काली चमेली

खुशवंत सिंह की संपूर्ण कहानियाँ - Khushwant Singh Short Stories

मैं मार्था बोल रही हूँ-मार्था स्टैक ।

मेरी कुछ याद है ?

तीस साल पहले हम पेरिस में एक साथ थे।

' आवाज़ मक्खनी सी थी-बेशक किसी अमेरिकी नीगरो की।

भार्था! बनर्जी ने टेलीफ़ोन में चिल्लाकर कहा “अरे हाँ, तुम्हें कैसे भूल सकता हूँ।

तुम यहाँ दिल्ली में क्या कर रही हो ? पहले से खबर क्‍यों नहीं दी कि आ रही हो ?

'पता ही नहीं था आखिरी वक्‍त तक-जब प्लेन न्‍यूयॉर्क से रवाना हुआ।

अब मैं यहाँ अशोका में हूँ।

बस, तुम से मिलने के लिए "एक मिनट, यह कहकर उसने रिसीवर . पर हथेली रखी, पत्नी से कुछ बात की और फिर बोला, 'डिनर के लिए आ जाओ और फैमिली से मिलो ।

'ज़रूर, ज़रूर। तो तुम्हारी फ़ैमिली भी हो गई ?'

“बीवी और बड़े बच्चे।

लड़का, बीस का; लड़की, पन्द्रह की।

अरे, कितना वक्‍त गुज़र गया। तीस साल।

और तुम्हारी ?” “अब कोई फैमिली नहीं ।

दो पति हुए और गये। अब सिर्फ़ मैं ही हूँ यह कहकर वह हँसी।

“अब ज़्यादा आराम है "मैं सात बजे आ रहा हूँ।

उम्मीद है कि पहचान लोगी। बाल सफ़ेद हो रहे हैं, मोटा भी हो गया हूँ।'

“तो क्या हुआ ? सभी बूढ़े और मोटे होते हैं! वह बोली, “ठीक है, मैं सात बजे तैयार रहूँगी। नमस्ते!” यह शब्द नहीं भूली।

बनर्जी ने रिसीवर रख दिया ।

कुछ सोचने-सा लगा।

पत्नी ने उसे झटका दिया, 'पुरानी गर्ल फ्रेन्ड है ?

” उसने मुस्कुराकर पूछा।

गर्ल फ्रेन्ड तो नहीं, हाँ, तीस साल पहले सॉरबोन में साथ थे ।'

'पहले तो कभी बताया नहीं यह वो एलबम वाली तो नहीं है ? बड़ी चहक रही होगी ।'

देखने में बुरी तो नहीं थी, नीगरों थी। मोटे हॉठ, गुँथे हुए बाल, जैसे ये लोग होते हैं। क्लास में हम दोनों ही काले थे। इसलिए भी साथी बन गये ।

उसने महसूस किया कि उसकी आवाज़ में सच्चाई की खनक नहीं है। उसने पत्नी की आँखों से आँख मिलाकर देखना बन्द कर दिया। फिर बोला, उसे लाने जा रहा हूँ.” और अपने कमरे में घुस गया।

अजीब बात है, वह सोचने लगा कि तीस साल पहले उसने मार्था से अपने सम्बन्ध को लेकर दोस्तों को प्रभावित करने की कोशिश की थी। उसके एलबम में मार्था का फोटो था ।

आकर्षक नीगरो युवती का सिर पर टेढ़ा लगा टोप, जिसके नीचे लिखा धा-प्यार, मार्था । इसे देखकर दोस्तों की उत्सुकता जागती और वे एलबम को उलटते-पुलटते प्रश्न करते, “कौन है, यह मार्था ?” “सवाल नहीं करोगे तो झूठ नहीं सुनना पड़ेगा !!

