खोजा की फटकार

मुल्ला नसरुद्दीन कहानी - Mulla Nasruddin

खोजा की एक अच्छी कहिये या खराब, आदत थी कि वह जो भी काम करता था,

उसमें पूरी तरह रच-बस कर करता था।

फिर चाहे वह बादशाह को मूर्ख बनाने का काम हो, या अपने प्यारे गधे को घास चरवाने का काम।

खोजा के अड़ोसी-पड़ोसी और दोस्त ही नहीं, उसका नेक और प्यारा समझदार गधा तक जानता था कि

जब खोजा किसी काम में व्यस्त हो तो न तो उसके आस-पास मंडराना चाहिए

और न ही उससे कोई और बात कहनी चाहिए। चूंकि ऐसे मौकों पर कही गई कोई और बात खोजा के कानों तक तो पहुंचना दूर की बात,

उसे अपने गधे के रेंकने की आवाज तक सुनाई नहीं देती थी।

फिर भी, ऐसे कई सिर-फिरे खोजा से टकरा ही जाते थे जो उसे किसी और काम में व्यस्त होते देखकर भी अपनी रामकहानी कहने से चूकते नहीं थे

या जब वह किसी काम में लगा हो, तब उसके आस-पास मंडराने से बाज नहीं आते थे।

उस बार भी कुछ ऐसा ही हुआ।

खोजा अपने किसी दोस्त को चिट्ठी लिख रहा था।

इतने में एक आदमी दबे पांव उसके पास आ पहुंचा और चुपचाप उसके पीछे खड़ा होकर चोरी से चिट्ठी पढ़ने लगा।

खोजा को इस बात का पता चल गया।

उसे उस आदमी की यह एक बेजा हरकत लगी, लेकिन उसने न तो टोका और न दूर हटने को कहा।

उसे उम्मीद थी कि आने वाला आदमी खुद ही समझ गया होगा कि वह एक गलत काम कर रहा है।

इसलिए वह बहुत जल्दी उससे दूर हट जाएगा।

काफी देर हो गई लेकिन उस नासमझ ने खोजा के पीछे से हटने की समझदारी नहीं दिखाई।

तब खोजा ने उसे सबक सिखाने की एक योजना बना ली।

उसने खत लिखना जारी रखा, लेकिन खत में जो लिखना शुरू किया, वह इबादत कुछ इस प्रकार थी,

"मेरे प्यारे दोस्त! मैं तुम्हें बहुत कुछ लिखना चाहता हूं लेकिन इस वक्त मेरे पीछे एक बद्तमीज और बेशर्म आदमी खड़ा है, जो चोरी से मेरा खत पढ़ रहा है।"

यह पढ़ते ही वह आदमी बौखला गया और खोजा के सामने आकर एतराज करने लगा,

“तुम मुझे गालियां क्यों दे रहे हो, खोजा! मैंने तुम्हारी चिट्ठी कब पढ़ी ?"

खोजा बोला, "ओह! तुम तो बद्तमीज ही नहीं, जरूरत से ज्यादा अक्लमंद भी मालूम होते हो।

तुमने मेरी चिट्ठी नहीं पढ़ी तो तुम्हें कैसे पता चला कि मैं चिट्ठी में तुम्हारी बुराई लिख रहा हूं।

क्या तुम बिना पढ़े केवल किसी के हाथ चलाने के ढंग से ही यह समझ जाते हो कि सामने वाला क्या लिख रहा है ?

अगर तुम वाकई इतने समझदार हो तो तुम्हें यह भी समझ होनी चाहिए कि कभी किसी दूसरे का खत नहीं पढ़ना चाहिए।"

इससे पहले कि खोजा उसे उसकी बेजा हरकत के लिए और शर्मिंदा करे,

उसने खोजा के पास से भाग खड़ा होने में ही अपनी भलाई समझी।