एक बार खोजा के एक कंजूस दोस्त ने मजाक में खोजा से कहा कि अमुक दिन वह उसके घर दावत पर आ जाए।
खोजा ने उसकी बात को सच मान लिया।
निर्धारित दिन खोजा उसके घर के लिए चल पड़ा।
रास्ते में एक दुष्ट मंत्री का घर पड़ा। खोजा उसके घर के सामने से गुजर रहा था कि उसने देखा, मंत्री का बेटा फाटक पर खड़ा है।
खोजा को पता था कि वह मंत्री कई दिनों से बीमार चल रहा है।
खोजा ने बड़े अनमने ढंग से उस लड़के से पूछा, “तुम्हारे अब्बाजान की तबियत अब कैसी है ?"
शुक्रिया खोजा चाचा! आपकी दुआ से अब वह ठीक हो रहे हैं।"
"मेरी दुआ से ?"
खोजा उसकी बात काटता हुआ बोला, “मेरी दुआ से तो तुम्हारे परिवार को इस समय मातम मनाना चाहिए था"
इससे पहले कि मंत्री का बेटा उसकी बात में छिपी अपने पिता के प्रति नफरत को समझ पाता, खोजा वहां से आगे बढ़ गया।
उसने दूर से देख लिया था कि उसका दोस्त अपने मकान की दूसरी मंजिल की खिड़की से झांक रहा था।
जैसे ही उसकी नजर खोजा पर पड़ी, वह एकाएक खिड़की से हटा और घर में कहीं चला गया।
इससे पहले कि खोजा उसके दरवाजे पर पहुंचे, कंजूस दोस्त ने अपनी बीवी को बताया,
“मैंने तो खोजा से मजाक में कहा था कि वह हमारे घर खाना खाने आए, पर वह भुक्खड़ तो सचमुच ही आ गया है।"
पत्नी ने शिकायती लहजे में जवाब दिया, “यह तुम मुझे अब बता रहे हो।
पहले बताते तो मैं कुछ बनाकर रखती।"
खोजा का दोस्त बोला, “अरे नहीं!
उसे खाना खिलाने का मेरा कोई इरादा नहीं है।
बस तुम किसी तरह उसे चलता कर दो।"
दोस्त के घर के बाहर पहुंचते ही ख़ोजा ने दरवाजा खटखटाया, लेकिन किसी के दरवाजे पर आने की आहट सुनाई नहीं दी।
तब खोजा ने एक बार फिर दरवाजा खटखटाया।
इस बार दरवाजा खटखटाना बेकार नहीं गया।
आहट सुनकर कंजूस दोस्त की पत्नी दरवाजे पर आकर बोली, "क्या आप ही खोजा हैं ?
बच्चों के अब्बा तो किसी जरूरी काम से बाहर गये हैं।
आप किसी दूसरे दिन तशरीफ लाइये।"
"ठीक है, मैं जाता हूं।" खोजा बोला, “मगर एक बात उसे जरूर बता देना।
आइंदा से जब कभी बाहर जाए तो अपना सिर खिड़की पर लटका कर न जाए।