।
बादशाह ने उससे पूछा, "आपके देश में कुत्ते-बिल्लियों का क्या हाल है ?
भेड़-बकरियों की सेहत कैसी है ?"
बादशाह की उल-जलूल बातें सुनकर ख़ोजा ने फौरन डोरी खींच दी।
डोरी का खिंचना था कि बादशाह चुप हो गया। उसके चुप होते ही ख़ोजा खुद राजदूत को संबोधित करता हुआ बड़े अदब से बोला, "जनाब! हमारे बादशाह बहुत बड़े आलिम फाजिल हैं।
उनकी हर बात का मतलब बड़ा गहरा होता है।
उस मतलब को आम आदमी समझ नहीं सकता।
कुत्ते-बिल्लियों से उनका तात्पर्य आपके देश के अफसरों और सेनापतियों से है और भेड़-बकरियों से उनका अभिप्राय आपके देश की आम जनता से है।"
यह सुनते ही राजदूत खड़ा हो गया और बड़े अदब के साथ बादशाह के सामने झुक कर बोला, "बादशाह सलामत! आपकी दानिशमंदी सचमुच काबिले तारीफ है।"