माला को बह जाने दो



अकबर बीरबल कहानी - Akbar Birbal Kahani

एक बार बादशाह अकबर और बीरबल नाव में सवार होकर नदी की सैर को निकले।

वे आपस में मनोविनोदपूर्वक वार्ता भी कर रहे थे।

इसी बीच बादशाह को बीरबल से ठिठोली करने की सूझी।

उन्होंने अपने गले में पहनी फूलों की माला उतारकर नदी में फेंक दी और बीरबल से कहा 'माला दो।"

बीरबल ने भी समझ लिया कि बादशाह ने मजाक करने के लिए यह बात कही है।

वह उनकी द्विअर्थी बात समझकर बोले "बहन दो।"

बादशाह ये सुनकर नाखुश होकर बोले 'तुम मेरी बहन मांगते हो ?"

बीरबल ने विनम्र स्वर में कहा "जहांपनाह!

आपने मां लाने की बात कही, मगर मैं तो नहीं चिढ़ा।'

"मैंने मां नहीं, माला देने की बात कही थी।'

बादशाह अकबर ने बीरबल को शब्दजाल में फंसाना चाहा।

लेकिन बीरबल के सामने उनकी बात कहां चलने वाली थी ?

बीरबल ने कहा "मैंने भी कब बहन की बात कही...मैंने तो कहा बहन दो अर्थात् माला को बह जाने दो।

इसमें रुष्ट होने वाली बात कौन-सी है ?

बादशाह बीरबल की नोंक-झोंक पर मुस्कराकर रह गए।

शिक्षा : द्विअर्थी शब्द कभी-कभी व्यक्ति के लिए मुसीबत बन जाते हैं, इसलिए व्यक्ति को कभी ऐसा फूहड़ हास्य नहीं करना चाहिए, जिससे दूसरे को बुरा लगे।