यह कहकर वह मुस्कुराता । और अब उसे नाटक करना पड़ रहा था कि यह सिर्फ़ परिचिता थी। शादी करने का यही नतीजा होता है, साधारण दोस्ती के लिए भी झूठ बोलना पड़ता है।

साधारण ? हाँ, करीब-करीब । उसका दिमाग़ छुट्टियों के दिनों में दिये जाने वाले फ्रांस का साहित्य” व्याख्यान-माला की तरफ़ मुड़ गया।

इस क्लास में तीस लड़के-लड़कियाँ थे। ज़्यादातर अमेरिकी और कुछ डच तथा स्केन्डिनेविया के । वह तथा मार्था ही कालों में थे।

मार्था ने पहले दिन से ही लोगों का ध्यान आकृष्ट करना शुरू कर दिया। वह दूसरों से अलग बैठती थी। वह बाकी सब लड़कों से लम्बी थी और बहुत खूबसूरत भी थी।

दूसरे दिन कुछ लड़कों ने उसे अपना परिचय दिया और उसके पास बैठे। तीसरे दिन वह बनर्जी के पास आई और बोली, “आपको एतराज़ न हो तो मैं आपके पास बैठना चाहूँगी।

मैं मार्था हूँ, अमेरिकी / यह कहकर उसने अपना हाथ आगे बढ़ाया। उसने उठते हुए कहा, 'मैं बनर्जी हूँ। इंडिया से इसके बाद वे क्लास में एक साथ बैठने लगे।

बनर्जी ज़्यादातर जल्दी आता था।

वह अपने बगल की सीट पर अपनी किताब रख देता, जिसका मतलब था, यह जगह खाली नहीं है। वह मार्था का इन्तज़ार करता।

आ रहे छात्रों की भीड़ में उसका सिर अलग दिखाई पड़ जाता था। वह धीरे-धीरे चलती और उसकी कमर लय में घूमती रहती थी । फिर वह बनर्जी के बगल में धीरे से बैठ जाती थी ।

उसके शरीर से चमेली की खुशबू निकलती थी।

उसके माता-पिता ने उसका नाम “यास्मीन! क्यों नहीं रखा ?

मार्था नाम से यह ज़्यादा उपयुक्त होता।

क्लास शुरू हो जाती तो बनर्जी की नज़र उसकी ओर मुड़ती-उसकी चौड़ी मजबूत कलाई जिसमें वह सोने के सिक्कों से सजा चूड़ा पहने होती, जो जब वह लिखती, बजने लगते थे; काली, भूरी बाँहें और फिर छातियाँ-उसके दुबले शरीर के लिए बड़ी लेकिन कच्चे आम की तरह कसी हुई।

जब वह बाहर जाती, बनर्जी उसके छरहरे शरीर और हिलते पुट्टों को देखता।

बनर्जी की इनमें रुचि तब तक शुरू रही जब तक लड़कों ने उसे छेड़ना नहीं शुरू कर दिया।

“बड़ा भाग्य है तुम्हारा। उसे सिर्फ़ तुम्हीं नज़र आते हो ।' लेकिन बनर्जी उससे छेड़छाड़ नहीं कर सकता था। उसके लिए वह ज़रूरत से ज़्यादा लम्बी थी।

उसके कपड़े भी बहुत चटख होते थे। अगर वह उसके साथ निकलता तो लोग ज़रूर टीका-टिप्पणी करते। इसके अलावा यह भी सही नहीं लगता था कि यूरोप आया और अपने से ज़्यादा काली लड़की से दोस्ती की।

मार्था ने ही पहल की । एक दिन जब दोनों एक साथ क्लास से बाहर निकल रहे थे, उसने उससे साधारण ढंग से कहा, "मेरे साथ कॉफ़ी पीने चलोगे ?” और कॉफ़ी खत्म होने के बाद जब बिल चुकाने का समय आया, और बनर्जी ने अपनी जेब में हाथ डाला, तो उसने उसकी कलाई कसकर पकड़ ली और बोली, “नहीं, मैंने निमन्त्रित किया है, इसलिए पेमेंट मैं करूँगी।

तुम ले चलो तो तुम करना । और जब तक वेटर पैसा ले नहीं गया तब तक उसका हाथ पकड़े रही।

बनर्जी को उसे कॉफ़ी के लिए निमन्त्रित करना ज़रूरी हो गया। इसके बाद तो दोनों रोज़ कॉफ़ी पीने जाने लगे।

मार्था हर दूसरे दिन पेमेंट करने की ज़िद करती थी। लेकिन तब भी बनर्जी जेब में अपना हाथ डालता और मार्था उसे पकड़कर कहती, “नहीं, आज मेरी बारी है।'

इसके बाद मार्था ने दूसरा कदम उठाया। कहा, “ईश्वर के लिए मुझे मिस स्टैक कहना बन्द करो। मार्था कह कर पुकारो। तुम्हारा नाम क्‍या है ? 'मेरा नाम हीरेन है लेकिन घरवाले गुल्लू कहते हैं! मार्था ने उसका हाथ दबाकर कहा, "तो मैं भी तुम्हें गुल्लू ही कहूँगी ।

