पीछे के पृष्ठों में दी गई एक कहानी में
आपने पढ़ा था कि एक बार बादशाह प्रजा का हाल-चाल जानने के लिए लोगों के घरों में गया था।
इसी क्रम में वह ख़ोजा के घर भी गया था।
खोजा ने अपनी चुभती-तीखी बातों से उसकी बोलती बंद कर दी थी।
राजमहल वापस लौटकर उसने खोजा की बातों पर विचार किया तो उसे उसकी बातें सत्य लगीं।
उसने तभी निर्णय कर लिया कि वह खोजा को अपने मुल्क का काज़ी बनाएगा ताकि प्रजा के साथ हो रहा अन्याय बंद हो।
जैसे ही लोगों को पता चला कि खोजा मुल्क का क़ाज़ी बनने वाला है,
खोजा से दोस्ती बढ़ाने वालों में होड़ लगने लगी।
एक दिन एक आदमी ने खोजा से कहा, "तुम कितने मजे में हो, खोजा।
अब तो तुम्हारे इतने सारे दोस्त हो गए हैं।'
खोजा ने जवाब दिया, “मेरे सच्चे दोस्त कितने हैं, इसका पता लगाना मुश्किल है।
यह सिर्फ तभी पता चलेगा जब इस अफवाह का अंत होगा कि मुझे काज़ी बनाया जा रहा है या फिर यदि मैं बनाया गया, तो तब पता चलेगा जब मैं क़ाज़ी नहीं रहूंगा।"
बहरहाल, खोजा को क़ाज़ी बना दिया गया।
काज़ी बने खोजा का अभी पहला ही दिन था कि एक जेल अधिकारी खोजा के इजलास में आया।
उसने एक बकरी की गर्दन पकड़ी हुई थी।
खोजा के सामने पहुंचते ही उसने कहा, “हुजूर!
मैंने इस बकरी को एक भेड़िए के हमले से बचाया है।
सुना है आप नेक दिल अफसर हैं।
आप मेरे इस नेक काम के बदले बादशाह तक यह सिफारिश भिजवा दीजिए कि इस नेक काम के बदले मुझे इनाम दिया जाए।"
तभी वह बकरी जोर-जोर से मिमियाने लगी।
उस अधिकारी ने बकरी की पीठ पर हाथ रखकर उसे शांत करने की कोशिश की।
जब फिर भी बकरी ने मिमियाना बंद नहीं किया तो बकरी को घूरा।
कहीं उसकी यह गुस्सैल हरकत खोजा की नजर में न पड़ जाए, यह ख्याल आते ही अधिकारी ने अपने चेहरे पर मुस्कान लाते हुए कहा,
"हुजूर इस बकरी को जैसा कि मैंने अर्ज किया, भेड़िये से अभी-अभी बचाया है,
लेकिन यह है कि इसे यकीन ही नहीं हो रहा है कि यह भेड़िये के चंगुल से बच गई है, और अब नेक और सुरक्षित हाथों में है।"
उसकी बात सुनकर खोजा ने कहा, "यकीनन यह सही है कि तुमने इसे बचाया है,
लेकिन यह जो अब भी शक के घेरे में है, सो यह भी सही सोच रही है।
दरअसल, इसे खबर है कि यह अब भी भेड़िये के चंगुल में ही है।
अलबत्ता अब चार पांवों वाले जंगली भेड़िये के नहीं बल्कि दो पांव वाले सरकारी भेड़िये के।
हां, तुम अगर इसे आजाद कर दो तो शायद यह बकरी भी और मैं भी तुम्हारे बारे में अपनी राय बदल सकते हैं।
यह सुनना था कि अधिकारी के हाथ अपने आप ही बकरी की गर्दन से दूर छिटक गए।