राजा और चांद

अकबर बीरबल कहानी - Akbar Birbal Kahani

अकबर ने एक बार बीरबल को किसी काम के लिए काबुल भेजा।

वहां पर उन्हें एक जासूस समझ कर वहां के राजा के सामने पकड़ कर लाया गया।

राजा : “तुम कौन हो और मेरे राज्य में क्या कर रहे हो ?"

बीरबल : "मैं भारत से आया हुआ एक मुसाफिर हूं।"

राजा : “अगर तुम इतने बड़े यात्री हो तो बताओ तुम मेरे शासन के बारे में क्या सोचते हो ?"

बीरबल : "आप पूर्ण चन्द्रमा की तरह हैं, आपकी ताकत और साहस की कोई तुलना नहीं है।"

राजा इस उत्तर से संतुष्ट हुए, लेकिन पूछा : "तुम्हारे राजा के बारे में ?"

बीरबल : "वे एक नये चांद की तरह हैं जिनकी तारीफ करने को ज्यादा कुछ नहीं है।"

राजा इतना खुश हुआ कि उसने बीरबल को एक थैला भरकर सोने की मोहरें दीं।

उसके लौटने पर, अकबर के दरबारियों ने पहले ही बादशाह को बीरबल और काबुल के राजा के बीच हुई बातें बता दीं।

अकबर : "बीरबल, मैंने सुना तुम्हें काबुल के राजा ने सम्मान दिया।"

बीरबल : "हां, जहांपनाह। उन्होंने मुझसे आपके बारे में पूछा।"

अकबर : "मैंने सुना कि तुमने उन्हें पूरे चन्द्रमा और हमारी नये चांद तुलना की।"

बीरबल : "यह सच है, जहांपनाह।"

अकबर : "तुम्हारी अपने बादशाह की बेइज्जती करने की हिम्मत कैसे हुई ?"

बीरबल : "मैंने तो आपकी प्रशंसा की।

बढ़ता हुआ चन्द्रमा तो बढ़ती समृद्धि का प्रतीक माना जाता है और उससे प्रशंसा भी बढ़ती है हिन्दू और मुस्लिम दोनों ही चन्द्रमा को दूसरे दिन से देखना शुरू करते हैं।

जबकि पूर्ण चन्द्रमा की शक्ति और ऊर्जा धीरे-धीरे कम होती जाती है।"

अकबर : "मैं तुम पर पूर्ण विश्वास कर सकता हूं।"

शिक्षा : अपने संदेश को इस प्रकार संप्रेषित करें कि प्राप्तकर्ता वही देखे जैसा वह चाहता है और उससे किसी की हानि भी न हो। कूटनीति एक कला है- इसे सीखें और पारंगत हों यदि आप शीर्ष पर पहुंचना चाहते हैं। यह वाहन में ईंधन की तरह ही आवश्यक है।