एक दरबारी ने अपने पुत्र को अकबर के दरबार में खजांची नियुक्त करने की योजना बनायी।
उसने दरबार में इसके लिए कार्य शुरू कर दिया लेकिन वह जानता था कि बीरबल ऐसा नहीं होने देगा क्योंकि उसका पुत्र भरोसे लायक नहीं था।
एक दिन बीरबल को दरबार में आने में देर हो गयी, उसने अकबर से पूछा,
"जहांपनाह, क्या आपको नहीं लगता बीरबल दरबार को अहमियत नहीं देते ?
उन्हें उनका स्थान दिखाने की जरूरत है।"
अकबर : "तुम्हारे दिमाग में क्या चल रहा है ?"
दरबारी : "मैं आपको सलाह देता है कि आप उसकी सारी बातों को मना करना शुरू कर दो।"
अकबर : "ठीक है।"
जब बीरबल दरबार पहुंचे, तो अकबर ने पूछा : "बीरबल, आज तुम्हें देरी क्यों हो गयी ?"
बीरबल : "मेरी पत्नी की तबियत ठीक नहीं थी, जहांपनाह। कृपया मुझे माफ कर दीजिए।"
अकबर ने कहा : "मैं तुम्हें माफी नहीं दूंगा।" बीरबल : "क्या हम राज्य की बातों पर विचार-विमर्श करें ?"
अकबर : "नहीं हम नहीं करते।"
बीरबल : "तो फिर, शायद आप मुझे घर जाने की इजाजत दे दें।"
अकबर : "नहीं, तुम घर नहीं जा सकते।"
बीरबल समझ गये कुछ तो बात है और दरबारी के हावभाव देखकर वह समझ गये इसके लिए कौन जिम्मेदार है ?
बीरबल बोले : "मेरी एक आखिरी प्रार्थना है कि आप दरबारी के पुत्र को खजांची नियुक्त कर दें।"
"नहीं, मैं उसे खजांची नहीं बनाऊंगा।" यह सुनकर दरबारी को मुंह की खानी पड़ी।
शिक्षा : लोगों की नकारात्मक सोच को सकारात्मक परिणाम में बदलना सीखो।