बनर्जी ने कहा कि उसने उसे एक हिन्दुस्तानी नाम दिया है। मार्था ने फिर उसका हाथ दबाकर कहा, “यह तो बहुत अच्छा है।

मुझे यास्मीन नाम पसन्द है। और दुनिया में तुम ही अकेले मुझे इस नाम से पुकारोगे।

यह कहकर वह उसके पास आ गई; उसे उसकी साँस अपने माथे पर महसूस हुई, जिसमें उसे वह विशेष

खुशबू प्राप्त हुई जिसे उसके दोस्त नीगरो लोगों की खुशबू कहते थे।

यह उसे अच्छी महसूस हुई, गर्म और सेक्सी । गोरी स्त्रियों की खट्टे दूध की बू से कहीं अच्छी ।

बनर्जी अब घंटों यह सोचने में बिताने लगा कि उसे किस तरह प्यार करूँगा। लेकिन जब कभी वह उसे कोई मौक़ा देती, वह पीछे हट जाता। कोर्स खत्म होने में सिर्फ़ दस दिन बाक़ी रह गये।

मार्था ने फिर मौक़ा दिया, 'पह आखिरी हफ्ता है! यह कहकर उसने 'आह' भरी। 'हाँ, आखिरी दिन हैं,' बनर्जी ने लापरवाही से कहा, 'वक्त कितनी जल्दी भागता है लेकिन मार्था कुछ कर गुज़रना चाहती थी। 'कहीं घूमने चलते हैं। इसके बाद तो मिलना नहीं होगा । फिर वह बोली, “कहीं खुले में चलें। जैसे सेन नदी के किनारे जहाँ धूप खा सकें।'

अगस्त का गर्म दिन था। पेरिस से उन्होंने सवेरे की एक ट्रेन पकड़ी। यह क़रीब-क़रीब खाली थी। ये एक खाली डिब्बे में एक-दूसरे के सामने बैठे। मार्था अपने साथ कई अमेरिकी पत्रिकाएँ लाई थी। बनर्जी उनमें डूब गया और मार्था की निरन्तर चल रही कहानियों में, कि उसके क्लास कैसे रहते हैं, साथियों ने कैसे उसकी तरफ़ लाइन मारने की कोशिश की, उसके घर पर क्या होता है, बिलकुल ध्यान नहीं दिया। दोनों एक-दूसरे के नज़दीक आये बिना अपने गन्तव्य तक पहुँच गये। सेन के किनारे नहाने वालों की भीड़ थी।

मार्था यहाँ सबके आकर्षण का केन्द्र बन गई। स्विम सूट में उसके शरीर की रेखाएँ बहुत साफ़ नज़र आती थीं। लगता था चाबुक की डोरियों से उसके अंग बने हैं। उसमें ग्रीक देवी आर्टेमिस की तराश और छरहरापन था। कुछ लड़कों ने उसकी तरफ़ रबड़ की बॉल फेंकी । उसने इसे निशाना साधकर वापस इस तरह फेंका कि वह उनके सिरों को छूती हुई कई फीट दूर जा गिरी। मार्था देर तक तैरी, सकी पर फिसली और रेत पर लेटकर सूरज की किरणों से अपना बदन सेंका। बनर्जी कैनवास की कुर्सी पर बैठा अमेरिकी पत्रिकाएँ उलटता-पलटता रहा।

पेरिस वापस आने वाली ट्रेन छुट्टी मनाने वालों से भरी थी। इन्हें एक-दूसरे के बगल में बैठने की जगह मिल गई । उनके बाद लोग इधर-उधर खड़े होने लगे। डिब्बे में हँसी के फव्वारे छूट रहे थे और सिगरेट का धुआँ चारों ओर भरा था। मार्था का हाथ बनर्जी के घुटनों से जा लगा और उसने बनर्जी की उँगलियों में अपनी उँगलियाँ डाल दीं।

लोग रास्ते में पड़ने वाले स्टेशनों पर उतरते गये। गार द' ऑर्लियान्स से एक स्टेशन पहले दोनों एक-दूसरे का हाथ पकड़े अकेले रह गये। बनर्जी बाहर से निकलते छोटे-छोटे मकानों और पेड़ों को देखने में व्यस्त था।

