यह तब की बात है जब मुल्क का बादशाह और वजीरे आजम खोजा के बारे में कुछ भी नहीं जानते थे।
यानी उन्हें पता नहीं था कि खोजा किस मिजाज का आदमी है।
वह शरीफों के साथ शरीफों की तरह और टेढ़े के साथ टेढ़े से पेश आता है,
फिर चाहे वह कोई पड़ोसी हो या मुल्क का बादशाह।
खोजा किसी की ऐसी-वैसी बात और व्यवहार को सहन नहीं करता।
जैसे के साथ तैसा व्यवहार करता है।
एक बार बादशाह और वजीरे आजम शिकार खेलने गए।
उनके साथ कुछ कारिंदे किसी और दिशा में चले गए और स्वयं वे किसी और दिशा में।
काफी खोजने पर उन्हें कोई परिंदा दिखाई नहीं पड़ा।
उस पर बुरा यह हुआ कि जिस जानवर का वे पीछा कर रहे थे, वह भी न जाने कहां जा छिपा।
थक-हार कर बादशाह और उसके वजीरे आजम ने राजमहल की ओर लौटने का फैसला किया।
अभी आधा रास्ता भी पार नहीं हुआ था कि गर्मी के मारे उन्हें बेहद प्यास लग आई।
दोनों चलते-चलते एक घर के करीब पहुंचे। यह घर खोजा का था।
दोनों जने घर के दरवाजे पर रुक गए। वजीरे आजम ने जोर से पुकारा,
"अरे कोई घर में है क्या? जल्दी से दही की लस्सी ले आओ।
उसमें कुछ बर्फ भी डाल देना। हमें बेहद प्यास लगी है।
हम इस देश के बादशाह और वजीरे आजम हैं।"
वजीरे आजम की आवाज सुनने के कुछ देर बाद खोजा आहिस्ता-आहिस्ता घर से बाहर निकला।
पहले उसने बादशाह को सलाम किया और फिर बड़े अदब से बोला, "माफ कीजिए, मैं सुबह
से ही खेत में काम कर रहा था। अभी-अभी लौटा हूं।प्यास बहुत लगने लगी थी इसलिए सारी दही की लस्सी बना कर पी गया।
अब तो घर में थोड़ी-सी भी दही नहीं है।
निराश होकर बादशाह और उसके वजीरे आजम को अपनी राह लेनी पड़ी।
लेकिन जब वे काफी दूर चले गए तो खोजा हाथ में दही का बर्तन लेकर मकान के छज्जे पर खड़ा होकर ऊंची आवाज में कहने लगा,
"बादशाह सलामत, वापस आ जाइये।
बादशाह और वजीरे आजम ने दूर से दही का बर्तन लिए खोजा को पुकारते हुए देखा तो वे बहुत खुश हुए।
घोड़ों को वापस छोड़कर वे फौरन खोजा के पास जा पहुंचे।
जब वे बिल्कुल करीब पहुंच गए तो खोजा ने दही का बर्तन उनके सामने पलट दिया और बोला,
"बड़े अफसोस की बात है।
आप खुद देख लीजिए, क्या यह बर्तन सचमुच खाली नहीं है ?"
इस तरह से खोजा ने अपनी तरफ से वजीरे आजम को ठीक उसी के लहजे में पुकार कर जैसे को तैसा जवाब दे दिया।
यह बात अलग है कि उन दोनों की समझ में यह नहीं आया कि खोजा ने उन्हें फिर क्यों पुकारा था।