सृजनकर्ता और आलोचक

अकबर बीरबल कहानी - Akbar Birbal Kahani

'बादशाह अकबर अपने अच्छे स्वभाव और कला के प्रेमी के रूप में कला के लिए उनका सम्मान करते थे।

अकबर बीरबल की कला की परीक्षा लेना चाहते थे।

एक दिन उन्होंने बीरबल से पूछा कि क्या वह बादशाह की तस्वीर बना सकता है ?

बीरबल तैयार हो गये और बादशाह की एक अच्छी तस्वीर बना दी।

अकबर ने कुछ मंत्रियों को बुलाया और तस्वीर के बारे में अपने विचार देने को कहा।

पहले ने उस तस्वीर को विभिन्न कोणों से देखा।

उन्होंने कलाकार का ब्रश लिया और एक जगह पर एक बिन्दु लगा दिया।

"यहां से यह बादशाह की तरह नहीं दिखायी देती।" वह बोला।

दूसरे ने भी वही तरीका अपनाया।

उसने तस्वीर को ऊपर से नीचे तक देखा और उस पर एक दूसरा बिन्दु लगा दिया।

ओह, यह तस्वीर यहां से बादशाह जैसी नहीं दिखती है।" वह अधिकारपूर्वक बोला।

कुछ और मंत्री भी बीरबल की टांग खींचने का इंतजार कर रहे थे यह उनके लिए सुनहरा अवसर था।

उन सबने उस पर इधर-उधर बिन्दु लगा दिए।

बादशाह अकबर बोले, "बीरबल, इन सबने ये बिन्दु इस पर क्यों लगा दिए जबकि पूरी तस्वीर मेरे जैसी दिखती है ?"

"हां, जहांपनाह!" मैंने एक उचित कार्य किया है।

मैं देखता हूं कि क्या ये लोग भी एक साफ तस्वीर बना सकते हैं या कम से कम ये गलतियां जो इन्होंने निकाली हैं ठीक कर सकते हैं या नहीं।" बीरबल ने कहा।

जब मंत्रियों ने ये सुना, तो सब माफी मांगने लगे, "नहीं-नहीं, तस्वीर तो अच्छी बनी है, लेकिन मेरा अर्थ था कि इसे और बेहतर बनाया जा सकता है।"

"मैंने काफी लंबे समय से ब्रश को हाथ नहीं लगाया है।" दूसरा बोला।

हर कोई, कोई न कोई बहाना बनाकर वहां से निकल गया।

शिक्षा : आलोचना करना आसान है जब कि कुछ सृजन करना मुश्किल। जब आपसे अधिकारी कोई सलाह मांगता है तो यह अवसर किसी की टांग खींचने का नहीं बल्कि उसका भरपूर इस्तेमाल करने का है।