रमजान का महीना

अकबर बीरबल कहानी - Akbar Birbal Kahani

जेठ-बैशाख का तपता हुआ महीना था।

रमजान के दिन चल रहे थे।

एक दिन रोजा (व्रत) रखना अकबर बादशाह और मुल्ला दो-प्याजा जैसे लोगों को काफी भारी पड़ा करता था, पर धर्म-रीति को निभाना भी जरूरी था।

ऐसे ही एक दिन बादशाह शाम को मुला दो-प्याजा के साथ घूमते हुए बीरबल के घर जा पहुंचे।

बादशाह जानते थे कि बीरबल के साथ कुछ देर मन बहल जाएगा तथा मुल्ला दो-प्याजा के साथ बीरबल की नोंक-झोंक का भी मजा आ जाएगा।

जिस वक्त शाही सवारी बीरबल के घर के सामने पहुंची, उस समय लू के थपेड़े चल रहे थे बीरबल मकान के तहखाने में अंधेरी और ठंड़ी कोठरी में आराम कर रहे थे।

बादशाह ने वहां पहुंचकर पूछा "आप सात पर्यों के पीछे क्यों छिपे बैठे थे ?"

मुल्ला दो-प्याजा ने तुरंत चोट की - “जिल्ले सुबहानी आपको तो मालूम ही है कि इस्लाम धर्म के अनुसार रमजान के महीने में शैतान कैद कर दिया जाता है।"

मुल्ला दो-प्याजा ने बीरबल को शैतान बता दिया था।

बादशाह के होंठों पर मुस्कान खिलने लगी।

मगर बीरबल भी भला कब चूकने वाले थे।

उन्होंने कहा अच्छा, शायद इसीलिए मुल्ला साहब को बादशाह सलामत पकड़कर यहां लाए हैं।"

यह सुनकर बादशाह का हंसते-हंसते बुरा हाल हो गया।

जैसा कि मशहूर है मुल्ला दो-प्याजा और बीरबल में नोंक-झोंक चलती रहती थी।

मुल्ला दो-प्याजा की काफी उम्र हो चुकी थी। मगर अभी तक वे अविवाहित थे।

एक दिन बादशाह अकबर ने मुल्ला जी से पूछा आप शादी क्यों नहीं करते ?"

मुल्ला दो-प्याजा ने कहा "मैं किसी विधवा से शादी करना चाहता हूं जिससे विवाह भी हो जाए और पुण्य भी हो जाए।"

बीरबल ने तुरंत कहा "अमां! आप विवाह तो करें। कुछ दिनों बाद खुद ही विधवा हो जाएगी।"

शिक्षा : शिष्ट हास्य से मनोरंजन होता ही है, स्वास्थ्य भी अच्छा बना रहता है। कहा भी गया है कि हास-परिहास स्वयं में एक कसरत है।