एक बार बादशाह अकबर ने बीरबल को आदेश दिया कि शहर से चार छटे हुए मूर्ख ढूंढकर लाओ।
बीरबल चले गये।
रात होने पर उन्होंने सड़क पर देखा कि एक आदमी लैंप पोस्ट की रोशनी में बैठा कुछ खोज रहा है।
उन्होंने करीब जाकर पूछा-"क्या ढूंढ रहे हो ?"
"मेरा एक रुपया खो गया, दीवान जी!"
आदमी ने बताया। 'कहां खोया था?" "वहां, उस पेड़ के नीचे।"
"तो वहीं क्यों नहीं ढूंढ़ते ?"
"अरे दीवान जी, वहां अंधेरा है।"
"ओह!'' बीरबल समझ गये कि यही मूर्ख नम्बर एक है।
वे उसे रुपया देने का लालच देकर अपने साथ ले आये।
कुछ दूर ही गये थे कि एक घुड़सवार मिला।
वह घोड़े पर बैठा चला आ रहा था। उसके सिर पर लकड़ियों का गट्ठर था।
बीरबल ने करीब आने पर उससे पूछा, "अरे, ये गट्ठर सिर पर क्यों रखा हुआ है ?
घोड़े पर क्यों नहीं रखते ?"
"घोड़ा बेहद कमजोर है, दीवान जी।
इसलिए मैंने गट्ठर अपने सिर पर रख लिया है।
" बड़ी मासूमियत से वह बोला, "अब आप ही बतायें मैं भी घोड़े पर बैठा हूं। मेरा ही वजन यह नहीं संभाल पा रहा है तो फिर का वजन भी उसी पर रख दूंगा तो इसकी क्या हालत होगी।
यह बेचारा तो मर ही जायेगा।"
बीरबल उस महा अक्लमंद की शक्ल देखते रह गये।
तभी उस व्यक्ति ने गटुर जमीन पर फेंक दिया और घोड़े से कूदकर बोला, "दीवान साहब! आदाब बजा लाता हूं।"
"ठीक है, ठीक है।" बीरबल ने कहा, "तुम हमारे साथ चलो, हम तुम्हें नया घोड़ा दे देंगे।"
बीरबल उन दोनों को लेकर उसी समय बादशाह के पास पहुंचे और उनकी करतूतें बतायीं।
बादशाह बोले, "ठीक है, मगर हमने तो चार मूर्ख लाने को कहा था। यह तो तुम दो ही लाये हो।"
"जहांपनाह! इस समय दो मूर्ख यहीं मौजूद हैं।" बीरबल बोले।
बादशाह चौंककर इधर-उधर देखने लगे, मगर वहां उन दोनों के अतिरिक्त कोई और होता तो दिखता।
अतः वे उलझन में पड़ गये और बोले, "अरे भई बीरबल! कहां हैं दो मूर्ख और ?"
बीरबल बोले, "गुस्ताखी मुआफ हो आलीजाह, तीसरा मूर्ख मैं हूं जो ऐसा वाहियात काम करता फिर रहा हूं।"
"और चौथा!' "चौथे मूर्ख आप हैं जो मुझसे ऐसा काम करवा रहे हैं।
बीरबल की बात सुनकर बादशाह अकबर खिलखिला कर हंस पड़े।
फिर उन्होंने दोनों मूल् को इनाम देकर रुखसत कर दिया।
शिक्षा : कभी किसी की मूर्खता की क्षमता को कम नहीं आंकना चाहिए-स्वयं की भी। बीरबल ने भी स्वयं को मूर्ख बताकर बुद्धिमता दिखायी।