उन दिनों खोजा एक काज़ी के घर नौकरी करता था।
काज़ी भूत भगाने के लिए मशहूर था।
उसने एक सेठ के घर और दुकान में घुस आए भूत भी भगाए थे।
भूतों से राहत पाने की खुशी में एक दिन वह सेठ
क़ाज़ी को एक कटोरा शहद भेंट कर गया।
काजी ने तभी भरपेट ताजा खाना खाया था इसलिए उसने शहद नहीं पीया।
हालांकि वह ऐसा कर सकता था पर ऐसी हालत में उसे सोना पड़ जाता, जबकि उसे तुरंत किसी जरूरी काम से बाहर जाना था।
काज़ी को शक था कि उसके घर से जाते ही ख़ोजा पूरा शहद चट कर जाएगा।
ऐसी हालत में शहद को न तो साथ ले जाया जा सकता था और न ही खोजा को ही अपने साथ ले जाया जा सकता था।
आखिर उसे शहद की सुरक्षा का एक उपाय सूझ ही गया। उसने खोजा को भी शहद
अपने पास बुलाया और उससे कहा, “खोजा!मैं बाहर जा रहा हूं। इस कटोरे में जहर है।
इसे संभाल कर रख देना।" काज़ी को यकीन हो गया था कि अब खोजा के रहते
हुए सुरक्षित रहेगा, इसलिए हिदायत देने के कुछ देर बार ही वह घोड़े पर सवार होकर चला गया।खोजा को क़ाज़ी की भूत भगाने वाली विद्या पर किंचित भी विश्वास नहीं था।
वह मानता था कि क़ाज़ी भूत भगाने के नाम पर लोगों को ठगता है।
खोजा बहुत दिनों से जी को सबक सिखाने की फिराक में था।
इसलिए काज़ी के बाहर जाते ही उसने एक नान निकाला और उसे शहद में डुबाकर बड़े आराम से खाने लगा।
कुछ ही पलों में वह सारा शहद चट कर गया।
उसके बाद उसने काज़ी के घर के सारे बरतन तोड़ डाले।
काज़ी घर लौटा तो देखा कि शहद का कटोरा खाली पड़ा है।
उसने खोजा से पूछा, “कटोरे में रखा जहर कहां गया, खोजा ?"
खोजा ने बड़े नाटकीय अंदाज और कांपती आवाज में जवाब दिया, “मालिक!
आज मुझ पर न जाने कैसा भूत सवार हुआ कि मैंने उसी की झोंक में आपके घर के सारे बरतन तोड़ डाले।
जब भूत को यह पता लगा कि यह घर आपका है तो वह पीछा छोड़ कर भाग गया।
उसके जाने पर मुझे होश आया। तभी मुझे यह पता चला कि मैंने कितनी बड़ी भूल कर दी है।
मैंने सोचा कि आप मुझे जरूर फटकार लगाएंगे और मुझसे मुआवजा मांगेंगे।
मैं एक गरीब आदमी हूं। इतना मुआवजा देना मेरे बूते के बाहर है।
इसलिए मैंने आत्महत्या करने के लिए सेठजी का दिया सारा जहर पी लिया है और मरने का इंतजार कर रहा हूं।"
खोजा की बात सुनकर काज़ी ने अपना सिर पीट लिया।
शहद तो गया ही, साथ ही उसके सारे बर्तन-भांडे टूट चुके थे।