लंदन की प्रेम-कथा

खुशवंत सिंह की कहानियां - Khushwant Singh Short Stories

मे आय हैव योर एटेन्शन, प्लीज़ (कृपया ध्यान दें)।

हम पन्द्रह मिनट

में लंदन हवाई अड्डे पर उत्तर रहे हैं।

मेहरबानी करके अपनी सीट-बैल्ट बाँध लीजिये और धूम्रपान मत कीजिए, धन्यवाद!

दरवाज़े के ऊपर लगी पट्टी पर लाल अक्षर, चमकने लगे : 'सीट-बैल्ट बाँध लीजिए, धूम्रपान मत कीजिए ।

कामिनी ने खिड़की से बाहर देखा।

वे सफ़ेद रुई की तरह चारों ओर फैले बादलों के बीच उड़ रहे थे।

उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि कुछ ही मिनटों में वह इंग्लैंड पहुँच जायेगी ।

वह इंग्लैंड जिसके बारे में उसने लंदन की किताबों में पढ़ा था, अपने परिचितों से सुना था और जिसके बहुत से चित्र भी देखे थे, परन्तु प्रेम-कथा यह कभी नहीं सोचा था कि वह खुद एक दिन वहाँ जा पहुँचेगी।

उसे लगा कि चमत्कारों का युग अभी खत्म नहीं हुआ है।

महीने भर तक अपनी छात्रवृत्ति के फ़ैसले का बेसब्री से इन्तज़ार करके, फिर पासपोर्ट, वीज़ा और फॉरेन एक्सचेंज, इनकम टैक्स वगैरह की मुश्किलों से गुज़रकर तथा स्वास्थ्य संबंधी सर्टिफिकेट प्राप्त करके अब वह वास्तव में लंदन की भूमि पर पैर रखने जा रही थी।

“आपकी सीट-बैल्ट, मैडम,” एयर हॉस्टेस ने धीरे से कहा।

अरे, हाँ, सॉरी,' कामिनी बुदबुदायी और बैल्ट कमर से बाँध ली।

वह सोच रही थी कि यहाँ पता नहीं कैसी बीतेगी।

उसने जो कुछ पढ़ा और सुना था, उसके अनुसार इंग्लैंड सुन्दर देश था।

परन्तु यहाँ के लोगों के बारे में उसे सन्देह था।

इनके कारण उसके परिवार ने बहुत कुछ झेला था। सत्याग्रह के ज़माने में उसके पिता तथा भाइयों को जेलों में रहना पड़ा था और वहाँ उन्हें मारा-पीटा भी गया था ।

उसे ख़ुद, जब वह यूनिवर्सिटी के पहले साल में ही थी, सात दिन के लिए जेल की हवा खानी पड़ी थी।

वह कभी किसी अंग्रेज़ से नहीं मिली थी, सिवाय उस मजिस्ट्रेट के, जिसने उसे सज़ा दी थी, रॉबर्ट स्मिथ नाम था उसका-परन्तु क्या इसे मुलाकात कहा भी जा सकता था ?

बह एक अद्भुत घटना थी।

सन्‌ 1942 के “भारत छोड़ो” आन्दोलन का ज़माना था।

कॉलेज की कुछ लड़कियों ने मिलकर सड़कों पर जुलूस निकाला था, देशभक्ति के गाने गाये थे और जब कभी कोई अंग्रेज़ दिखाई देता, 'भारत छोड़ो” के नारे लगाते ।

पुलिस ने उन्हें गिरफ़्तार कर लिया। उसके अलावा सब लड़कियों ने माफ़ी माँग ली और उन्हें चेतावनी देकर छोड़ दिया गया।

लेकिन उसे थाने में बन्द कर दिया और शाम को रॉबर्ट स्मिथ, आई.सी.एस., डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रे, के सामने पेश किया गया।

कामिनी को वह दृश्य अच्छी तरह याद है।

बरसातों के दिन थे।

कचहरी के कमरे में पसीने, कागज़ और स्याही की मिली-जुली बदबू बसी हुई थी।

चारों तरफ़ अँधेरा था, लेकिन मजिस्ट्रेट और क्लर्क की दो मेज़ों पर ऊपर लटके बल्बों से रोशनी के गोले दिखाई दे रहे थे; क्लर्क अपने सामने बिखरी, पीले रंग के कागज़ की फाइलों में उलझा हुआ था।

मजिस्ट्रेट युवा था और उसके बाल हलकी लाली लिये हुए थे। वह आधी बाँहों की सफ़ेद कमीज़ पहने था, जिस पर बीच तक ढीली की हुई टाई लटक रही थी।

वह कोई किताब पढ़ने में लीन था और पेश किये जा रहे लोगों की तरफ़ देखता भी नहीं था।

क्लर्क ने कामिनी का नाम बोला, उसके पिता का नाम बताया और उसने क्या अपराध किया है, यह भी बताया।

फिर क्लर्क ने ही प्रश्न किया, “अपराधी हैं या नहीं ?

