बादशाह अकबर जिस दिन खुश होते, उसी दिन शाही बगीचे में 'फुरसती दरबार' का आयोजन किया जाता था।
इसमें न कोई छोटा होता, न कोई बड़ा।
बादशाह कोई शगूफा छोड़ते और दरबारी उस पर अक्ल के घोड़े दौड़ाते।
एक दिन बादशाह ने अपने दरबारियों से पूछा – “आपमें से किस-किस ने शेर का शिकार किया है ?"
सबने कहा 'हमने किया, हमने किया।" बादशाह ने कहा – “किया है तो बताओ कैसे किया ?"
पहला नम्बर खां साहेब का आया।
वह बोले "शेर का शिकार करने का मेरा पहला मौका था।
जिस मचान पर मैं बैठा था, कम्बख्त शेर उसी पर आ कूदा।
मचान टूट गया। धम्म से मैं नीचे गिरा।
दिल ने कहा आज तो तू गया शेर के पेट में।
' दिमाग ने कहा 'मगर शेर है कहां ?' तभी ऊपर से शेर की मिमियाती आवाज आयी।
बमुश्किल आंखें खोली। देखा, शेर मियां पेड़ से उलटे लटके हैं।
उसकी पूंछ टूटी मचान के खांचे में फंसी है और वह बुरी तरह हाथ-पैर मार रहे हैं।
अपनी गनीमत जान, मैंने उठाई तलवार और चला दी।"
बादशाह बोले "यह भी कोई शिकार हुआ ?
चूहेदानी में फंसे चूहे को तो कौवा भी मार सकता है।" दूसरा नम्बर मिर्जा का आया। मूंछों पर ताव देते हुए वह बोले "एक दिन मैं शिकार खेलने गया।
मैं घूमता-फिरता परेशान हो गया।
सामने गीदड़ तक नहीं आया।
थोड़ा दम लेने के लिए पेड़ के तने से पीठ सटाकर बैठा ही था कि तभी नींद आ गयी।
अचानक नाक में कुछ घुसा।
जोर की छींक आई, तो नींद टूट गई।
सामने देखा तो होश फाख्ता हो गए। दो कदम की दूरी पर शेर खड़ा था।
मारे भय के मैंने आंखें बंद कर लीं। वह फिर पास आकर मुझे सूघने लगा।
शायद जानने की कोशिश कर रहा था कि मैं मुर्दा हूं अथवा जिंदा ?
तभी उसकी मूंछे मेरी नाक में फिर घुसी।
मुझे दोबारा जोर की छींक आई।
उछलकर शेर दो कदम पीछे हट गया।
इस बार वह पूरा जबड़ा फाड़े हुए था।
मानो कह रहा हो - जिंदा हो मियां! तो आओ, मेरे गले के रास्ते पेट में उतर जाओ।'
मैंने आव देखा न ताव! उठाई तलवार और तेजी से उसकी तरफ बढ़ा।
शेर घबराकर पीछे हटने लगा।
आखिर वह ऐसे मुकाम पर जा पहुंचा, जहां पीछे गहरी खाई थी।
यह देखकर मैंने तलवार की नोक उससे छुआ दी और वह घबरा गया।
तेजी से पीछे हटा और खाई में जा गिरा।
गनीमत यह हुई कि मैंने सही समय पर खुद को संभाल लिया, वरना...।"
"वरना आप भी उस खाई को आबाद कर देते।" बादशाह ने कहा 'मगर इसे शिकार कौन कहेगा ?
असली शिकार तो वह है जो दो-दो हाथ करके आमने-सामने की धड़-पकड़ में किया जाये।"
इतना सुनकर मिर्जा का चेहरा उतर गया।
अचानक पीछे से सत्तर साल के एक बूढ़े मौलाना की आवाज उभरी "बादशाह सलामत ने अभी कहा कि असली शिकार वह जिसमें आमने-सामने की लड़ाई में शेर को मात दी जाए।
मेरे साथ तीस-बत्तीस बरस पहले ऐसा ही वाकया पेश आया था।"
यह सुनकर बादशाह चकित होकर बोले अच्छा!"
मौलाना ने कहा - "हां जहांपनाह! उन दिनों शेरगढ़ का इलाका घने जंगलों से भरा पड़ा था।
दिल्ली में एक अफवाह फैली थी कि उन जंगलों में एक टीला है, जिसमें बेशुमार दौलत छिपी है।
एक दिन मैं और मेरे कुछ दोस्त उस टीले की तलाश में जंगल में जा घुसे।
कुछ ही दूर गए थे कि हमने शेर की दहाड़ सुनी। हम सब सिर से पैर तक कांप उठे।
सबके सब वापस भाग लिए। मैंने भी भागना चाहा, लेकिन भाग न सका।
सामने से शेर जो आ रहा था।
ये नुकीले दांत, ये लम्बे-लम्बे नाखून, खून बरसाती उसकी आंखें।
होश गुम होते, इससे पहले ही मैं उलटे पैरों दौड़ लिया। मैं आगे-आगे, शेर मेरे पीछे-पीछे।
रास्ते में कीचड़ से भरा एक पोखर था। बदहवासी में मैं उसे देख नहीं पाया और जा गिरा उसमें। देर तक कीचड़ में गोते खाता रहा।
कीचड़ से सराबोर आंखों को जोर लगाकर खोलते हुए सामने देखता रहा। सोचता रहा 'शेर कहां चला गया ?'
