एक घमंडी खरगोश एक कछुए का हमेशा मजाक उड़ाता रहता था।
“तुम कितना धीरे चलते हो!” वह कहता।
जब कछुआ अपना अपमान नहीं सह पाया तो उसने खरगोश को दौड़ लगाने की चुनौती दे डाली।
खरगोश ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगा, “तुम मज़ाक कर रहे हो! ठीक है, कल सुबह,
हम दोनों पहाड़ी के दूसरी ओर जाएँगे और देखते हैं कौन पहले पहुँचता है।"
अगले दिन, सुबह-सुबह, दोनों ने अपनी दौड़ शुरू की।
खरगोश तेजी से दौड़ा और काफ़ी आगे जाने के बाद उसने पीछे मुड़कर कछुए को देखा।
कछुआ बहुत पीछे छूट चुका था। उसने कुछ देर वहीं आराम करने का निश्चय किया।
इस बीच, कछुआ धीरे-धीरे लेकिन बिना रुके चलता रहा।
जब खरगोश की आँखें खुली तो कछुए की दौड़ पूरी होने ही वाली थी।
खरगोश ने पूरी जान लगाकर तेज़ दौड़ने की कोशिश की लेकिन उसके पहुंचने से पहले ही कछुए ने अपनी दौड़ पूरी कर ली और जीत गया!
अब खरगोश को अपनी गलती का अहसास हुआ।
धीरे लेकिन लगातार चलने वाले की ही जीत होती है!