हाजिर जवाब बीरबल



अकबर बीरबल कहानी - Akbar Birbal Kahani

बादशाह अकबर का दरबार चल रहा था।

बीरबल के साथ बादशाह

अकबर का हास-परिहास चल रहा था।

एकाएक बादशाह ने तय किया कि बीरबल के जूते चोरी करवा देते हैं।

दरबार बरखास्त हुआ तो सबने अपने-अपने जूते-जूतियां पहन लिए, मगर बीरबल अपने जूते ढूंढते रह गए।

बादशाह ने परेशान बीरबल को देखा तो उसकी परेशानी का करण पूछा।

बीरबल की तालीम करते हुए नौकर ने जूते लाकर बीरबल को पहना दिए।

बीरबल समझ गए कि सारी शरारत बादशाह की है, साथ ही वे बादशाह की चुटकी को भी भांप गए थे।

जूते पहन कर बीरबल ने कहा 'बादशाह सलामत, सुना है इस दुनिया में नेकी करने वालों को जन्नत में सत्तर गुना फल मिलता है, खुदा इन दो जूतों के बदले आपको जन्नत में एक सौ चालीस जूते दे।"

बीरबल की इस द्विअर्थी बात को सुनकर बादशाह अकबर शर्मिंदा तो हुए, मगर खुश भी बहुत हुए।

शिक्षा : कभी-कभी फूहड़ हास्य, व्यक्ति की परेशानी का कारण बन जाता है और उसे शर्मिंदगी उठानी पड़ती है। आप इस कुप्रवृत्ति से बचें।