पहले दिया, फिर वापस लिया

मुल्ला नसरुद्दीन कहानी - Mulla Nasruddin

ताशकंद नगर में मीर जाफर नाम का एक व्यापारी रहता था।

कुछ दिनों से धंधा खराब चलने के कारण मीर जाफर गरीबी में दिन गुजार रहा था।

उसकी पत्नी जमीरा भी नगर में इधर-उधर चक्कर लगाया करती थी।

मांगने पर उसे जो मिल जाता उससे अपना काम चलाती थी।

धन खर्च किए बिना गुजारा हो जाए, इसी में दोनों भलाई समझते थे।

एक दिन मीर जाफर एक मरियल-सी भेड़ काफी सस्ते में खरीद लाया।

मीर जाफर तो घर से चला जाता, पर जमीरा को भेड़ के कारण बड़ी परेशानी होती।

भेड़ दिन भर चिल्लाती रहती।

उसने अपने आसपास की सारी हरियाली को चर लिया और घर में काफी गंदगी फैला दी।

मीर जाफर जब घर लौटा तो, जमीरा आंखों में आंसू भर बोली - "यह भेड़ तुम मेरी जान लेने के लिए खरीद कर लाए हो ?

या तो तुम इसे बेच दो, वरना मैं अपने मायके चली जाती हूं।

यहां अपने खाने का पता नहीं, इसको क्या खिलाऊं - जमीरा, तुम फिक्र मत करो।

मैं अभी इसका इंतजाम करता हूं।

उस दिन मीर जाफर का मन बहुत उदास था।

वह अपनी अम्मी की कब्र के पास कब्रिस्तान में चला गया।

वहां खूब घास उगी थी। चारों तरफ हरियाली ही हरियाली थी।"

मीर जाफर कुछ देर वहीं बैठा रहा।

उसकी भेड़ के लिए इस कब्रिस्तान से अच्छी कोई जगह नहीं थी।

वह भेड़ को लेकर कब्रिस्तान के संरक्षक हैदर के पास जाकर बोला - मैं तो अब बूढ़ा हो चला हूं।

मेरी कोई संतान भी नहीं है। जब मौत आएगी तो तुम्हीं मुझे दफनाने का काम करोगे हैदर।

इसलिए तुम्हें अपनी यह भेड़ अभी से सौंप देता हूं।

हैदर ने खुशी-खुशी भेड़ ले ली।

दो महीने बाद मीर जाफर एक बार फिर कब्रिस्तान में अपनी अम्मी की कब्र पर आया।

वह लौट ही रहा था कि उसकी नजर अपनी भेड़ पर पड़ गई।

वह तो उसे पहचान ही नहीं पाया। भेड़ खा-खाकर खूब मोटी-ताजी हो गई थी।

इतनी वजनी भेड़ को दान करने से बढ़कर कोई बेवकूफी नहीं हो सकती यह सोच कर मीर जाफर ने मन ही मन निश्चय कर लिया कि उसे किसी भी तरह अपनी भेड़ को वापस प्राप्त करना है।

मीर जाफर ने एक बार फिर हैदर के घर का दरवाजा खटखटाया।

दरवाजा खुलते ही उसने हैदर से कहा - भाई जान, मैं शहर छोड़कर जा रहा हूं।

तुम भी मेरे साथ चलने को जल्दी से तैयार हो जाओ।

कहां के लिए तैयार हो जाऊं - हैदर ने हैरानी से पूछा कहां क्या ?

मेरे साथ चलने के लिए तुमने मुझे वचन दिया था न कि मेरी मृत्यु के बाद तुम ही मुझे दफनाओगे।

इसलिए तो मैंने तुम्हें भेड़ दी थी।

अब मैं जहां भी रहूंगा, दफनाने के लिए तुम्हारा वहां होना आवश्यक है मीर जाफर ने कहा।

तुम्हारा जहां मन करे, वहां जाकर मरो।

अपनी इस मनहूस भेड़ को भी अपने साथ ले जाओ और नदी में डूबकर मर जाओ।

मैं अपना घर छोड़ कर कहीं भी नहीं जाऊंगा, समझे, अक्ल के दुश्मन।

इतना कहकर हैदर ने भड़ाक से घर का दरवाजा अंदर से बंद कर दिया।

मीर जाफर भेड़ को लेकर खुशी-खुशी घर लौटा अपनी अक्ल के बूते पर उसने भेड़ वापस पा ली थी।

कहानी समाप्त हुई थी कि तभी वे दोनों गांव की सरहद में पहुंच गए।

मुखिया को जब बादशाह का उसके गांव पहुंचने का समाचार मिला तो वह उनके स्वागत के लिए दौड़ता हुआ वहां पहुंचा।

वह बादशाह और खोजा को अपनी हवेली पर ले गया, जहां उसने सबसे पहले उनके भोजन का इंतजाम कराया।

मक्के की रोटियां सरसों के साग के साथ खाकर दोनों जब तृप्त हो गए तब मुखिया को बादशाह ने बताया कि कैसे जंगल से पांच कोस पैदल चलकर वे उसके गांव में पहुंचे।

"हम अभी अपने शहर लौट जाना चाहते हैं।

मुखिया, क्या तुम हमारे लिए दो घोड़ों का इंतजाम कर सकते हो ?

बादशाह ने कहा।"

"जरूर हो जाएगा मालिक।"

अपने देश के बादशाह की सेवा करके मुझे बहुत प्रसन्नता होगी।

थोड़ी-सी देर में मुखिया अपने अस्तबल से दो शानदार घोड़े ले आया।

दोनों घोड़ों पर सवार हो गए और अपने शहर की ओर चल पड़े।

शहर में पहुंच कर बादशाह ने सेनापति को बुलाया और उसे आदेश दिया कि वह अपनी सेना की एक टुकड़ी तुरंत छापा मारने के लिए जंगल की ओर रवाना कर दे।

बादशाह के आदेश का तुरंत पालन हुआ।

सेना की एक टुकड़ी का नेतृत्व स्वयं सेनापति ने किया।

फौज की उस टुकड़ी ने जंगल में पहुंच कर उन लुटेरे आदिवासियों की खोज में छापामारी शुरू कर दी।

उन्होंने जंगल का कोना-कोना छान डाला, लेकिन एक भी आदिवासी हत्थे न चढ़ा। आदिवासी जंगल के उस हिस्से से पलायन कर गए थे।

वे राज्य के उस जंगल को छोड़ कर, पड़ोसी राज्य में चल गए थे।

सेना की टुकड़ी मायूस होकर लौट आई।

सेनापति ने सारा हाल बादशाह को कह सुनाया।

कुछ क्षण के लिए बादशाह के चेहरे पर चिंता के भाव उभरे, लेकिन फिर वह सामान्य ढंग से मुस्करा दिया।

खोजा नसरुद्दीन के साथ वह पहले की तरह ही राज-काज में व्यस्त हो गया।