बादशाह अकबर और उनके दरबारी शाही बाग में टहल रहे थे।
"कितना सुंदर है ?"
शाही कवि बादशाह का ध्यान एक झाड़ी पर लगे फूल की तरफ दिलाते हुए बोले।
“मनुष्य कभी भी इतनी सुंदर वस्तु नहीं बना सकता।"
"मनुष्य कई बार इससे भी सुंदर वस्तु बना सकता है।" बीरबल बोले।
"मैं विश्वास नहीं करता!" बादशाह बोले। "तुम बिल्कुल गलत कह रहे हो, बीरबल।"
कुछ दिन बाद बीरबल आगरा के एक कलाकार को अकबर के सामने लाया।
उस व्यक्ति ने बादशाह को संगमरमर से बने हुए फूलों का गुच्छा भेंट किया।
बादशाह ने उसे एक हजार स्वर्ण मुद्राएं इनाम में दीं।
तभी एक छोटा बालक आया और बादशाह को गुलाब के फूलों का गुच्छा दिया।
बादशाह ने उसका धन्यवाद किया और एक चांदी का सिक्का दिया।
"तो तराशी गयी वस्तु असली वस्तु से अधिक सुन्दर थी।"
बीरबल बोले और बादशाह ने महसूस किया कि वे फिर से एक दरबारी की चापलूसी में आ गये। शिक्षा : कला के काम की कीमत नहीं होती है। कोई भी कलाकृति असली वस्तु से सुंदर हो सकती है क्योंकि इससे वास्तविकता जीवित रहती है। इसलिए कलाकार की कला की प्रशंसा करनी चाहिए। हम बाग-बगीचे तो बना सकते हैं लेकिन एक कलाकार नहीं।