“नहीं !

मजिस्ट्रेट ने सिर उठाये बिना ही अंग्रेज़ी में कहा, 'इनसे उम्र पूछिये

कामिनी ने अनुवाद की प्रतीक्षा किये बिना अंग्रेज़ी में ही जवाब दिया, 'सत्रह । इनसे कहिये कि इंग्लैंड वापस जायें और अपना काम-धाम करें !

अब मजिस्ट्रेट ने सिर उठाया और सामने देखा। उसकी भूरी आँखें, जिससे उसने कामिनी के काले बालों से चारों तरफ़ से ढके चेहरे पर नज़र दौड़ाई जो उसकी नफ़रत से सुलगती आँखों पर आकर टिक गई।

“अजब संयोग है,' वह बुदबुदाया।

'कैसा संयोग है ? नाम कया बताया ? उसने क्लर्क से फिर पूछा और नज़र सामने ही टिकाये रखी।

'कामिनी...कामिनी गर्वे

'मिस गर्वे, क्या आपको स्कूल में कविता भी पढ़ाते हैं ?'

'हाँ...नहीं, कामिनी हकलाकर बोली। 'लेकिन उसका इस मुक़दमे से क्‍या सम्बन्ध है ?” उसने तेज़ पड़ते हुए कहा। 'क्या आपको कचहरी में कहानी पढ़ने की तनख्वाह दी जाती है ?

'कहानी नहीं, यंग लेडी, कविता। मैं आपको भी यह किताब जेल में पढ़ने के लिए दूँगा। सात दिन की सज़ा, “ए” क्लास और अगर आपका व्यवहार यही - रहा, तो सात दिन और अदालत की अवमानना करने के लिये ।

दूसरे दिन कामिनी को जेल में हिलेयर बेलॉक के काव्य-संकलन की जिल्द बन्द प्रति प्राप्त हुई, जिस पर लिखा था, "जेल में पढ़ने के लिए, शुभकामनाओं सहित-जिसने आप को जेल भेजा, उसके द्वारा किताब के एक पेज पर पर्ची लगी थी, जहाँ दो लाइनों के नीचे लाल रेखा खिंची थी-उसके बगल में छपा था-'के. जी कविता की पंक्तियाँ थीं-

Her face was like a king's command,

When all the swords are drawn.

(उसका चेहरा सम्राट के आदेश की तरह था- जब तलवारें सभी हाथों में खिंची हों ।)

कामिनी ने फ़ैसला किया कि बाहर आने पर अखबारों को यह घटना बतायेगी कि अदालत में स्मिथ का उसके प्रति व्यवहार कैसा रहा। लेकिन सात दिन बीतने से पहले ही उसका विचार बदलने लगा। जब वह वापस घर आई तो उसे पता लगा कि स्मिथ ने इस्तीफा दे दिया था और इंग्लैंड वापस लौट गया था।

कामिनी को यह ठीक से समझ में नहीं आया था कि इन पंक्तियों का अर्थ क्या है। बस यह कि यह किसी रूप में उसके सौंदर्य की प्रशंसा थी और यह पहली दफ़ा था कि किसी ने उसके बारे में कुछ कहा था। इसके बाद जब भी वह शीशे में अपना मुँह देखती, ये शब्द उसे याद आ जाते और उसे स्मिथ का अपनी तरफ़ घूरकर देखना एक विशेष सिहरन पैदा कर देता, उसे अपना उभरता नारीत्व परेशान करने लगता इस घटना से अंग्रेज़ों के प्रति उसके मनोभाव में कोई परिवर्तन तो नहीं आया था, सिवाय, इसके कि उन्हें जितना संकोची समझा जाता है, उतने वे हैं नहीं।

हवाई जहाज़ के झटकों से कामिनी का दिवा स्वप्न भंग हुआ । विमान, बादलों से नीचे उतर आया था और लाल छत वाले घरों, सड़कों और चौराहों तथा चमकते जुगनुओं की तरह रेंग रही गाड़ियों के ऊपर से उड़ रहा था। कुछ मिनट बाद वह ज़मीन से आ लगा और कस्टम के कमरों की तरफ़ बढ़ने लगा।

