सेठ के हस्ताक्षर

मुल्ला नसरुद्दीन कहानी - Mulla Nasruddin

एक गरीब मजदूर ने

एक दिन खोजा के पास पहुंच कर उसे बताया कि शहर के एक मशहूर सेठ ने उससे कई दिन तक मजदूरी का काम करवाया है,

और अब तक वह मजदूरी देने से यह कहकर मुकर रहा है कि मेरा काम ठीक नहीं था।

अब आप ही उससे मेरा मेहनताना दिला सकते हैं, खोजा भाई।

खोजा ने उसे भरोसा दिलाया।

बोला, “तुम बेफिक्र रहो।

सेठ को तुम्हारे काम का मेहनताना देना ही पड़ेगा।

तुम मुझसे मिलते रहना।

" मजदूर बोला, “खोजा भाई।

मुझे आप पर पूरा भरोसा है, लेकिन इतने दिन की मजदूरी न मिलने से मेरी तो भूखे मरने की नौबत आ चुकी है।

खोजा ने उसे समझाया, “तुम किसी और जगह काम की तलाश करो।

सेठ से तुरंत रकम तो मिल नहीं सकती। उससे रकम वसूलने के लिए पहले तो यह जरूरी है कि उससे भेंट हो, फिर उसे मजदूरी देने के लिए तैयार करने में भी समय लग सकता है।

ऐसे में तुम हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे तो सचमुच तुम्हारे भूखे मरने के दिन आ जाएंगे।

मजदूर के जाते ही खोजा उस सेठ के घर की तरफ चल दिया, जिसके घर उस मजदूर ने मजदूरी की थी।

खोजा ने सेठ के घर के कई चक्कर लगाए, पर सेठ नहीं मिला।

खोजा समझ गया कि वह उससे बच रहा है। तब एक दिन खोजा ने उसकी सेठानी से कहा, "अब मैं सेठ से मिलने यहां नहीं आऊंगा।

यदि कल शाम तक सेठ खुद ही मुझसे मिलने नहीं आया तो मैं यह मामला बादशाह के दरबार में ले जाऊंगा।"

खोजा की चेतावनी अपना असर दिखा गई।

अगले ही दिन सेठ खोजा के घर पहुंच गया।

खोजा जानता था कि सेठ जरूर आएगा और उसे डराने-धमकाने की कोशिश भी करेगा, इसलिए जानबूझकर वह स्वयं अपने घर से बाहर चला गया।

गुस्से में भरे सेठ ने खोजा के घर के दरवाजे पर ताला लटकता हुआ देखा।

उसने इसे अपनी बेइज्जती समझा।

अपना गुस्सा उतारने के लिए उसने दरवाजे पर टेढ़े-मेढ़े अक्षरों में 'गधा' लिख दिया।

दूसरे दिन बाजार में उसकी भेंट खोजा से हो गई।

खोजा उसे देखते ही तपाक से बोला, “सेठ जी।

मैं आपसे माफी चाहता हूं कि कल जब आप मुझसे मिलने आए, तब संयोग से मैं घर पर नहीं था।

" खोजा की बात सुनकर सेठ हैरान रह गया।

उसने खोजा से पूछा, "लेकिन तुम्हें यह कैसे मालूम हुआ कि मैं तुमसे मिलने के लिए आया था ?

" यह सुनकर खोजा ने ठहाका लगाया।

बोला, “इसमें हैरान होने की क्या बात है ?

क्या आप मेरे घर के दरवाजे पर अपने हस्ताक्षर करके नहीं गये थे ?"

सेठ समझ गया कि खोजा से पार पाना मुश्किल है।

वह तो मन की बात तक जान लेता है। इसलिए उसने मजदूर की मजदूरी देने में ही अपनी भलाई समझी।