आर ने अपना हाथ उसके हाथ से निकाला और गले में डालकर उसके कान चूम लिय। बनर्जी ने मैगजीन नीचे रखी और उसकी तरफ़ मुँह किया।

उसने बनर्जी को बाहों में भर लिया और अपने मोटे ओंठ उसके मुँह पर जमा दिये। फिर उसे आँखों, गालों और कानों पर कस-कसकर चूमने लगी। फिर उसने उसके गले पर दाँत जमाकर उसे काटा और लिपस्टिक के निशान छोड़ दिये। बनर्जी ने अपने को जैसे उसे समर्पित कर दिया।

उसे मार्था की गर्म साँस और लिपस्टिक की खुशबू और नीगरो शरीर की गहरी सेक्सी गंध अपने शरीर पर चारों ओर महसूस होने लगी। ट्रेन धीमी हुई तो मार्था ने उसे छोड़ दिया। फिर अपने पर्स से कागज़ के रूमाल (टिशू) निकाले और उन्हें बनर्जी को देकर कहा, “बनर्जी डियर, इनसे चेहरा साफ़ कर लो। मैंने बिलकुल रंग दिया है।

” वह अपना मुँह पोंछने लगा और मार्था ने रूज़ लगाकर फिर अपना मेकअप ठीक कर लिया।

ट्रेन गार द” ऑर्लियान्स में आकर रुकी । उन्होंने छात्रों के कैफे में नाश्ता किया। मार्था ने अपनी बाँहें फैलाई और अँगड़ाई ली।

'मैं थक गई हूँ। यह धूप स्नान (सनबाथ) और जो कुछ भी किया। अब घर चलते हैं। वहाँ मैं तुम्हारे लिए ड्रिंक तैयार करूँगी। जिससे तुम अपने घर जा सको ।

बनर्जी जान गया कि वह उसे किधर लिये जा रही है।

क्या वह उसकी इच्छा पूरी कर सकेगा ?

उसके छोटे से कमरे में एक खाट, एक आरामकुर्सी और एक मेज़ थी।

मेज़ पर चाँदी के फ्रेम में उसके परिवार का फोटो था : माता-पिता, दो भाई और दो बहनें-सब लम्बे-चौड़े, हड्डियों वाले और पूरे नीगरो । फ़र्श पर अमेरिकी पत्रिकाएँ बिखरी पड़ी थीं।

बिस्तर पर कपड़े लदे थे।

मार्था ने दो सिन्‍ज़ानो ढाले और एक बनर्जी को दिया।

'गुल्लू, यह हमारी सेहत के लिए,” यह कहकर उसने अपना गिलास उठाया और उसे होंठों पर चूमा।

“यह हमारे लिए, बनर्जी ने जवाब दिया और उसे अपने को चूमने दिया। मार्था ने एक घूँट में सारा गिलास खाली कर दिया और अपने दोनों हाथ बनर्जी के कन्धों पर रख दिये। “गुल्लू, मैं तुम्हें बहुत मिस करूँगी,' यह कहकर वह उसकी आँखों में देखने लगी।

बनर्जी की आँखें उसकी छातियों पर जा टिकीं । 'क्या देख रहे हो ? यह कहकर उसने विरोध-सा दर्शाया लेकिन हाथ कन्धे पर ही रहने दिये।

बनर्जी ने पहली दफ़ा प्रशंसात्मक टिप्पणी की, 'जानती हो मार्था, तुम मुझे किसकी याद दिलाती हो ?

वीनस की-किसकी कृति है यह ? उस इटेलियन की-जिसमें वीनस समुद्र से उठ रही है।'

“बॉटिसेली की बर्थ ऑफ़ वीनस-वाह, यह पहली दफ़ा किसी ने मुझ से कहा है।

इस पर एक और पैग हो जाये!” उसने गिलास फिर भर दिये और उसे माथे पर चूमा।

फिर वह सिर के नीचे हाथ रखकर बिस्तर पर लेट गई। बनर्जी की नज़र उसके शरीर पर घूमने लगी।

“और अब यह मुझे घूर क्‍यों रहे हो ? लगता है, तुमने आज तक कोई औरत नहीं देखी ।'

बनर्जी गला साफ़ करके बोला, 'ऐसी तो नहीं ही देखी । दोनों चुप हो गये । मार्था ने गिलास खाली कर दिया। फिर बोली, “अगर मुझे न छूने का वादा करो, तो मैं तुम्हें अपना शरीर दिखाने को तैयार हूँ। मेरा शरीर अच्छा है।