होटल पहुँचकर कामिनी काफ़ी देर तक खिड़की से लगी, इंग्लैंड का अपना पहला नज़ारा देखती रही। शरद ऋतु की हल्की गरम शाम थी और सामने के पार्क में लोग घूम-फिर रहे थे।

घास उससे ज़्यादा हही और ताज़ी थी, जितनी उसने आज तक देखी थीं और किनारों पर ग्लैडियोली के फूलों की कतार झिलमिला रही थी। पार्क के प्रवेश द्वार पर एक बूढ़ा भिखारी हाथ में सितार-जैसा बाजा लिये एक पुरानी घुन बजा रहा था। वातावरण शान्त और मैत्रीपूर्ण था। कामिनी ने खुद निकलकर घूमने का फ़ैसला किया।

कामिनी सोचती थी कि लोग उसकी साड़ी के कारण उसे घूर कर देखेंगे, लेकिन किसी ने कोई ध्यान नहीं दिया। उसने बच्चों को तालाब में नावें तैराते, स्त्रियों को कबूतरों को दाना चुगाते और लड़कों को दर्शकों के इर्द-गिर्द घर-घर्र करते खिलौने विमान दौड़ाते देखा ।

लड़के-लड़कियाँ इधर-उधर आराम से लेटे दुनिया की चिन्ता से मुक्त गपशप कर रहे थे। कई जगह लोग छोटी-छोटी भीड़ों के सामने खड़े भाषण कर रहे थे और सवालों के जवाब दे रहे थे।

जब वह होटल वापस लौटने लगी तो उसे अचानक एक अकेलेपन ने आ घेरा।

उसे एहसास हुआ कि आज उसकी ज़िन्दगी का शायद यह पहला दिन था जब किसी ने उससे कोई बात नहीं की थी।

उसके अलावा हर कोई किसी-न-किसी से बात कर रहा था। वह खुद अपने से पूछने लगी कि ऐसे मित्रहीन देश में क्यों आ गई है ?

आने वाले दिनों में भी उसे अपने इस प्रश्न का कोई उत्तर नहीं मिला।

बहुत जल्द उसकी ज़िन्दगी एक क्रम में बँध गई जिसमें एक-डेढ़ पैंस के टिकट पर बस-यात्रा करके अंडरग्राउंड स्टेशन पहुँचना, वहाँ से ठसाठस भरी ट्यूब ट्रेन में लटकन पकड़कर आधा घंटा सफ़र करके लेक्चर सुनना, कैफ़ेटेरिया में लंच लेना, फिर और लेक्चर सुनना और फिर एक बार लटकनें थामकर ट्यूब ट्रेन और बस से घर वापस आना-अगर होटल को घर कहा जा सके तो, जहाँ साधारण दुआ-सलाम के अलावा

कोई और बात नहीं की जाती, ज़रूरी बातें भी धीरे-धीरे और फुसफुसाकर की जाती हैं और जहाँ मरघट का सन्नाटा चारों ओर पसरा होता है, जिसे अखबारों की खड़क ही कभी-कभी भंग करती है।

भारत छोड़ने के समय से कामिनी के मन में यह उम्मीद थी कि हो सकता है कभी स्मिथ से कहीं वह टकरा जाये। हालाँकि वह जानती थी कि यह मूर्खता की बात है।

क्योंकि वह अफ्रीका या अमेरिका, कहीं भी रह सकता था।

अगर वह इंग्लैंड में भी होता, तो अस्सी लाख की आबादी वाले लंदन शहर में, जहाँ बड़ी-बड़ी भीड़ें हर जगह से गुज़रती रहती हैं, उससे मिलने की संभावना बहुत सही नहीं धी।

अगर वह मिल भी जाता, तो क्‍या वह उसे पहचान लेता ? वह उससे क्‍या कहती ? या वही क्‍या कहता ?