पौने घंटे तक शेर नहीं आया, तो मैं जैसे-तैसे पोखर से बाहर आया। मुझ पर मेरे अपने वजन से दोगुना कीचड़ लिपटा था। चल भी बहुत मुश्किल से रहा था कि देखा - शेर पोखर के पास एक झुरमुट में बैठा, मुझे घूर रहा है।
शायद वह यह पहचानने की कोशिश कर रहा था कि यह है कौन? वह तो यकीनन नहीं, जिसके पीछे में भागा था।
सहसा शेर ने मुंह फाड़ा।
मुझे लगा कि गश खाकर गिर पडूंगा।
ऐसी सूरत में सहारे के लिए कीचड़ लिपटे दोनों हाथ आगे को जो उठे, शेर एकदम उछला और भाग खड़ा हुआ।"
यह सुनकर बादशाह अकबर बोले "आमना-सामना बेशक हुआ, लेकिन कुश्ती तो नहीं हुई।" अचानक उसकी निगाह बीरबल की ओर उठ गई।
उसे उकसाते "क्यों बीरबल ?
क्या तुम्हारा कभी किसी शेर से आमना-सामना हुआ है ? या कुश्ती!"
बीरबल बोला आमना-सामना तो तकरीबन रोज ही होता है जहांपनाह! रही कुश्ती की बात, तो वह बादशाह सलामत के हाथ में है जब मर्जी हो जाएगी।
बीरबल की बात सुनकर बादशाह मुस्कराते हुए बोले तुम हमेशा सारी तोहमत हम पर थोप कर साफ बच निकलते हो, लेकिन आज नहीं निकल पाओगे।
शेर के शिकार के बारे में या तो आप बीती सुनाओ या फिर इनकार करो कि तुमने जिंदगी में कोई शेर नहीं मारा।"
बीरबल बोला "शेर तो मैंने कई मारे हैं, मगर आपको इस पर विश्वास नहीं आएगा और एक दफा तो ऐसा गजब का वाकया हुआ कि हो सकता है, आपको यह किस्सा-कहानी ही लगे।"
बादशाह अकबर ने चौंककर पूछा - "क्या मतलब ?"
हुए बादशाह बोलेबीरबल सिर झुका कर बोला - "हुजूर, वे दोनों शेर गुजरात के जंगलों में सेमल के किसी पेड़ से अब भी लटके होंगे।
मैं वहां एक अंधेरी रात में बादशाह सलामत के साथ भटक रहा था कि अचानक मैंने शेर की दहाड़ सुनी। बादशाह अपनी तलवार तम्बू में भूल आए थे और हम दोनों तंबू खोज नहीं पा रहे थे।
उधर दहाड़ थी कि बराबर पास आए जा रही थी।
तलवार सिर्फ मेरे पास थी।
एक बार सोचा 'कहीं झाड़ी-वाड़ी में छिप जाऊं।' फिर एक ख्याल आया कि शेर अंधेरे में इंसान की तरह अंधा नहीं बन जाता।
आखिर हम दोनों सेमल के एक पेड़ पर चढ़ गए।
बादशाह को मैंने ऊपर की शाख पर बैठा दिया।
नंगी तलवार ले, मैं नीचे की शाख पर जमकर बैठ गया। मुंह फाड़े, दुम ताने शेर आया। उसकी आंखें मशाल की तरह चमक रही थीं। वह पेड़ पर चढ़ने लगा।"
बादशाह बोले "या खुदा रहम कर।"
"मगर यह मौका रहम का नहीं था। मैंने तलवार घुमाई और टिमटिमाती आंखों से अंदाजे से कई भरपूर वार कर डाले। धम्म से कोई नीचे गिरा।
मैं घबरा गया। ऊपर देखा...यकीनन गिरने वाले बादशाह सलामत नहीं थे। फिर वहां शांति छा गई। सवेरे देखा, तो शेर, तीन टुकड़ों में धरती पर पड़ा था।"
बीरबल कुछ और कहता, इससे पहले ही बादशाह बोला उस मौके पर तुम्हारे पास भी तलवार नहीं होती, और पेड़ पर चढ़ने से पहले ही शेर मुझ पर हमला कर देता, तब तुम क्या करते ?"
बीरबल गमगीन शब्दों में बोला – “मैं क्या करता जहांपनाह? ऐसे मौके पर या तो खुदा ही कुछ करता या फिर वह नामुराद शेर।"
बीरबल की बात सुनकर सभी हंस पड़े। 'फुरसती दरबार' खत्म होने का नगाड़ा बज चुका था।
शिक्षा : शब्दों में हास्य का तालमेल कर देना हर किसी के बस की बात नहीं होती, लेकिन बीरबल में यह खूबी मौजूद थी, इसीलिए तो उसने इस कोरी गप को भी सच्चाई के रूप में प्रमाणित कर दिखाया।