'किया वादा ।

मार्था उठी और रोशनी बुझा दी । बनर्जी ने कपड़े उतारे जाने और इलास्टिक चटकने की आवाज़ें सुनीं। 'अब बत्ती जला दो ।

बनर्जी कुर्सी से उठा। उसकी आँखें सड़क की रोशनी में दिखाई दे रहे उसके बदन पर पड़ रही थीं। उसने दीवार पर टटोलकर स्विच दबाया। कमरे में रोशनी भर उठी। वह मार्था की काफ़ी बड़ी छातियाँ और एकदम काली चुसनियाँ देखकर चकित रह गया। फिर ज़ोर लगाकर उसने नीचे नज़र डाली-योनि पर बालों का गुच्छा और चौड़ी मॉसल जाँवें।

“कैसी लग रही हूँ ? यह कहकर उसने अपने हाथ सिर से ऊपर उठाये और नर्तकी की तरह अँगूठों के बल दूसरी तरफ़ घूमी। “अब बताओ ।

बनर्जी ने गले में भर आया थूक निगला और बोला, “बहुत सुन्दर । यह कहकर वह दीवार का सहारा लेकर खड़ा हो गया।

“अब मुझे चूमो ! यह कहकर मार्था ने अपने हाथ उसकी तरफ़ बढ़ाये । बनर्जी लड़खड़ाते हुए आगे बढ़ा और मार्था को आलिंगन में ले लिया। उसने वादा ले लिया था कि बनर्जी उसे छुएगा नहीं...लेकिन अब वह उसे पागलों की तरह ऊपर से नीचे तक चूमने लगा-पहले छातियाँ, फिर पेट, फिर नाभि। मार्था ने उसके बाल पकड़ लिये और उसका चेहरा अपने सामने लेकर कहा, “धीरज से काम लो उसके पैर बनर्जी के पैरों में जा फँसे और वह उसका मुँह बेतहाशा चूमने लगी। बनर्जी के शरीर में वासना का सैलाब उठा और निकल भी गया। उसका शरीर मार्था की बाँहों में ही ठीला पड़ गया। अब उसे मार्था की साँस और बदन की बू बुरी लगने लगी।

क्या हुआ, डियर ? मार्था ने पूछा और पीछे हटी। कं मस्त हो रहा हूँ। अब मुझे जाने दो “ठीक है, तो जाओ,' यह कहकर उसने अपना गाउन लपेटा और सिगरेट जला ली।

उसकी त्योरी चढ़ने लगी। के “हीं नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है, मार्था तुम चाहती नहीं...इसलिए यही ठीक है।'

चलो, यही सही वे चुपचाप बैठे रहे । बनर्जी ने उसका हाथ अपने हाथों में ले लिया।

उसमें जान नहीं थी। उसने सिगरेट झाड़ी और उठते हुए बोली, “थैंक यू! दिन अच्छा बीता ।

फिर उसे चूमा और जैसे धक्का देकर बाहर कर दिया।

वह निकला तो भीतर से ताला बन्द करने की आवाज़ आई। ' तीन दिन बाद वह उसे गार साँ लाज़ार की ट्रेन पर विदा कर आया।

तीस साल गुज़र गये थे।

कई साल तक कमरे के बीच नग्न खड़ी मार्था का चित्र उसे नशे की तरह परेशान करता रहा । हालाँकि वह उसकी उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा था और यह सोचकर उसे बहुत कष्ट भी होता था, वह अपनी पत्नी की आवश्यकताएँ पूरी करने में मार्था की स्मृति का ही उपयोग करता था । इसलिए ज़्यादातर वासना की निवृत्ति में उसके साथ मनोरमा बनर्जी न होकर मार्था स्टैक होती थी। अपने देश की गर्मी, दिन में आठ घंटे काम और छह दिन का हफ़्ता, ये सब उसकी सेहत को प्रभावित कर रहे थे और समय बीतने के बाद अब उसे मार्था का शरीर और उसकी नुकीली छातियों की कल्पना भी उत्तेजित करने में समर्थ नहीं होती थीं। वह याद करने लगा कि कितने समय पहले उसने अपनी पत्नी से सहवास किया है; साल नहीं तो कई महीने पहले और उसे कितनी कठिनाई हुई थी।

