एक बार खोजा से बातें करते हुए बादशाह को कुछ नई बातें जानने की इच्छा हुई।
उसने अपना दायां हाथ आगे करके खोजा से पूछ लिया।
"खोजा। ये तो बताओ कि हथेली पर बाल क्यों नहीं उगते ?"
खोजा ने तपाक से उत्तर दिया, "जहांपनाह।
आप इसी हाथ से तो दीन-हीन और विद्वानों को दान दिया करते हैं,
उन पैसों की रगड़ से आपकी हथेली पर बाल नहीं उगते।"
अच्छा। ऐसी बात है तो फिर तुम्हारी हथेली पर बाल क्यों नहीं उगते ?"
"वह इसलिए कि आपके दिये दान और इनाम को मैं इन्हीं हाथों से लेता हूं।
फिर मेरी हथेली पर बाल कैसे उगेंगे ?
" बादशाह ने अगला प्रश्न कर दिया, “तो हमारे दूसरे अधिकारियों की हथेलियों पर बाल क्यों नहीं हैं ?"
"इसका तो उत्तर बड़ा स्पष्ट है, जहांपनाह।
जब आप मुझे या किसी दूसरे को कोई इनाम या दान देते हैं तो उन्हें मन ही मन बहुत जलन होती है।
मारे जलने के वे अपनी-अपनी हथेलियां रगड़ने लगते हैं।
इसी कारण उनकी हथेलियों पर से बाल गायब हो गये हैं।
खोजा का ऐसा सटीक जवाब सुनकर बादशाह उसकी हाजिर-जवाबी का कायल हो गया।
फिर उसने खोजा से कोई अटपटा सवाल नहीं पूछा।