एक बार बादशाह अकबर बीमार हो गये।
उनकी बीमारी भी विचित्र थी।
बहुत उपाय करने पर भी उन्हें नींद नहीं आती थी।
वैद्य और हकीम भी उपचार करते-करते थक गये थे।
एक दिन चीन से एक हकीम आया।
उसने बादशाह की जांच की और एक युक्ति बतायी।
उसने कहा, "आप रोज रात को सोते समय एक लम्बी कहानी सुना कीजिए, इससे आपको नींद आयेगी और धीरे-धीरे आपका रोग मिट जायेगा।"
अकबर ने कहा, "रोज-रोज मुझे कहानी कौन सुनायेगा ?"
बीरबल ने कहा, "चिन्ता की कोई बात नहीं है।
दरबारी तो हैं ही!
रोज एक दरबारी आपके पास आयेगा और कहानी सुनायेगा।
एक दिन मैं भी कहानी सुनाने आऊंगा।" बादशाह को बीरबल की योजना पसन्द आयी।
फिर तो कहानी कहने के लिए प्रतिदिन एक-एक दरबारी आने लगा।
लेकिन यह युक्ति सफल नहीं हुई।
दरबारी कहानी कहते-कहते थक जाते लेकिन बादशाह को नींद न आती।
वह जागते रहते।
दरबारी भी कहानी कहते-कहते थक जाते और अन्त में वे स्वयं ऊंघने लगते।
अंत में बीरबल की बारी आयी, उसने अपनी कहानी इस प्रकार शुरू की।
"एक था जंगल।' "फिर ?" बादशाह ने कहा।
"जंगल में एक झोंपड़ी थी। उसमें किसान अपने परिवार के साथ रहता था।"
"फिर ?"
"किसान खेती करता, फसल पैदा करता और खाने के लिए अनाज इकट्ठा करके रखता।"
"फिर ?"
"पक्षी उसकी झोंपड़ी में घुस जाते और एक-एक दाना लेकर उड़ जाते।"
"फिर?" बीरबल ने सोचा, इस 'फिर.... फिर' का कोई उपाय करना पड़ेगा।
बीरबल ने कहा, "किसान मिट्टी का एक बर्तन ले आया। उसने अनाज भरकर एक मोटे कपड़े से बर्तन का मुंह बन्द कर दिया।"
"फिर?" "पक्षी झोपड़ी में जाते, परन्तु उन्हें दाने न मिलते।' "फिर ?"
उस झोपड़ी में एक चूहा रहता था। एक चतुर चिड़िया ने उससे दोस्ती कर ली। फिर उसने चूहे से अनाज वाले बर्तन के मुंह पर बंधे हुए कपड़े को कुतरवा दिया।"
"फिर ?"
"फिर एक के बाद एक पक्षी आते गये। इस प्रकार झोंपड़ी के आगे हजारों पक्षी इकट्ठे हो गये। उनमें से एक पक्षी झोंपड़ी में गया। उसने कोठरी में से दाना लिया फिर वह उड़ गया, फुर्र.....।"
"फिर ?"
"दूसरा पक्षी आया, दाना लिया और उड़ गया, फुर्र...।" “फिर?" "तीसरा पक्षी आया, दाना लिया और उड़ गया,
फुर्र...।" "फिर?" "चौथा पक्षी आया, दाना लिया और उड़ गया, फुर्र...।" "फिर?"
"पांचवा, छठा, सातवां, आठवां, नौवां पक्षी आया। दाना लिया और उड़ गया, फुर...। "
बीरबल की फुर्र-फुर्र से बादशाह पूरी तरह ऊब गये। उन्होंने कहा, "अब कितने पक्षी उड़ने बाकी हैं।"
बीरबल ने कहा, "जहांपनाह, अभी तो नौ ही उड़े हैं। एक-एक करके हजारों पक्षियों को उड़ने में देर तो लगती है न?"
अकबर ने जम्हाई लेते हुए कहा, अब बाकी पक्षियों को तुम कल उड़ाना। आज तो मुझे नींद आ रही है।" करवट बदलकर बादशाह ऊंघने लगे। बीरबल अपने घर चले गये।
दूसरे दिन अकबर ने कहा, "बीरबल! तुम्हारी कहानी में मुझे बड़ा मजा आया, मुझे अच्छी नींद आयी।"
बीरबल ने कहा, "फिर ?" बादशाह बोले, "फुर्र?" दोनों हंस पड़े।
शिक्षा : कुछ लोगों को जब तक दर्पण न दिखाया जाए तब तक उन्हें समझ नहीं आता कि वे क्या कर रहे हैं। अतः किसी के व्यवहार के बारे में बहस करने या गलती ढूंढ़ने से अच्छा है कि उनके व्यवहार की नकल आसानी से हल ढूंढ़ सकती है।