खोजा के शहर में एक शेख रहता था।
उसने कड़ी मेहनत से एक हजार अशर्फियां जमा की थीं।
उन अशर्फियों को वह बड़ी सावधानी से रखता था।
एक बार उसका इरादा हज पर जाने का बना।
लेकिन फिर उसे अपनी अशर्फियों का विचार आया।
उन्हें वह अपने साथ नहीं ले जा सकता था।
बहुत सोच-विचार के बाद उसने वह अशर्फियां अपने एक जिगरी दोस्त के पास जमा कर दी और कहा कि जब मैं लौटकर आऊंगा, तब तुमसे ये अशर्फियां ले लूंगा।
बेचारा शेख सीधा तो था ही, उसने किसी रसीद या गवाही की जरूरत नहीं समझी।
हज से लौटकर जब वह अपने उस मित्र के यहां पहुंचा और उससे अपनी अशर्फियां मांगी तो उसका दोस्त साफ मुकर गया।
पहले तो शेख इसे अपने दोस्त का मजाक समझा पर झगड़ा बढ़ने पर अपने दोस्त की बदनीयती को समझ गया।
वह बादशाह के पास अपने दोस्त की शिकायत लेकर पहुंचा।
बादशाह ने सारा हाल सुनकर उससे पूछा, “क्या तुम्हारे पास अशर्फियां देने का कोई सबूत है ?
" शेख ने जवाब दिया, मेरे पास सबूत तो कोई नहीं है।'
बादशाह ने विचार किया "इसके दोस्त ने अशर्फियां तो जरूर ली हैं, लेकिन इसका सबूत कोई नहीं है।
न्याय तो होना ही चाहिए।"
बादशाह ने यह मामला खोजा को सौंप दिया।
खोजा ने वादी और प्रतिवादी दोनों को बुलवाया और दोनों ओर के बयान सुनकर शेख से पूछा, “क्या अशर्फियां देते वक्त वहां कोई मौजूद था ?
" शेख ने कहा, "हुजूर और तो काई नहीं था, पर एक पेड़ के नीचे मैंने वे अशर्फियां अपने दोस्त को सौंपी थीं ?"
'नहीं हुजूर।
"अच्छा तो जाओ उस पेड़ को मेरा नाम लेकर कहना कि तुम्हें खोजा ने बुलाया है।" खोजा ने शेख से कहा।
शेख को यह सुनकर बहुत अचंभा हुआ कि एक पेड़ दरबार तक कैसे आएगा।
उसने कुछ कहा नहीं, बुलाने को चला गया।
उसके जाने के बाद खोजा ने जंभाई लेते हुए कहा, "बड़ी देर हो गई। अभी शेख लौटा नहीं।"
शेख के मित्र ने उत्तर दिया, “हुजूर!
वह जगह काफी दूर है।
अभी तो वह वहां तक पहुंचा भी नहीं होगा।"
खैर शेख आया और खोजा से बोला, “हुजूर!
मैंने आपका हुक्म पेड़ को जोर-जोर से कई बार सुनाया, पर वह आया नहीं।
भला वह आ कैसे सकता है ?
" खोजा ने जवाब दिया, “वह तुमसे पहले ही जवाब दे गया है।
" यह कहकर खोजा ने एक सिपाही को बुलाकर हथकड़ी लाने का हुक्म दे दिया।
जब सिपाही हथकड़ी लेकर पहुंच गया तो खोजा ने शेख के दोस्त को हथकड़ी पहनाने का हुक्म दे दिया और कहा कि अगर तुमने अशर्फियां ली ही नहीं तो तुम्हें यह कैसे पता था कि वह पेड़ इतनी दूर है।
सच-सच बताओ वरना कोड़े पड़ेंगे।
यह सुनते ही शेख का दोस्त सकपका गया और कोड़ों की मार से डरकर तुरंत ही अपना गुनाह कबूल कर लिया।
उसके घर से हजार अशर्फियां खोजा ने शेख को दिलवा दीं और शेख के उस दोस्त को जेल में डलवा दिया।
खोजा को शेख ढेरों दुआएं देता हुआ अपने घर चला गया।