आगरा शहर में एक अमीर व्यक्ति रहता था।
लेकिन वह बहुत कंजूस था।
बहुत से लोग प्रतिदिन उसके घर के बाहर भीड़ लगाते, और उससे कुछ दया की उम्मीद करते, लेकिन उन्हें निराश होकर लौटना पड़ता।
वह उन्हें झूठे वादे देकर वापिस भेज देता, लेकिन कभी उन्हें पूरा नहीं करता।
एक दिन एक कवि, रायदास, उसके घर आया और बोला कि वह अपनी कुछ कविताएं सुनाना चाहता है।
उस अमीर आदमी को कविताओं का शौक था, तो उसने कवि को आज्ञा दे दी।
रायदास ने एक-एक कर अपनी कविताएं सुनायीं।
अमीर आदमी को सब सुनकर अच्छा लगा, विशेषकर इसलिए क्योंकि वे कविताएं कवि ने अमीर आदमी पर लिखी थी।
उन कविताओं में अमीर आदमी की तुलना धन के देवता कुबेर से की थी।
उन दिनों यह चलन था कि अमीर आदमी और राजा कवि को उनकी प्रेरणा के लिए उन्हें इनाम देते थे, क्योंकि गरीब कवियों की कमाई का यही जरिया था।
इसलिए उस अमीर आदमी ने रायदास को उपहार देने का वादा कर अगले दिन आने को कहा।
रायदास खुश होकर घर चला गया।
अगली सुबह जब कवि उसके घर पहुंचा, तो अमीर आदमी ने कहा कि उसने तो उसे कभी देखा नहीं।
रायदास ने जब उसे उसका वादा याद दिलाया, तो वह बोला रायदास एक अच्छा कवि है और यदि एक अमीर व्यापारी उसकी तरह कवि को इनाम देना चाहता तो उसी रात दे देता।
रायदास बहुत परेशान हो गया, लेकिन वह कुछ नहीं कर सकता था इसलिए चुपचाप वहां से चला गया।
घर जाते समय उसने देखा कि बीरबल घोड़े पर सवारी कर रहे हैं।
उसने बीरबल को रोककर पूरी बात बतायी और मदद मांगी।
बीरबल उसे अपने घर ले आया और एक योजना बनायी।
बीरबल ने रायदास को अपने एक दोस्त के घर जाने को कहा और बोले अपने मित्र को आने वाली पूर्णिमा को दावत देने को कहो, जिसमें उस अमीर आदमी को भी निमंत्रण दे।
बीरबल ने रायदास को शांत होकर घर जाने को कहा।
रायदास का एक मित्र था मायादास। वह उसके पास गया और उसे पूरी योजना बतायी।
अगले दिन, मायादास उस अमीर आदमी के घर पहुंचा और उसे दावत का निमंत्रण दिया।
दावत आने वाली पूर्णिमा को रखी गयी। मायादास बोला वह मेहमानों को सोने के बर्तनों में खाना परोसेगा, जिसे मेहमान भोजन के बाद अपने साथ ले जा सकते हैं।
अमीर आदमी को यह सुनकर बड़ा अच्छा लगा।
पूर्णिमा के दिन सूर्यास्त के बाद वह अमीर आदमी मायादास के घर पहुंचा और यह देखकर हैरान रह गया कि वहां पर रायदास के अलावा कोई मेहमान नहीं था।
उन्होंने उसका स्वागत किया और बातचीत शुरू की।
अमीर आदमी खाली पेट आया था और उसकी भूख धीरे-धीरे बढ़ती जा रही थी।
रायदास और मायादास ने उसके आने से पहले ही भोजन किया था।
आखिर, आधीरात को अमीर आदमी की भूख बर्दाश्त से बाहर हो गयी तो उसने मायादास को खाना परोसने के लिए कहा।
मायादास अचम्भित होकर बोला, "वह किस भोजन की बात कर रहा है ?"
अमीर आदमी ने उसे याद दिलाया कि उसने उसे भोजन के लिए निमंत्रण दिया था।
अब रायदास ने उससे निमंत्रण का प्रमाण मांगा। अब उस व्यक्ति के पास कोई उत्तर नहीं था।
तब मायादास बोला उसने उसे केवल खुश करने के लिए निमंत्रण दिया था।
वह कहने लगा कि जो दूसरे लोगों के लिए कुछ अच्छा नहीं कर सकते, उन्हें दूसरों को दुख भी नहीं देना चाहिए।
उसने अमीर आदमी को कहा इसमें बुरा मानने की जरूरत नहीं है।
उसी समय बीरबल कमरे में आये और अमीर आदमी को रायदास के प्रति अपने व्यवहार की याद दिलायी।
अमीर आदमी ने अपनी गलती मानकर क्षमा मांगी।
वह बोला रायदास एक अच्छा कवि है और उसने कोई इनाम नहीं मांगा था।
उसने स्वयं उसे उपहार देने का वादा किया था और फिर उससे चालाकी की।
उस गलती को सुधारने के लिए उसने रायदास को अपने गले में पहना हुआ हार निकाल कर दिया।
फिर सबने इकट्ठे बैठकर भोजन किया।
रायदास ने बीरबल की प्रशंसा की और उसको धन्यवाद दिया।
बादशाह अकबर ने भी रायदास को दरबार में बुलाया और इनाम दिया।
शिक्षा : यदि आप किसी को अपनी स्थिति से अवगत कराना चाहते हैं, तो उसे अपने स्थान पर रखें। बीरबल ने अमीर आदमी को कवि के स्थान पर रखा और भूख का एहसास दिलाकर उसके कंजूस होने की गलती याद दिलायी। यदि आप सिद्धान्त वाले व्यक्ति हैं तो न्याय आपकी प्राथमिकताओं में होना चाहिए।