नाम की महिमा

अकबर बीरबल कहानी - Akbar Birbal Kahani

बीरबल बुद्धिमान होने के साथ-साथ राम के भक्त भी थे।

अकबर जहां भी जाते, बीरबल को साथ लेकर जाते थे।

एक बार वे किसी शाही कार्य से जा रहे थे तो उन्हें घने जंगल से गुजरना पड़ा।

इस यात्रा से दोनों थक गये और परेशान भी हो गये थे।

अतः उन्होंने एक पेड़ के नीचे विश्राम करने का निर्णय लिया और फिर अपनी यात्रा आगे बढ़ाएंगे।

अकबर को भूख लगी थी, तो उन्होंने आसपास देखा कि कोई घर मिल जाए तो कुछ खाने का इंतजाम हो।

उन्होंने बीरबल से भी पूछा, लेकिन बीरबल तो राम नाम जप रहे थे, तो उससे बोले, "केवल भगवान का नाम जपने से वो तुम्हारे लिए भोजन लेकर नहीं आयेंगे।

तुम्हें स्वयं प्रयास करना पड़ेगा। अन्यथा तुम्हें कुछ नहीं मिलेगा।"

ऐसा कहने के बाद अकबर बीरबल को छोड़कर भोजन की तलाश में निकल पड़े।

थोड़ी देर बाद उन्हें एक घर नजर आया।

घर में रहने वाला परिवार बादशाह को अपने दरवाजे पर भोजन के लिए आता देख खुश हुआ उन्होंने उन्हें भोजन कराया।

अकबर ने खाना समाप्त करा और बीरबल के लिए भी थोड़ा खाना ले लिया।

वह वापस आकर बीरबल को खाना देते हुए बोले, "देखो, बीरबल, मैंने तुम्हें कहा था, मैंने प्रयास किया तो मुझे भोजन मिल गया और तुम्हें कुछ नहीं मिला।"

बीरबल बादशाह की बातों को अहमियत न देकर खाना खाने लगे।

खाना समाप्त करने के बाद, उसने अकबर की तरफ देखा और बोला, "मैंने राम नाम की महिमा का अनुभव इससे पहले कभी नहीं किया।

आप बादशाह हैं, लेकिन आज बादशाह को भी भोजन मांगकर खाना पड़ा और मुझे देखिए।

मैं यहां पर केवल राम नाम जप रहा था और राम नाम के कारण बादशाह स्वयं मेरे लिए भोजन लेकर आया, वह भी मांगकर।

तो मैंने यहां बैठे बैठे ही भोजन प्राप्त कर लिया। यही तो राम नाम की शक्ति है।

शिक्षा : अपने उद्देश्य को पूरा करने के लिए आपके पास अनेकों स्रोत होते हैं। यह आपके ऊपर है कि आप अपने स्वभाव, परिस्थिति और परिणाम देने वाले को चुनते हैं और अगर वह आपको मिल जाता है तो प्रार्थना आपकी जरूरत को पूरा करने में मदद करती है। अतः उसका उपयोग करें।