ईश्वर से महान

अकबर बीरबल कहानी - Akbar Birbal Kahani

एक दिन दो कवि किसी दूर राज्य से दरबार में आये।

उन्होंने सबको अपने गीतों और कविताओं से खुश कर दिया।

बादशाह ने उन्हें इनाम दिया।

उन कवियों ने पहले इतना सोना नहीं देखा था।

वे फूले नहीं समा रहे थे।

तभी बादशाह ने उनको राजसी कपड़े देने की आज्ञा दी।

तभी उनमें से एक कवि ने धन्यवाद रूपी कविता सुनाने की आज्ञा मांगी।

बादशाह अकबर ने उसको आज्ञा दी और कवि कविता सुनाने लगा।

वह बादशाह की बहादुरी और दयालुता के बारे में बोलने लगा।

उसने अकबर की शिक्षा और बुद्धिमानी की प्रशंसा की।

उसने यह कहते हुए अपनी कविता समाप्त की, "बादशाह अकबर अब तक के सभी राजाओं से महान हैं, वह ईश्वर से भी महान हैं। इसके साथ उसने झुककर सलाम किया और दरबार छोड़ दिया।"

बादशाह अकबर ने चारों तरफ देखा, उनकी आंखों में शरारत भरी चमक थी।

तो वे बोले, "तो देखा, अब मैं ईश्वर से भी महान हूं।"

दरबार में सभी व्यक्ति बादशाह को अचरज भरी नजरों से देखने लगे।

क्या इन्होंने सच में कवि के शब्दों पर भरोसा कर लिया ?

शायद नहीं।

लेकिन उन्हें भरोसा भी नहीं था।

बादशाह अकबर ने अपने सभी मंत्रियों, सेनापतियों, सलाहकारों की ओर देखा।

वह यह देखना चाहते थे कि उनमें सच बोलने की ताकत है या नहीं।

सभी बादशाह की तरफ देखने लगे।

"तो, क्या सभी लोग मेरी इस बात से सहमत हैं?" बादशाह कुछ चिढ़ते हुए बोले।

किसी में भी असहमति दिखाने की हिम्मत नहीं थी। धीरे-धीरे एक के बाद एक झुककर बादशाह को सलाम करते हुए बोले, "हां, जहांपनाह आप ठीक कहते हैं।"

बादशाह अकबर सोचने लगे सभी दरबारी मूर्खता दिखा रहे हैं, वे बीरबल की तरफ मुड़े और बोले, "और तुम, बीरबल। क्या तुम भी सहमत हो ?"

"हां, क्यों नहीं" बीरबल ने तुरन्त जवाब दिया। बादशाह की चिढ़ बढ़ने लगी।

"जहांपनाह, आप वह कर सकते हैं जो ईश्वर नहीं कर सकता।"

बीरबल बोले, "अगर आपका कोई विषय आपको नाखुश करता है, जहांपनाह, आप उसे या तो तीर्थयात्रा पर भेज देते हैं या अपनी सल्तनत से मिटा देते हैं।

लेकिन ईश्वर नहीं।

ईश्वर पूरी पृथ्वी, आकाश और स्वर्ग पर राज करते हैं।

पूरे संसार में ऐसी कोई जगह नहीं है जो ईश्वर से संबंधित न हो।

इसलिए वह किसी भी जीव को मिटाता नहीं है।"

बादशाह का गुस्सा गायब हो गया।

बिल्कुल ठीक कहा, "बीरबल खुशी से बोले।

और फिर दरबार के हर कोने से दरबारी मुस्कराने लगे और फिर हंसने लगे। बीरबल ने दोबारा जादू कर दिखाया।

शिक्षा : कभी भी अपने मालिक को नीचा नहीं दिखाना चाहिए, लेकिन जब आप उसकी प्रशंसा करें तो प्रशंसा प्रमाणिक होनी चाहिए। यह मुश्किल नहीं है। अगर आपसे श्रेष्ठ लोग अपनी कमियों को जानते हैं, तो आपकी झूठी प्रशंसा आपको परेशानी में डाल सकती है।