बादशाह अकबर के राज में एक बार लम्बी दाढ़ी का चलन हो गया।
उस समय सेफ्टी रेजर नहीं थे। इसलिए नाइ ही लोगों को हजामत बनाते थे।
लंबी दाढ़ी के चलन के कारण नाईयों का कारोबार ठप्प पड़ गया।
राजू एक ऐसा ही लेकिन लालची नाई था।
उस समय बादशाह दरबार में आने वालों को तोहफे देते थे।
राजू जब दरबार में आया तो उसे चांदी का सिक्का मिला, तो उसने उसे लेने से मना कर दिया और बादशाह से मिलने की हठ करने लगा।
उस समय बादशाह भी अपनी प्रजा के प्रति वफादार थे।
अकबर आये और नाई से परेशानी पूछी।
राजू ने बादशाह को लंबी दाढ़ी के चलन का जिम्मेदार ठहराते हुए उसके व्यवसाय को ठप्प करने का कारण बताया।
बादशाह कुछ नहीं कर सकते थे और सहमत भी हुए क्योंकि यह बात सही थी।
उन्होंने ही यह चलन आरंभ किया था क्योंकि उन्हें लगता था लंबी दाढ़ी से वे ज्यादा बुद्धिमान दिखते हैं।
राजू ने कहा कि बादशाह उसे आगरा में अकेला नाई घोषित कर उसके साथ न्याय करें। अकबर को भी बुरा लग रहा था इसलिए उन्होंने एक फरमान जारी किया कि जो स्वयं दाढ़ी नहीं बना सकते वे सिर्फ राजू से ही हजामत बनवाएंगे।
आज्ञा की अवहेलना करने वाले को फांसी की सजा दी जायेगी।
राजू संतुष्ट होकर घर गया और आगरा का अकेला नाई बन गया।
इस बात से उसे ऐसा भी लगा कि वह बिना डर के दाम भी बढ़ा सकता है क्योंकि अब तो वह अकेला नाई है।
इससे आगरा के नागरिकों को महंगी हजामत बनवाने के लिए बाध्य होना पड़ा।
धीरे-धीरे स्वयं हजामत न करने वाले व्यक्ति राजू को मुंहमांगा धन देते-देते थक गये।
उन्होंने पुरोह को अपना नेता बनाकर बादशाह के पास भेजा, पर बादशाह ने तो स्वयं यह फरमान जारी किया था।
इसलिए वे बीरबल के पास गये। बीरबल को पूरी कहानी बतायी।
बीरबल ने फरमान पढ़ा और पुरोह से पूछा -
'यह फरमान कब जारी किया गया?" पुरोह : "हुजूर, आठ महीने पहले।" बीरबल : "क्या राजू की भी दाढ़ी है ?"
पुरोह : “हुजूर, यह समय चलन के बारे में बात करने का नहीं है, आप हमारी समस्या का समाधान निकालिए।"
बीरबल : "मूर्ख! मैं वही कर रहा हूं। अब बताओ क्या राजू दाढ़ी है ?"
पुरोह : "मैंने उसे दो सप्ताह पहले देखा था और तब उसकी दाढ़ी नहीं थी, लेकिन अब है या नहीं मैं विश्वास के साथ नहीं कह सकता।'
बीरबल : "ठीक है. अब जाओ और उसे पकड़कर लाओ, उसे कहना बादशाह मिलना चाहते हैं। मैं भी तुम्हें वहीं मिलूंगा।"
पुरोह राजू को लेकर बादशाह के पास आया तो बीरबल भी वहीं बैठे थे।
बीरबल : राजू तुमने अपने अनाप-शनाप मूल्यों से बहुत धन कमा लिया है। अब अच्छा है कि तुम बादशाह का यह फरमान वापस लेने की बात मान जाओ।
बीरबल ने उसे बहुत समझाया, पर वह न मना करता और न ही मानता।
अब बीरबल उसे समझाते-समझाते थक गये।
बीरबल : "राजू जाने से पहले एक बात बताओ तुमने आखिरी बार हजामत कब बनवाई थी ?"
राजूः "हुजूर, मैं हर सुबह अपनी हजामत बनाता हूं।" बीरबल : "क्या तुम किसी और नाई के पास जाते हो ?'
राजू : "नहीं, हुजूर, फरमान के पश्चात् आगरा में मैं अकेला नाई हूं। मैं अपनी हजामत स्वयं बनाता हूं।"
बीरबल : "जहांपनाह, आपके फरमान के अनुसार, राजू को मौत की सजा मिलनी चाहिए।"
राजू : "जहांपनाह, अगर आप मुझे मौत की सजा देंगे क्योंकि मैंने आपकी बात नहीं मानी, तो लोग कभी आपके ऊपर भरोसा नहीं करेंगे।"
अकबर : "बीरबल, क्या तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है? मैं राजू के काम से खुश नहीं हूं, लेकिन मैंने फरमान भी जारी किया था।"
बीरबल : "वह ठीक है लेकिन इसने स्वयं आपके फरमान की अवहेलना की है। आपके फरमान के अनुसार, वह केवल उनकी हजामत कर सकता है जो स्वयं अपनी हजामत नहीं कर सकते।"
अकबर : "बिल्कुल सही।"
बीरबल : "तो उसे केवल दूसरों की हजामत बनाने की इजाजत है, स्वयं अपनी नहीं।"
राजू सन्न रह गया। वह बादशाह की तरफ मुड़ा और बोला, "जहांपनाह, लेकिन आपके फरमान के अनुसार, अगर मैं अपनी हजामत नहीं करता तो मुझे अपनी भी हजामत करनी पड़ती जो हजामत नहीं करते वे से हजामत करवाएंगे।'
तब बीरबल बोले : यह सच है लेकिन तुमने फरमान नहीं माना क्योंकि फरमान में था केवल वे जो स्वयं हजामत नहीं कर सकते वे राजू से हजामत बनवाएंगे।'
अगर तुम स्वयं की हजामत करते हो तो तुमने फरमान की अवहेलना की है।
राजू सफेद पड़ गया और बोला, "जहांपनाह, इस फरमान के अनुसार, अगर मैं अपनी हजामत नहीं करता तब भी फंसता, करता तब भी फंसता।
कोई बात नहीं अगर मुझे मृत्यु दी जाती है।
" बादशाह ने राजू की तरफ देखा, "तुम्हें तुम्हारे लालच की सजा मिलेगी।
तुमने लोगों से हजामत के लिए पांच गुना धन वसूल किया है।
पहले मैं कुछ नहीं कर पा रहा था क्योंकि यह मेरा फरमान था।
लेकिन मैं तुम्हें मृत्यु की सजा नहीं दूंगा। बीरबल क्या कोई और रास्ता है ?"
बीरबल बोले, "जहांपनाह यह फरमान केवल आगरा तक सीमित है इसलिए राजू को आगरा से बाहर निकाल दिया जाए और कानून तोड़ने के लिए उसे माफी दे दी जाए।"
शिक्षा : इस कहानी से शिक्षा मिलती है कि जो व्यक्ति गलत तरीके से सफलता पाते हैं एक दिन वे अपने जाल में स्वयं फंस जाते हैं। संतुलित चरित्र के लिए स्वयं पर नियंत्रण आवश्यक है।