'चिन्ता मत करो, डियर, हम सब बूढ़े होते हैं. मार्था ने कहा था।

अशोका के लाउंज में उसे कोई नीगरो स्त्री नहीं दिखाई दी, तो उसने उसके कमरे में फ़ोन किया। “बस, एक सेकेंड में आ रही हूँ। अभी हम घूम-घामकर वापस सी कह मैंने सोचा कि डियर के लिए कपड़े बदल लूँ। ज़्यादा देर नहीं लगेगी,' वह बोली।

वह लिफ्ट को ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर जाते देखता रहा। उसमें

अमेरिकी टूरिस्ट आते, बाहर निकलते और यह क्रम जारी रहा। काफ़ी देर बाद एक दूसरी लिफ्ट में केवल एक यात्री आया-इसमें एक से ज़्यादा समा ही नहीं सकते थे। सारी जगह में मार्था भरी थी-छह फीट लम्बी और आज तक उसकी देखी सभी औरतों से कहीं ज़्यादा मोटी । वह हिलती-डुलती बाहर निकली और बनर्जी की तरफ़ बढ़ी। 'हनी, तुम मोटे हो गये हो,' यह कहकर उसने बनर्जी की छोटी-सी तोंद की तरफ़ इशारा किया। बनर्जी ने हाथ बढ़ाते हुए कहा, "मार्था, तुम वैसी ही हो, यह कहना मुश्किल है।'

मार्था ने अपनी विशाल कमर को हाथों से घेरते हुए कहा, (पुराने दोस्त से यह कहना सही नहीं लगता, है न यह बात? फिर वह ज़ोर से मर्दानी हँसी से फूट पड़ी। हाँ, मेरा वज़न थोड़ा सा बढ़ गया है, ठीक है न? घर लौटने तक कम . हो जायेगा? अच्छा, चाभी रख दूँ।'

वह चाभियों के काउंटर तक गई । उसका परिवर्तन देखकर बनर्जी हिल उठा था। उसके पुद्ठे हिलते हुए माँस के बड़े-बड़े लोथड़े थे, कमर छातियों के बराबर होकर उससे जा मिली थी। उसकी गर्दन भी, जो एकदम पतली थी, बहुत चौड़ी हो गई थी और खिलाड़ियों जैसी उसकी टाँगें सफ़ाई करनेवाली अंग्रेज़ औरतों की तरह मोटी पड़ गई थीं। वह विज्ञापन में पुडिंग का प्रचार करने वाली गोलगप्पा औरत लग रही थी।

मार्था ने बनर्जी की बाँह पकड़ी और दरी से ढकी सीढ़ियों से उतरना शुरू किया। बनर्जी देखता जा रहा था कि दर्शक उसे देख-देखकर मुस्कुरा रहे हैं और भद्दे मज़ाक कर रहे हैं। मार्था की आवाज़ भी उसके बदन की तरह बुलंद हो गई थी। उसने बनर्जी की छोटी-सी फ़िएट गाड़ी में अपने को धीरे-धीरे भरा और हँसकर बोली, 'महान अमेरिकी के लिए गाड़ी छोटी है ।

घर पर मार्था ने मनोरमा से अच्छा व्यवहार किया । उसकी खुली प्रशंसा, “अरे, तुम इतने बूढ़े शैतान, ऐसी खूबसूरत बीवी कहाँ से ले आये? पत्नी यह सुनकर खिल उठी। मार्था ने सबको तोहफ़े भेंट किये : बनर्जी की बेटी को लिपस्टिक, बेटे को बॉलपेन और पत्नी को श्रृंगारदान (मेकअप बॉक्स)। पत्नी ने उसके साथ बहुत अच्छा व्यवहार किया, अगर पति ने कभी उसे प्यार किया भी हो, तो उसे माफ़ किया जा सकता था। शाम हँसते-बातें करते गुज़र गई।

मार्था ने घड़ी पर नज़र डाली । 'सवेरे मुझे प्लेन पकड़ने के लिए जल्दी उठना है। अब चलना चाहिये। यहाँ टैक्सी मिलेगी ?'

