एक बार की बात है। एक कछुआ और दो हंस आपस में बहुत अच्छे दोस्त थे।
एक साल बारिश बिलकुल नहीं हुई और जिस तालाब में वे रहते थे, वह सुख गया।
कछुए ने एक योजना बनाई और हंसों से बोला, एक लकड़ी लाओ। मैं उसे बीच में दाँतों से दबा लूंगा और तुम लोग उसके किनारे अपनी चोंच में दबाकर उड़ जाना और फिर हम तीनों किसी दूसरे तालाब में चले जायेंगे।
हंस मान गए। उन्होंने कछुए को चेतावनी दी, तुम्हें पूरे समय अपना मुहँ बंद रखना होगा।
वर्ण तुम सीधे धरती पर आ गिरोगे और मर जाओगे।
कछुआ तुरंत मान गया। जब सब कुछ तैयार हो गया तो हंस कछुए को लेकर उड़ चले।
रास्ते में कुछ लोगों की नजर हंसों और कछुए पर पड़ी। वे उत्साह में आकर चिल्लाने लगे, ये हंस कितने चतुर है। अपने साथ कछुए को भी ले जा रहे है। कछुए से रहा नहीं गया। वह उन लोगों को बताना चाहता था कि यह विचार तो उसके मन में आया था।
वह बोल पड़ा लेकिन जैसे ही उसने मुहँ खोला, लकड़ी उसके मुंह से छूट गई और वह सीधे धरती पर आकर गिर पड़ा।
अगर उसने अपने अहंकार पर नियंत्रण कर लिया होता तो वह भी सुरक्षित नए तालाब में पहुंच जाता।