मुखौटे वाला चेहरा

अकबर बीरबल कहानी - Akbar Birbal Kahani

एक बार अकबर अपने एक दरबारी से इतना क्रोधित हो गये कि उसे

दरबार से निकालते हुए बोले, "तुम मुझे दोबारा अपना चेहरा मत दिखाना।"

वह व्यक्ति बीरबल के पास मदद के लिए गया।

उस दरबारी के घर पर परेशानी थी, उसकी पत्नी और मां दोनों बीमार थे, बीरबल ने उसकी मदद करने की सोची।

कुछ दिन बाद, अकबर बहुत परेशान थे और कोई भी उन्हें खुश नहीं कर पा रहा था।

तभी दरबार में एक व्यक्ति आया जिसने एक मुखौटा पहना था, जो भी उसे देखता अपने आपको हंसने से नहीं रोक पाता।

जब अकबर आये और देखा कि पूरा दरबार उस खामोशी से बाहर आ चुका तो वह और दुखी हो गये।

उन्होंने जानना चाहा कि यहां क्या हो रहा है ?

मुखौटा पहने वह व्यक्ति अकबर के सामने आया तो अकबर भी हंसे बिना नहीं रह सके।

अकबर उस व्यक्ति से बोले, "अपना मुखौटा हटाओ और हम तुम्हें इनाम देंगे।"

मुखौटे वाला व्यक्ति बोला, "जहांपनाह, मैं इसे नहीं उतार सकता।

मैं वही दरबारी हूं जिसे आपने अपना चेहरा कभी न दिखाने की आज्ञा दी थी।

इसलिए मैं यह मुखौटा पहनकर आया हूं।"

अकबर को तुरंत समझ आ गया कि यह तरीका बीरबल का बताया हुआ है और उन्होंने दरबारी पर लगाई रोक हटा दी।

इस कहानी से शिक्षा : जहां पर कोई चीज काम नहीं आती वहां कई बार मजाक काम कर जाता है और जब मालिक अपने सेवकों से निरर्थक बातें करता है, तो सेवक अपनी नौकरी, अपनी जान बचाने के लिए हंसी की बातों का सहारा लेते हैं। इसलिए जब कुछ काम न करे, तो थोड़ा बहुत मजाक का सहारा लेना चाहिए।