'मेरे पति आपको होटल तक छोड़कर आयेंगे, पत्नी ने ज़िद की। "मैं तो

चाहती थी कि आप ठहरें । बनर्जी जानता था कि यदि मार्था सुन्दर होती तो पली कुछ और कहती, या तो खुद उनके साथ चल पड़ती या किसी बच्चे को साथ कर देती ।

मार्था ने पत्नी और बच्चों को चूमा और फ़िएट में अपने को घुसेड़ा । बोली, “बढ़िया फैमिली है। तुम्हारी बीवी सचमुच सुन्दर है।'

बनर्जी बोला, 'मुझसे ज़्यादा अच्छी तरह रहना जानती है। कुछ लोग ऐसे ही बने होते हैं।

होटल पहुँचकर उसने खुद मार्था का हाथ पकड़ा और उसे सीढ़ियों पर चढ़ाकर ले गया। मार्था ने फिर घड़ी देखी। “अगर फटाफट एक पेग लेना हो तो मैं बना देती हूँ। कल जहाज़ में नींद पूरी कर लूँगी।

“बीते दिनों की याद करते हैं,' यह कहकर बनर्जी लिफ्ट में आ गया । उसके परिवार ने मार्था को औरत के रूप में नकार दिया था, इसलिए उसने साथ देना सही समझा।

मार्था ने बाथरूम से दो गिलास उठाये और अलमारी से स्कॉच की बोतल निकाली । उसे रोशनी के सामने लाकर देखा । आधी भरी थी। “अब खत्म ही कर लेनी चाहिये। ज़रा सी वापस ले जाने का मतलब ही नहीं है। सोडा या पानी ?

'ज़रा-सा सोडा,' यह कहकर बनर्जी गिलास पकड़ने के लिए उठ खड़ा हुआ । फिर दोनों ने गिलास टकराये और बनर्जी ने उसे होंठों पर चूमा।

'मुझे उन दिनों की याद आ गई-सिवाय उसके बाद की घटना के। अब उसके लिए काफ़ी मोटी पड़ गई हूँ!” यह कहते हुए वह मुस्कुराती रही। उसके मसूढ़े लाल रबड़ की तरह चमकते रहे। “बैंक यू हनी, इससे मेरी यात्रा सफल हो गई। मैं तो सोचती थी कि तुम मुझे चूमोगे भी या नहीं ॥

उसने एक और पैग ढाला, आरामकरुर्सी पर लुढ़क गई और बनर्जी को सोफ़े पर बैठने का इशारा किया । 'बैठो यह बनर्जी को अपने से दूर रखने का तरीका था। बनर्जी ने देखा उसके गले में सोने की माला है जिसमें क्रॉस लगा है--शायद वह धर्म की ओर मुड़ गई थी, या उसकी तरह बूढ़ी और सेक्स से विरत होने लगी थी। बनर्जी स्कॉच पीता रहा, वह मार्था की आँखों में देखने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था। इसी के साथ वह ऐसा कुछ भी नहीं करना चाह रहा था जिससे उसे दुःख हो या चोट पहुँचे । उसने तीसरा पैग खुद उँड़ेला और मार्था की कुर्सी के हत्थे पर आकर बैठ गया । फिर अपना हाथ उसके माथे पर रखा। यह चिकना हो रहा था। फिर उसके बालों में उँगलियाँ फिराई वे एक-दूसरे में गुथे गुच्छे हो रहे थे।

फिर नीचे उसकी तरफ़ नज़र फेरी। उसने आँखें बन्द कर लीं थीं और जैसे सबसे बेखबर हो रही थी। बनर्जी ने उसका चेहरा अपनी तरफ़ मोड़ा और उसके होंठों पर अपने होंठ जमा दिये। वह उसी तरह बैठी रही, मुँह भी नहीं खोला। बनर्जी समझ गया कि अब उसका आत्मविश्वास एकदम खत्म हों गया है। वह कुर्सी पर खिसक आया और उसे कोमलता से चूमने लगा।

पेरिस में उसने मार्था को जैसे देखा था, वे दृश्य फिर उसकी आँखों में उभरने लगे और उसके शरीर में उस समय की वासना जागने लगी । दोनों कुर्सी से फिसलकर ज़मीन पर आ गये।

मार्था शान्त पड़ी थी-उसके शरीर में कोई गति महसूस नहीं - हो रही थी। आँखें बन्द थीं-जैसे वह अपने को देखना भी न चाहती हो । बनर्जी के हाथ उसके कपड़े टटोलने लगे।

उसने हल्का-सा विरोध किया, "तुम्हारी बीवी क्या कहेगी ? लेकिन वह जानता था कि वह उसे दूसरी बार दगा नहीं देगा।