अकबर बादशाह घोड़ों के बहुत शौकीन थे। उनके पास तरह-तरह के और रंग-रंग के घोड़े थे।
उनमें से एक घोड़ा उन्हें बहुत प्रिय था।
एक दिन अकबर ने बीरबल से कहा कि तुम इस घोड़े का एक हू-ब-हू चित्र बनवा दो।
बीरबल ने एक कुशल चित्रकार को बुलवाया। उसे अकबर का घोड़ा दिखाकर बीरबल ने कहा, तुम इस घोड़े का एक एक हू-ब-हू चित्र तैयार कर दो। मैं तुम्हें मुँह माँगा इनाम दूँगा।
चित्रकार ने रातदिन महान करके घोड़े का एक हू-ब-हू चित्र तैयार किया।
बीरबल ने बादशाह को वह चित्र दिखाया। चित्र वास्तव में बहुत सुंदर था। फिर भी बादशाह ने उसमें तरह-तरह की भूलें खोज निकली।
चित्रकार ने बादशाह की बात सुनी तो उसे बहुत दुःख हुआ।
बीरबल समझ गए कि बादशाह उसे पुरस्कार देना नहीं चाहते। इसलिए ऐसे चालाकी कर रहे हैं। उन्होंने बादशाह से कहा, जहाँपनाह, मैं और आप इस चित्र के बारे में ठीक तरह समझ नहीं पाएंगे। कृपया आप अपने प्रिय घोड़े को यहां मँगवाइए। वही अपने चित्र को अच्छी तरह पहचान सकेगा।
अकबर ने अपने प्रिय घोड़े को मंगवाया। घोड़े ने जब अपना चित्र देखा तो फ़ौरन हिनहिनाने लगा। अकबर ने पूछा, बीरबल, यह घोड़ा क्यों हिनहिना रहा है ?
बीरबल ने उत्तर दिया, जहाँपनाह! आपका यह प्रिय घोडा कलापारखी है। यह अपने हू-ब-हू चित्र को देखकर हिनहिना रहा है।
इससे पता चलता है कि चित्रकार ने अपना काम बहुत होशियारी से किया है।
अकबर बादशाह तुरंत बीरबल ला इशारा समझ गए। उन्होंने चित्रकार को एक हजार मोहरें देने का हुक्म दिया। चित्रकार ने बीरबल को धन्यवाद दिया और प्रसन्नता के साथ वहां से चला गया।