अकबर ने सबक़ सीखा

अकबर बीरबल कहानी - Akbar Birbal Kahani

अकबर हमेशा एक अच्छे प्रशासनिक बनना चाहते थे।

वह सोचते थे कि बादशाह के रूप में उन्हें अपने राज्य की सही तस्वीर नहीं मिल सकती थी।

वह अपने राज्य और अनेक विषयों के बारे में एक आम आदमी बन कर जानना चाहते थे।

अक्सर वे भेस बदलकर आगरा शहर में घूमते थे।

उनके मंत्री, बीरबल यह ठीक नहीं मानते थे क्योंकि इससे बादशाह को खतरा हो सकता था।

ऐसे ही एक अवसर पर जब बादशाह भेस बदलकर निकलने को तैयार थे, बीरबल ने अपनी असहमति जतायी, "जहांपनाह, यह ठीक नहीं है।

एक बादशाह का जीवन कीमती है और उसकी सुरक्षा आवश्यक है।"

लेकिन अकबर ने बीरबल की चेतावनी की परवाह नहीं की और गली से बाहर निकल गये।

कुछ देर बाद, अकबर को महसूस हुआ कि कोई उनका पीछा कर रहा है।

थोड़ी देर तो उन्होंने उस तरफ ध्यान नहीं दिया।

लेकिन थोड़ी देर बाद उन्होंने उस आदमी का सामना करने की सोची।

"तुम्हारा नाम क्या है ?" अकबर ने पूछा। "घुमन्तु", आदमी ने जवाब दिया।

"तुम जीने के लिए क्या करते हो ?" अकबर बोले।

"मैं घूमता रहता हूं।"

आदमी बोला। "तुम रहते कहां हो ?"

अकबर ने आगे पूछा। "हर जगह', जवाब आया।

अब तक अकबर झुंझला चुके थे, "क्या तुम जानते हो तुम किससे बात कर रहे हो ?"

"हां, एक मनुष्य के साथ, शायद," अजनबी ने उत्तर दिया।

"कोई साधारण आदमी नहीं। मैं बादशाह हूं।

अगर तुम्हें विश्वास नहीं है तो मैं तुम्हें शाही मोहर दिखा सकता हूं।

ऐसा कहते हुए बादशाह ने मोहर उस आदमी को दिखायी।

पहले तो अजनबी उसे घूरता रहा और फिर जल्दी से उसे अपनी जेब में रखकर भाग गया।

तब अकबर को महसूस हुआ, उन्होंने क्या किया। "चोर! चोर!

पकड़ो उसे। पकड़ो उसे!" वह चिल्लाने लगे।

बहुत से लोग उनकी चिल्लाने की आवाज सुनकर चोर के पीछे भागे।

अकबर बोले, "उसे जाने मत देना।"

उस अजनबी को जब लोगों ने पकड़ा तो वह उनको हटाते हुए बोला, "मूर्खा!

क्या तुम मुझे नहीं जानते ? मैं बादशाह हूं।

तुम मेरी मोहर देखो, शायद फिर तुम मान जाओ।"

लोग उससे माफी मांगने लगे।

हमें माफ कर दीजिए, जहांपनाह, हम एक पागल आदमी की बात मानकर ऐसा कर रहे थे।

अकबर यह सब देख रहे थे।

"मुझे इनके ऊपर हमला करने से पहले महल लौट जाना चाहिए, उन्होंने स्वयं से कहा।

मुझे विश्वास है कि बीरबल चोर पकड़ने में मदद करेंगे। बीरबल ने हमें अकेले बाहर न जाने के लिए चेतावनी दी थी।

ओह! अब मैं कैसे उसका सामना करूंगा ?"

यह सोचते हुए अकबर ने अपने कक्ष में प्रवेश किया। भीतर घुसते ही उन्होंने देखा सामने मेज पर कुछ रखा था।

उसे खोला तो उसमें मोहर और एक पर्ची देखकर हैरान हर गये।

पर्ची में लिखा था "मैंने आपको चेतावनी दी थी कि बिना सैनिकों के बाहर जाना सुरक्षित नहीं है।

आज तो आपने केवल अपनी मोहर गंवाई थी, पर इससे बुरा भी हो सकता था।

" नीचे बीरबल का नाम लिखा था। तो ये बीरबल थे।

लेकिन मैंने अपना सबक सीख लिया।

शिक्षा : हमें तीव्रता से कोई भी कार्य नहीं करना चाहिए। किसी भी महत्वपूर्ण कार्य को करने से पहले अपने कार्य के परिणामों के बारे में सोचना चाहिए।