आधी धूप, आधी छाँव

अकबर बीरबल कहानी - Akbar Birbal Kahani

दरबार के दूसरे लोग बीरबल से जलते तो थे ही।

वे ऐसे अवसर की प्रतीक्षा करते रहते थे कि कब बादशाह को बीरबल के खिलाफ भड़काएँ।

ऐसे अवसर उन्हें मिल भी जाते थे।

एक बार लोगों के कहने से बादशाह ने कहा, 'बीरबल, तुम्हारी शिकायत मिली है।

'जी।'

'लोग कहते हैं बीरबल इतना गुणी नहीं है, जितना सरकारी कोष से धन प्राप्त करता है।'

'जी।

' 'क्या यह सच है ?'

'जी।'

'यानि तुम स्वीकार करते हो?' 'जी।'

'क्या जी-जी करते जा रहे हो! क्या तुम मानते हो कि तुम मूर्ख हो ?'

'जी, हाँ।'

'जब तुम मूर्ख हो तो क्यों सरकारी खजाने पर बोझ बने हो, छुट्टी करो।'

'मर्जी है आपकी, जहाँपनाह!' 'ठीक है एक महीने के लिए हम तुम्हें हटाकर देख लेते हैं।'

'जो हुक्म, जहाँपनाह!'

ठीक है, तो कल से तुम जहाँ भी चाहो, जा सकते हो और सदा के लिए जाना चाहो तो चले जाना।'

'आपका हुक्म-सर आँखों पर।'

बीरबल वहाँ से कहीं अज्ञातवास में चले गए। बीरबल का अभाव बादशाह को जल्दी ही खलने लगा।

उनके बिना बादशाह का न तो मन ही लगा और न दरबार में वह रौनक रही।

दरबार में बहुत से फैसले गलत होने लगे।

हास्य की जो गंगा बहती थी, वह भी सूख गई।

बादशाह उदास रहने लगे। उन्होंने बीरबल को ढूँढना शुरू कर दिया। परंतु उसे ढूँढा न जा सका।

बादशाह ने उसे ढूँढने की एक तरकीब निकाली।

उन्होंने ऐलान किया कि उनके राज्य के लोग अपने साथ 'आधी धूप, आधी छाँव' लेकर अपने-अपने क्षेत्र के सदर मुकाम पर पहुँचें।

पूरे राज्य में केवल एक गाँव ही ऐसा पाया गया, जहाँ के लोग अपने सदर मुकाम पर 'आधी धूप और आधी छाँव' लेकर पहुंचे।

वे लोग अपने-अपने सिर पर ऐसी चारपाइयाँ उठाए हुए थे, जो इस तरह बुनी थीं कि उनमें बड़े-बड़े छेद्र थे। उनकी परछाईं में धूप का भाग भी था।

बादशाह को अपनी सूझ से आंशिक सफलता मिली।

उन्हें विश्वास हो गया कि इस गाँव में कोई बुद्धिमान व्यक्ति रहता है।

अपनी बात की पुष्टि के लिए उन्होंने कहलवा भेजा कि उस गाज़्व के सभी कुओं की दावत बादशाह के महल में है।

सब कुएँ महल में आएँ। गाँववालों ने दावत में अपने कुएँ न भेजे तो सजा दी जाएगी।

गाँववाले घबरा गए। परंतु उस गाँव में तो बीरबल था।

गाँव वालों ने उनसे इसका उपाय पूछा।

बीरबल ने कहा, 'चिंता मत करो। यह कठिन नहीं है।'

'क्या किया जाए ?

बादशाह का आदेश है कि कुएँ दावत में न भेजे तो सजा दी जाएगी, आप कहते हैं कठिन प्रश्न नहीं है।'

आसान बात है, घबराएँ नहीं। 'तो बताइए ना ?'

'बादशाह के पास खबर भेज दो कि दावत में आने के लिए हमारे सब कुएँ सहमत हैं मगर उन्होंने एक शर्त लगाई है।

हमारे कुएँ तभी उस दावत में आएँगे, जब उन्हें बुलाने के लिए बादशाह के महल का कुआँ आएगा।

वे आदमी के साथ या अकेले नहीं आएँगे। वे भी इज्जतदार कुएँ हैं।

बादशाह को अब संदेह न रहा कि उस गाँव में बीरबल मौजूद है।

उन्होंने पत्र भेजकर बीरबल को बुला लिया।

बादशाह प्रसन्न हो गए।

वे बीरबल के बिना बहुत परेशान हो रहे थे।