उसने टेलीफ़ोन की डायरेक्टरी में उसका नाम देखा, लेकिन स्मिथ नाम के लोगों से पन्‍ने-पर-पन्‍्ने भरे हुए थे। “आर” अक्षर लगे स्मिथ भी ढेर सारे थे।

अगर वह सही नाम पाकर फ़ोन करती, तो क्या बताती, कि उसने फ़ोन क्‍यों किया है।

लेकिन यह विचार जैसे उसके मन में जमकर बैठ गया। उसे विश्वास था कि यदि वह इच्छा करेगी तो किसी-न-किसी तरह, कहीं-न-कहीं वह उसे मिल ही जायेगा।

उसने कहीं पढ़ा था कि जो लोग एक ही वस्तु के प्रति आकृष्ट होते हैं, वे अक्सर मिल जाते हैं। उसने अपने दिमाग़ में इस भेंट की रूपरेखा भी खींच ली थी। वह अपना हैट हाथ में लेकर कहेगा, 'मिस गर्वे, क्या आप मुझे पहचान रही हैं ?

'मेरा खयाल है, आप मिस्टर स्मिथ हैं? अरे हाँ, एक दफ़ा मिले ज़रूर थे-हालाँकि वह मुलाक़ात सही नहीं धी। खैर, कैसे हैं आप, मिस्टर स्मिथ” और इस तरह बात आगे बढ़ती।

पॉलिटेक्निक का कोर्स खत्म होने को आया और न कामिनी की इच्छा शक्ति ने और न संयोग ने दोनों को मिलने का अवसर दिया।

एक दिन हमेशा की तरह उसने ट्यूब स्टेशन के लिए बस पकड़ी।

जब वह दूसरे सिरे पर अंडरग्राउंड से बाहर निकली और दूसरी बस पकड़ने के लिए आगे बढ़ी, तो उसने देखा कि चारों तरफ़ बड़ी भीड़ है और यातायात रोक दिया गया है।

थोड़ी दूर से उसे बैग पाइपों और बड़े-बड़े ड्रमों की सैनिक धुन सुनाई देने लगी।

हाथ में लिया अखबार खोलकर देखा, तो पता चला कि किसी अतिथि के साथ महारानी वहाँ से गुज़रने वाली हैं। वह भी लेक्चर छोड़कर भीड़ में शामिल हो गई।

बाजे बजाते सैनिक उसके सामने से गुज़रने लगे।

उनके पीछे गार्डों के दल बहुत धीरे-धीरे शाही शान से आगे बढ़ते नज़र आये।

विभिन्‍न वेशभूषाओं में चमकते-दमकते कोट पहने और हाथों में रायफिलें लिए और भाले आसमान में उठाये, सैनिकों की कतारों ने जैसे एक नया समाँ बाँध दिया गार्ड उसी के सामने आकर रुक गये और सड़क के दोनों ओर लाइन लगाकर खड़े हो गये ।

इनके पीछे महारानी का सोने का रथ सामने आया जिसे एक दर्जन काले रंग के घोड़े खींच रहे थे।

महारानी अपने शाही अतिथि के साथ भीड़ की तरफ़ हाथ हिलाते आगे बढ़ गईं।

जुलूस समाप्त होते ही लोग इधर-उधर भागने लगे ।

लेकिन कामिनी मन्त्रमुग्ध की तरह अपनी जगह पर खड़ी रही। दफ़्तर जा रहे लोग उसे धक्का देते आगे बढ़े जा रहे थे।

सिर्फ़ कामिनी के पीछे खड़ी औरत वहाँ से नहीं हिली; वह आँखों पर हाथ लगाये सुबक-सुबककर रो रही थी।

कामिनी ने मुड़कर उसकी ओर नज़र डाली तो देखा कि वह अपने हैंड बैग से रूमाल निकालकर आँखें पोंछ रही है। कामिनी को देखकर वह झिझकी और बोली, 'जब इस तरह सैनिक और जुलूस निकलते हैं, तब मैं बरदाश्त नहीं कर पाती, एकदम भावुक हो उठती हूँ।' “आप ठीक कहती हैं।

मैं भी द्रवित हो उठती हूँ। इस तरह के सैनिक कितने अच्छे लगते हैं ?

“आपका यह कहना आश्चर्यजनक है! मेरा मित्र कहता था कि सुन्दर स्त्री तलवार उठाये हज़ारों सैनिकों की तरह लगती है। दरअसल वह यह बात अक्सर कहता था। वह इंडिया में रहा था और उसे चाहता भी था ।'

कामिनी को लगा, जैसे उसके पैर अपनी जगह पर जकड़ गये हैं। वह औरत फिर रूमाल से आँसू पोंछ रही थी।

“आपके मित्र अब कहाँ हैं ? वह जानती थी कि इस तरह किसी अजनबी से यह सवाल पूछना सही नहीं है, लेकिन वह अपने को रोक नहीं सकी।

औरत ने आँसुओं से भरा चेहरा उठाकर कहा, वह युद्ध में मारा गया।'