एक बार बादशाह अकबर ने बीरबल की बुद्धि की परीक्षा लेनी चाही।
उन्होंने बीरबल से पूछा "बीरबल, क्या बुद्धि की खेती की जा सकती है ?"
बीरबल कुछ सोचते हुए बोला "जी हुजूर, जरूर की जा सकती है।"
यह सुनकर अकबर बोले -" तो ठीक है, तुम बुद्धि की खेती करो और उसका फल हमें उपहार में दो।"
बीरबल बोले -"जैसा जहांपनाह का हुक्म! मैं जल्दी ही बुद्धि की खेती करके उसका पहला फल आपको भेंट करूंगा।"
सभी दरबारी अकबर और बीरबल की बातें सुन रहे थे।
वे हैरान थे कि बीरबल बुद्धि की खेती कैसे करेंगे और कैसे बुद्धि का फल बादशाह को भेंट करेंगे ?
दरबार के समाप्त होने पर बीरबल सीधे राजमाली के पास जा पहुंचे और बोले -"माली, राज उद्यान में कदू की बेलों पर क्या कदू आ रहे हैं ?"
माली बोला –“हुजूर! आ तो रहे हैं, पर अभी वे आलू - टमाटर जितने ही छोटे हैं।"
यह सुनकर बीरबल बहुत प्रसन्न हुए।
उन्होंने माली के कान में कुछ कहा, फिर वे अकबर के पास गए और बोले -"जहांपनाह!
मैंने बुद्धि की खेती शुरू कर दी है।
मैं कुछ दिनों में आपको बुद्धि का पहला फल भेंट कर दूंगा।"
कुछ दिनों के बाद बीरबल राज उद्यान में फिर गए।
वहां माली ने छोटे-छोटे कदुओं को घड़े के अंदर डाल रखा था।
यह देखकर बीरबल वापस लौट आए।
उधर कद्रू मटकों में ही बड़े होने लगे।
कुछ दिनों बाद कद्दू इतने बड़े हो गए कि पूरे मटकों में समा गए।
अब उन्हें मटकों को तोडे बिना नहीं निकाला जा सकता था।
यह देखकर बीरबल ने सारे कदू मटकों सहित कटवा लिए और अकबर के पास संदेश भिजवाया कि कल सुबह मैं बुद्धि का पहला फल लेकर दरबार में आ रहा हूं।
अगले दिन दरबार में सब बेसब्री से बीरबल का इंतजार करने लगे।
तभी बीरबल दो मटके लिए दरबार में उपस्थित हुए और अकबर से बोले 'जहांपनाह!
मैं बुद्धि के फल ले आया हूं, किन्तु ये फल बड़े नाजुक हैं।
याद रहे, इन मटकों में से फल निकालते समय न तो बुद्धि का फल कटे और न ही मटके फूटें।"
यह सुनकर बादशाह हैरान रह गए।
उन्होंने मटके में झांककर देखा, तो वे बहुत हंसे।
वे बीरबल की बुद्धिमानी से बहुत प्रसन्न हुए।
सभी दरबारी भी बीरबल की प्रशंसा करने लगे।
शिक्षा : यह कहानी हमें यही शिक्षा देती है कि बुद्धि-बल के सहारे असंभव को भी संभव किया जा सकता है। बुद्धि की कहीं खेती नहीं होती, पर बीरबल ने अपनी बुद्धि-चातुर्य से यह भी कर दिखाई।