मार का मेहनताना

मुल्ला नसरुद्दीन कहानी - Mulla Nasruddin

खोजा कहीं आने-जाने के लिए हमेशा अपने गधे का ही इस्तेमाल करता था।

खेती-किसानी के लिए उसने दो बैल भी रखे हुए थे।

एक दिन हुआ यह कि खोजा के एक बैल पर एक सेठ के बैल ने हमला कर दिया।

खोजा के बैल ने सेठ के बैल को बहुत रोका, लेकिन जाने किस बात पर गुस्साए बैल ने सींग मार-मार कर खोजा के बैल को मार डाला।

खोजा के तो जैसे अपने बैल के साथ ही प्राण निकल गये।

बिना दो बैलों के खेती नहीं हो सकती थी, और फिर दूसरा बैल खरीदने के लिए उसके पास रकम नहीं थी।

जिस बैल ने खोजा के बैल की हत्या की थी, खोजा ने उस बैल के मालिक से कहा कि या तो वह उसे एक

बैल खरीद कर दे या फिर कुछ दिनों के लिए अपना बैल उधार दे-दे, जिससे कि खोजा अपने खेत जोत सके।

सेठ ने खोजा की एक भी बात मानने से इंकार कर दिया।

तब खोजा इंसाफ मांगने के लिए काजी के पास गया।

काज़ी ने बड़े ध्यान से खोजा की दलीलें सुनीं, उसे भरोसा दिलाया कि उसकी अदालत में खोजा को इंसाफ मिलेगा।

क़ाज़ी ने सेठ को तलब किया।

सेठ की दलीलें सुनने के समय खोजा को अदालत से बाहर रहने को कहा गया।

खोजा का माथा तो ठनका, फिर भी वह क़ाज़ी की हिदायत को मानते हुए अदालत से बाहर चला गया।

इधर खोजा बाहर गया, उधर सेठ ने काज़ी को पाठ पढ़ाना शुरू कर दिया।

जब सेठ की गवाही पूरी हो गई तब काजी ने फिर से खोजा को तलब किया।

खोजा तो अदालत के बाहर बैठा इसी पल का इंतजार कर रहा था।

वह तुरंत अदालत में हाजिर हो गया।

खोजा के आते ही काजी बोला, "दोनों पक्षों को सुनने के बाद अदालत इस निर्णय पर पहुंची है कि खोजा को मुआवजे के तौर पर दस रुपये देने होंगे।'

खोजा हैरान!

एक तो उसी का बैल मरा।

सेठ के बैल ने बेवजह उसके बैल पर हमला किया और उसके प्राण लेकर ही हटा, इस पर काज़ी उसी पर जुर्माना कर रहा है।

मायूस होकर ख़ोजा ने कहा, "पर काज़ी साहब!

यह तो बताइये कि मेरा ही बैल मरा और अब मुझे ही मुआवजा देना पड़ रहा है।"

क़ाज़ी बोला, “सेठ जी के बैल ने तुम्हारे बैल को मारने के लिए काफी ताकत लगाई।

दस रुपये उसका मेहनताना है।"

काज़ी की बात अभी पूरी भी नहीं हुई थी कि खोजा ने उसके मुंह पर एक थप्पड़ जड़ दिया और बोला, “क़ाज़ी साहब!

आपके मुंह पर थप्पड़ मारने के लिए मुझे काफी ताकत लगानी पड़ी है।

मेहनताने के तौर पर आप उस सेठ को दे दीजिए।"