घोड़े का मालिक

अकबर बीरबल कहानी - Akbar Birbal Kahani

'पुरा के राजा, चन्द्रवर्मा ने अकबर के बारे में सुना और उससे मिलने इच्छुक हुआ।

वह व्यापारी का भेस बनाकर घोड़े पर सवार होकर चल दिया।

रास्ते में उसे एक आदमी मिला, जो लंगड़ाकर चल रहा था वह उसी दिशा में जा रहा था।

राजा चन्द्रवर्मा ने उस आदमी, रवि शर्मा, से कहा कि वह घोड़े पर बैठ जाये और दोनों अपनी मंजिल की तरफ चल दिए।

वहां पहुंचकर राजा ने उसे नीचे उतरने को कहा तो शर्मा ने मना कर दिया, और बोला यह घोड़ा मेरा हो गया है।

उनकी लड़ाई से भीड़ एकत्र हो गयी और दोनों का झगड़ा सुलझाने के लिए बीरबल के पास ले गये।

बीरबल ने घोड़े को रख लिया और उन्हें अगले दिन आने को कहा।

जैसे ही दोनों चले गये बीरबल ने घोड़े के रखवाले को बुलाकर कहा, "जाओ देखो कि घोड़ा किसके पीछे जा रहा है ?"

उस नौकर ने बताया घोड़ा चन्द्रवर्मा के पीछे जा रहा था।

अगले दिन जब दोनों घोड़े को लेने पहुंचे तो बीरबल ने कहा, "अस्तबल से जाकर घोड़ा ले आओ।" पहले रवि शर्मा गया, पर इतने घोड़ों के बीच उस घोड़े को पहचान सका और खाली हाथ वापिस आ गया।

जैसे ही चन्द्रवर्मा अस्तबल में घुसे उन्हें देखकर घोड़ा हिनहिनाने लगा और वर्मा के लिए उसे पहचानना आसान हो गया।

घोड़ा उसके मालिक को सौंप दिया गया और रवि शर्मा को सजा मिली।

शिक्षा : हम सबकी कुछ मनोवैज्ञानिक प्रवृत्तियां होती हैं, जो कि हमारे द्वारा प्रभावशाली ढंग से उपयोग की जा सकती हैं। इसी तरह जानवरों की, विशेषकर पालतू जानवरों की। इस कहानी से हमें यह भी शिक्षा मिलती है कि हमें किसी की सहायता करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि वह इस सहायता के लायक है भी या नहीं।